-अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
ट्रैवलिंग का शौक यूं तो जबरदस्त होता है लेकिन इसमें कई जोखिम भी होते हैं. अभी कल ही फेसबुक पर एक पोस्ट से पता चला कि हिमाचल में कुल्लू के नजदीक स्थित कसोल में एक पहाड़ पर दिल्ली के एक युवक की ट्रैकिंग के दौरान फिसलकर हजारों फीट गहरी खाई में गिर जाने से मौत हो गई. खबर पढ़ते ही मुझे भी वह मंजर याद आ गया, जब कसोल में ट्रैकिंग के दौरान मैं भी बुरी तरह फिसल कर पहाड़ी से गिरने की कगार पर पहुंच गया था.
साल 2017 में हिमाचल में अपने बेटे का जन्मदिन मनाने के लिए मैं कसोल में ही एक रिजॉर्ट में रुका था. अक्टूबर की 14 तारीख को बेटे के जन्मदिन वाली सुबह रिजॉर्ट का लोकल गाइड हमें यानी मुझे, मेरी पत्नी व बेटे को पार्वती नदी के किनारे की ऊंची पहाड़ियों और जंगल में ट्रैकिंग के लिए ले गया. चूंकि रिजॉर्ट में पहुंचने के बाद हमें यह पता चला था कि ट्रैकिंग के लिए वहां गाइड उपलब्ध है इसलिए हम बिना किसी तैयारी के ही ट्रैकिंग के लिए निकल पड़े थे.
सूरज निकलने से थोड़ा पहले ही जब हम रिजॉर्ट से ट्रैकिंग के लिए निकले थे तो वहीं रास्ते के एक गांव का एक सफेद कुत्ता हमारे साथ साथ चलने लगा था. उसी कुत्ते ने किसी मझे हुए गाइड की तरह पूरी ट्रैकिंग के दौरान हमें आगे चलकर चढ़ने और उतरने का रास्ता दिखाया था.
ओस और पहाड़ी घास आदि की फिसलन भरे बेहद खतरनाक रास्तों से होते हुए हम जब पहाड़ की चोटी के नजदीक पहुंच रहे थे तो एक संकरे रास्ते में गिरा हुआ पेड़ नजर आया. पेड़ की मोटी डाल तिरछे होकर वहां पड़ी थी और आगे बढ़ने के लिए उसी डाल के नीचे से लगभग लेट कर निकलना था. नीचे सैकड़ों फीट गहरी खाई थी. उस वक्त जब हमें गिरे हुए पेड़ से आगे बढ़ना था तो पहले वही कुत्ता डाल के नीचे से आगे जाकर रुक गया और हमारा इंतजार करने लगा. फिर गाइड ने हमें दिखाया कि कैसे हमें आगे बढ़ना है.
मेरे सामान्य जूते यूं तो पहाड़ी रास्तों पर दिक्कत नहीं कर रहे थे लेकिन ट्रैकिंग में फिसलन आदि से बचने के लिए जैसी ग्रिप उनमें होनी चाहिए थी, वह नहीं थी. मुझे इस बात का अंदाजा था और पत्नी व बेटे के पास भी ऐसे जूते नहीं थे, यह भी पता था. लेकिन जैसे जैसे हम आगे बढ़ते जाएंगे, फिसलन और रास्तों का संकरापन ट्रैकिंग को इतना ख़तरनाक बना देगा, इसका जरा भी अंदाजा नहीं था. मैंने इस खतरे को भांपते हुए कई बार और ऊंचाई पर जाने से मना किया लेकिन पत्नी ने जिद पकड़ ली कि चोटी तक गाएंगे. गाइड चूंकि लोकल था इसलिए वह बड़े आराम से आगे बढ़ रहा था और उसने भी हमें आश्वस्त किया कि ट्रैकिंग में खतरा न के बराबर है.
मगर जरा सी लापरवाही या बिना किसी तैयारी के ट्रैकिंग करने से क्या खतरा हो सकता है, यह मुझे उसी गिरे हुए पेड़ के नीचे से निकलते समय बखूबी हो गया. क्योंकि मेरे जूते वहां की फिसलन पर नाकाम हो गए और एक पैर फिसलते ही मैं इतनी तेज लड़खड़ाया कि एक क्षण के लिए तो मुझे लगा कि अब मैं नीचे खाई में गिर जाऊंगा. मगर न जाने कैसे मेरे एक पैर ने वहां किसी चीज के सहारे खुद को रोक लिया, जिससे मेरा पूरा शरीर फिसलते फिसलते भी पूरी तरह से गिरने से बच गया. बस कुछ ही सेकंड की इस लडखडाहट ने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए थे.
बहरहाल, उसके बाद हमने किसी तरह संभल संभल कर ट्रैकिंग पूरी की और उतरते समय भी हमें उसी तरह का डर लगता रहा. ट्रैकिंग करने का शौक उस एक लडखडाहट से जाने वाला नहीं मगर इतना जरूर समझ में आ गया कि पहाड़, नदी, समन्दर, रेगिस्तान या जंगल… ये सभी प्रकृति की मनमोहकता के चलते हमें आकर्षित तो करते हैं मगर यहां पर जाने से पहले हमें यहां के खतरों और उनसे बचने की सावधानियों की जानकारी जरुर कर लेनी चाहिए.