देहरादून में अखबारों के बीच चल रहा शह-मात का खेल : तू मेरा आदमी तोड़ेगा तो मैं तेरा तोड़ूंगा…

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उत्तराखंड की राजधानी राजनीति का अखाडा बन गई है। वैसे तो यहां दो प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच शह-मात का खेल चलता रहता है। इसमें गैम चेंजर की भूमिका में जनता होती है, जिसके नतीजे चुनाव के बाद आते हैं। जिससे एक दल को सत्ता मिलती है तो  दूसरा विपक्ष में बैठने को मजबूर होता है। यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच यह खेल चलता रहता है।  लेकिन यहां अखबारों के बीच जो शह-मात का खेल चल रहा है वह बडा ही रोचक है। इस शहर में तीन बडे हिन्दी अखबार हैं। अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान। इन तीनों में आजकल आदमी तोडने का खेल जमकर चल रहा है। तीनों ही यहां एक दूसरे को मात देने में जुटे हैं।

करीब चार महीने पहले अमर उजाला ने जागरण से अमित सैनी को बतौर सब एडीटर तोडा था। वे वहां जूनियर सब एडीटर थे। इसके बाद मई में जागरण ने अमर उजाला से हिमान्शु जोशी को तोड लिया। वहां अमर उजाला में  सब एडीटर थे। जागरण ने उनको सीनियर सब एडीटर बना दिया। इसके बाद जून में हिन्दुस्तान ने अमर उजाला से रिपोर्टर महेश्वर सिंह को तोड लिया। वह काफी मेहनती रिपोर्टर हैं और अमर उजाला में काफी दिनों से रिटेनर के पद पर कार्यरत थे। यहां वह उपेक्षा के शिकार भी बताए जाते थे। हिन्दुस्तान ने उनको बतौर स्टाफर रखा।

इसके बाद जुलाई में अमर उजाला में सीनियर सब एडीटर व सिटी डेस्क इंचार्ज कौशलेंद्र को हिन्दुस्तान ने तोड लिया। उन्होंने 1 अगस्त को हिन्दुस्तान में बतौर चीफ सब एडीटर ज्वाइन कर लिया।  इसके जवाब में अमर उजाला ने हिन्दुस्तान में सब एडीटर गौरव प्रजापति को तोड लिया। अमर उजाला में गौरव को सीनियर सब एडीटर बनाया गया है। उन्होंने 19 अगस्त को अमर उजाला ज्वाइन कर लिया हैं। बताया गया है कि वहां गौरव को कौशलेंद्र के स्थान पर सिटी डेस्क इन्चार्ज बनाया गया है। गौरव करीब एक साल पहले अमर उजाला में ही जूनियर सब एडीटर थे। वहां से वह हिन्दुस्तान में सब एडीटर बन कर चले गए थे और अब अमर उजाला में वापस सीनियर सब एडीटर वापस आ गए हैं।

अखबारों के इस खेल में मजा ले रहे कर्मचारियों में से कई एक दूसरे में जाने की जुगत में हैं। बताया जा रहा है कि अमर उजाला में उपेक्षा के शिकार कई रिपोर्टर और डेस्ककर्मी हिन्दुस्तान में जाने की तैयारी में हैं। वैसे अमर उजाला के बारे में यह कहा जाता है कि यह अपनी प्रतिभाओं की कद्र नहीं कर पाता है। इसलिए यहां से लोग दूसरे अखबारों में चले जाते हैं। इसमें लंबे समय से जमे कर्मचारियों को तवज्जों नहीं दी जाती जबकि दूसरे अखबारों से आने वालोें को पद और पैसा बढाकर दिया है। चाहे वह यहीं से जाकर कुछ दिन में वापस लौट आता हो। बरहाल, अब देखना यह होगा कि अगला नंबर किसका दूसरे को मात देने का है।  वहीं अगले महीने यहां नया एडीशन लांच करने की तैयारी में जुटा पंजाब केसरी भी इन तीनों अखबारों के आदमी तोडने की तैयारी में लगा है।

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