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पत्रकारों के आंदोलन को समाप्त नहीं करा पाई वसुंधरा सरकार

सरकार की हठधर्मितता जारी, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के लिए सिरदर्द बनी वसुंधरा सरकार… राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार ने हद से भी ज्यादा हठधर्मितता अपना रखी है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के धरने को करीब एक माह का समय बीतने को जा रहा है, और पत्रकारों के इस धरने व आंदोलन को समाप्त करवाने के लिए राजस्थान सरकार ने अभी तक एक बार भी कान नहीं फड़फड़ाये। सरकार पत्रकार संगठनों के साथ किसी भी प्रकार से वार्ता नहीं की है।

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सरकार की हठधर्मितता जारी, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के लिए सिरदर्द बनी वसुंधरा सरकार… राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार ने हद से भी ज्यादा हठधर्मितता अपना रखी है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के धरने को करीब एक माह का समय बीतने को जा रहा है, और पत्रकारों के इस धरने व आंदोलन को समाप्त करवाने के लिए राजस्थान सरकार ने अभी तक एक बार भी कान नहीं फड़फड़ाये। सरकार पत्रकार संगठनों के साथ किसी भी प्रकार से वार्ता नहीं की है।

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वसुंधरा सरकार की चल रही हठधर्मितता से यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार पत्रकारों से बात करने के मूड में नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण इस आंदोलन को असफल करने में जूटे कुछेक चाटुकार भी हैं जो चंद विज्ञापनों की लालची सोच रखते हैं। दूसरा सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री को उन्हीं के भ्रष्ट सलाहकारों की ओर से गलत जानकारी देकर गलतफहमियां पैदा करना भी है। जब धीरे-धीरे सच्चाई सामने आई तो मुख्यमंत्री के सलाहकार भी पत्रकारों से वार्ता करने से दूर भागने लगे हैं। अगर यह आंदोलन किसी एक पत्रकार संगठन का होता तो शायद पहले ही दिन कुचल दिया जाता लेकिन इस बार यह आंदोलन सभी संगठनों का है। इस आंदोलन के लिए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नजदीकी लोग ही जिम्मेदार है जिन्होंने मुख्यमंत्री के नाम की आड़ लेकर कई तरह की गलत जानकारियां पिछले 4 सालों में पत्रकारों को दी है।

पत्रकार संगठनों के पदाधिकारियों के साथ ही कई वरिष्ठ पत्रकारों ने अनेकों बार मुख्यमंत्री से मुलाकात कर उनको सच्चाई से अवगत कराने की कोशिश की लेकिन सलाहकारों ने कोई न कोई बहाना बनाकर उन्हें दूर रखा यहां तक कि मुख्यमंत्री के निवास के आसपास पटकने तक भी रोक लगा दी। सलाहकारों ने हर संभव कोशिश की कि पत्रकार संगठनों के पदाधिकारी किसी भी तरह मुख्यमंत्री से मुलाकात नहीं कर पाए। इसके लिए उन्होंने शाम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाई और उसमें कामयाब भी होते जा रहे है। अंग्रेजों की तर्ज पर फूट डालो और राज करो की नीति भी अपनाई। मुख्यमंत्री तक कहीं गलत और झूठी जानकारियां पहुंचाई गई यही वजह है कि जो मुख्यमंत्री पत्रकारों से बड़े स्नेह से मुलाकात करती थी वह अब दूरियां बनाने लगी है।

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पहले तो सलाहकारों को लग रहा था कि पत्रकारों का यह आंदोलन एक-दो दिन में ही खत्म हो जाएगा लेकिन जब 25 दिन से ज्यादा हुए तो सलाहकारों की चेहरे की हवाइयां उड़ने लगी। अब उनकी यह भी हिम्मत नहीं है कि वे पत्रकार संगठनों के पदाधिकारियों से बातचीत कर इस आंदोलन को समाप्त करने का कोई रास्ता निकाल सके। राजस्थान में ऐसा पहली बार हुआ है कि जब पत्रकार और सरकार के बीच दूरियां बढ़ी है। सरकार में बैठे लोग हठधर्मिता त्यागने की बजाए पत्रकारों को पिडित कर रहे हैं।

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भाजपा नेताओं का एक बड़ा धड़ा भी पत्रकारों के पक्ष में है। उनका मानना है कि मुख्यमंत्री और उनके करीबी लोगों को हठधर्मिता छोड़कर पत्रकार संगठनों के पदाधिकारियों से बातचीत करनी चाहिए। राजधानी जयपुर में 11 बड़े पत्रकार संगठनो के संयुक्त तत्वावधान में पिछले 28 दिनों से चल रहे आंदोलन से भाजपा के कई वरिष्ठ नेता भी खुश नहीं है। वे इस बात से काफी खफा है कि राजस्थान की राजधानी में पत्रकार इतने लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं और सरकार की ओर से बातचीत की पहल नहीं की गई है। उल्टे पत्रकारों को पड़ताड़ित किया जा रहा है और बड़े मीडिया घराने पर दबाव बनाकर श्रमजीवी पत्रकारों की नौकरियां छीनी जा रही है।

उनका मानना है कि सरकार के लोगों का यह काम नहीं है कि वे कुर्सी की धोंस दिखाकर किसी पत्रकार की नौकरी निगलने का काम करें। भाजपा जैसी सिद्धांतवादी पार्टी की यह रीति और नीति भी नहीं है। इससे भारतीय जनता पार्टी की छवि पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है इसका खामियाजा अगले विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है उनको सोचना चाहिए कि जिस जगह यह आंदोलन व धरना  जारी है, वहां रोजाना करीब साठ हजार लोग गुजरते हैं। पिछले 28 दिनों में इनकी संख्या कितनी हो गई इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। राजस्थान में पत्रकारों और भारतीय जनता पार्टी के बीच दूरियां बढ़ती जा रही है। यही हाल रहा तो यह धरना प्रदर्शन पूरे राज्य स्तर पर किया जाएगा।

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ये बैठे धरने पर : पिंक सिटी प्रेस क्लब, राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ, राजस्थान पत्रकार परिषद, राजस्थान पत्रकार संघ (जार), राजस्थान फोरम ऑफ वर्किंग जनर्लिस्ट यूनियन, जनर्लिस्ट ऑफ कौंसिल, आईएफडब्ल्यू जे, पत्रकार ट्रस्ट ऑफ इंडिया, एसोसिएशन ऑफ स्माल एंड मीडियम न्यूज़ पेपर इंडिया, राजस्थान लघु समाचार पत्र संपादक संघ के नेतृत्व में धरना व आंदोलन चल रहा है।

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