Sanjaya Kumar Singh : हम जो मूर्ख हैं और हमारे अखबार जो बिना रीढ़ के हैं… महाराष्ट्र में जो हुआ आप जानते हैं। कल के अखबारों ने बताया था कि उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री बनना तय है। पर सुबह प्रधानमंत्री का एक ट्वीट घूमने लगा जिसमें देवेन्द्र फडनवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री बनने की बधाई दी गई थी। मैंने टेलीविजन तो नहीं देखा पर पता चला कि टेलीविजन पर भी खबर आ रही थी। यह सब अप्रत्याशित था। मुख्यमंत्री के शपथ लेने की तारीख की घोषणा होती है और बाकायदा शपथ ली और दिलाई जाती है। आधी रात में इस तरह शपथ पहले कभी दिलाई गई हो तो 56 ईंची परंपरा नहीं है और ना ईमानदार राजनीति है।
इस मामले की प्रस्तुति के लिहाज से द टेलीग्राफ आज भी बाजी मार ले गया। हिन्दी के अखबारों ने पहले की ही तरह निराश किया। दिलचस्प यह रहा कि अमर उजाला ने आज ही घोषणा की है कि अब नेट पर भी अखबार देखने के पैसे लगेंगे। पर वह अलग मुद्दा है। टेलीग्राफ का शीर्षक है, वी द इडियट्स यानी हम जो मूर्ख हैं। और इसके साथ अखबार ने बड़े अक्षरों में सात कॉलम में रेखांकित कर जो लिखा है उसे हिन्दी में लिखा जाए तो इस प्रकार होगा, जब प्रधानमंत्री एक विशेष नियम लागू करते हैं, राष्ट्रपति घोषणा पर ठप्पा लगाते हैं और गृहमंत्रालय महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन खत्म करने की सूचना सवेरे 5:47 बजे जारी करता है तो नागरिक और क्या हैं? इसके तहत एक शीर्षक है फडनविस मुख्यमंत्री हैं, विधायकों की तलाश जारी। पवार अपने लोगों को साथ रखने की कोशिश में, सेना ने एक बागी को लाकर सहायता की।
हिन्दी अखबारों में आज भी कोई तेवर नहीं दिख रहा है जबकि कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा (जो आज अखबारों में छपा है) कि चोर दरवाजे से वित्तीय राजधानी पर कब्जा करने का षडयंत्र था। पर यह नहीं बताया कि इलेक्ट्रल बांड से सरकार ने देश के पूरे आर्थिक तंत्र पर ही कब्जा कर लिया है। खैर, वह बताने और स्वीकारने की बात भी नहीं थी पर उनका दावा चोरी और सीनाजोरी से ज्यादा कुछ नहीं था। अखबार वालों से उनसे क्या पूछा क्या नहीं मुझे नहीं पता पर आज के अखबारों में महाराष्ट्र में जो हुआ उसकी खबर जैसे छपी है, उससे नहीं लगता कि किसी ने कुछ कायदे का पूछा होगा। कल बुरी तरह चूकने के बावजूद आज के अखबारों में फिर वही रूटीन शीर्षक है।
कायदे कानूनों के उल्लंघन के साथ आधी रात की केंद्र सरकार की इस दूसरी बड़ी कार्रवाई की खबर के साथ नहीं बताया गया है कि यह अब हम रबर स्टांप के जमाने से आगे बढ़कर डिजिटल जमाने में आ गए हैं और यह सब “डिजिटली” संभव हुआ। हिन्दी अखबारों से तो वैसे ही कोई उम्मीद नहीं थी। अंग्रेजी के अखबारों का भी बुरा हाल है। हिन्दी अखबार ने पवार की रणनीति पर पावर ब्रेक लगने से लेकर पवार को पावर और (अमित) शाह को शहंशाह बताने और उसमें रंग बदलने जैसे फूहड़ खेल के सिवा कुछ नहीं किया है। खबर तक लिखना नहीं आता है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने रूटीन शीर्षक लगाया है, महाराष्ट्र में नाटक जारी, फडनविस सीएम, अजीत उनके डिप्टी।
मेरा मानना है कि अखबारों ने जब खबर दी थी कि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनेंगे और फिर अजीत पवार ने शपथ ले ली तो उन्हें बताना चाहिए कि यह धोखा कैसे हुआ। वे क्यों चूक गए। पर उनका अपनी सफाई में कुछ नहीं कहना और धोखा देने वालों के प्रति सामान्य व्यवहार बनाए रखना उन्हें राजनीतिक दलों से भी गैर जिम्मेदार और बेशर्म बनाता है। क्या किसी अखबार ने आज अपने इस अधिकार की मांग की है कि शपथ ग्रहण की पूर्व सूचना उन्हें क्यों नहीं दी गई और नहीं दी गई तो वे क्या खबर दें और कैसे दें। अगर सरकार खबर दे ही नहीं रही है, वे निकाल नहीं पा रहे हैं तो अखबार छापते रहने का क्या मतलब? सब जानते हैं कि फडनवीस का मुख्यमंत्री बने रहना कितना मुश्किल है, फिर भी यही लीड क्यों है?
शपथग्रहण का मामला सुप्रीमकोर्ट में है और आज इतवार होने के बावजूद उसपर सुनवाई होगी क्या इसे प्रमुखता नहीं मिलनी चाहिए थी। दैनिक भास्कर ने दी है। खबर के लिहाज से तो यही पक्की खबर है पर महत्व उसे दिया जा रहा है जो कल बदल सकती है। इसी तरह इतना बड़ा मामला है क्या इसपर विशेष संपादकीय नहीं होना चाहिए था? सिर्फ राजस्थान पत्रिका में है। दैनिक जागरण में प्रशांत मिश्र की त्वरित टिप्पणी है, आगे-आगे देखिए सियासत में होता है क्या। इसमें सत्ता के लोभ के तहत हाइलाइट किया हुआ अंश है, शिवसेना ने मुंह की खाई और जो कुछ पास में था वह भी गंवा दिया। सबसे ज्यादा फजीहत कांग्रेस की, अल्पसंख्यक उसपर भरोसा करें तो क्यों।
मेरे ख्याल से आज खबर यह होनी थी कि शुक्रवार की रात चले नाटकीय घटनाक्रम के तहत देवेन्द्र फडनवीस ने शनिवार की सुबह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। (राज्यपाल ने दिलाई …. उपमुख्यमंत्री अजीत पवार बने आदि आदि) और फिर यह कि मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है और इतवार को सवेरे इसपर सुनवाई होगी। ऐसा पहली बार हुआ है या इससे पहले अगर हुआ था। इस मूल बात को घुमा फिराकर पावर ब्रेक और पावर बढ़ने घटने की बात खबर नहीं समझने या सही खबर नहीं देने का मामला है। मुख्य शीर्षक अजीत पवार के मुख्यमंत्री बनने की और उपशीर्षक मामला सुप्रीम कोर्ट में होना चाहिए था।
ऐसी हालत में दैनिक भास्कर के बाद अब अमर उजाला ने घोषणा की है उसे नेट पर भी मुफ्त में पढ़ना संभव नहीं होगा। भास्कर के लिए तो मैंने पैसे दिए हैं पर अमर उजाला इस लायक नहीं लगता। इसलिए आज नहीं देखा। असल में अंग्रेजी के द टेलीग्राफ समेत हिन्दी अंग्रेजी के कई अखबार मुफ्त में उपलब्ध हैं इसलिए अमर उजाला पैसे देकर पढ़ने का कोई मतलब नहीं है। वैसे भी मैं पहला पेज ही देखता हूं और लिखना न हो तो वह भी न देखूं। पर वह अलग मुद्दा है। यह उल्लेख इसलिए कि आज अमर उजाला की चर्चा क्यों नहीं है।
आइए देखें आज के शीर्षक कैसे हैं
- हिन्दुस्तान
महा उलट-फेर
महाराष्ट्र में पल में तोला, पल में माशा - नवभारत टाइम्स
आजित पावर से बीजेपी शहंशाह
— पर फाइनल पिक्चर बाकी है - नवोदय टाइम्स
महाराष्ट्र में पावार ब्रेक
शपथ लेनी थी उद्धव को ले ली फडनवीस ने - दैनिक जागरण
महा उलटफेर - प्रभात खबर
महाराष्ट्र में महा-उलटफेर
फड़नवीस की ताजपोशी के बाद बढ़ा संशय - दैनिक भास्कर
शुक्रवार रात तक उद्धव का सीएम बनना तय था
पर शनिवार सुबह सत्ता का लड्डू भाजपा ले गई
पावरफुल पॉलिटिक्स - राजस्थान पत्रिका
शह … मात … फिर संशय !
लेखक संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने अनुवादक हैं.
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