‘दबंग दुनिया’ नाम का अखबार निकालने वाला इंदौर का गुटका व्यापारी किशोर वाधवानी जाने कब किसे रखे, कब किसे निकाल दे, कब किस पर कौन सा प्रेशर बना दे, कुछ नहीं कहा जा सकता. ताजा मामला है दबंग दुनिया के संपादक विजय शुक्ला और उनके मार्केटिंग साथी सीईओ विजय गुप्ता का. इन दोनों पर दबंग दुनिया के आफिस में बैठकर दबंग दुनिया को तबाह करने का जो षड़यंत्र रचने का आरोप लगा किशोर वाधवानी ने निकाल बाहर कर दिया.
उधर, विजय शुक्ला के लोगों का कहना है कि उन्होंने अपने स्वाभिमान के लिए एक लाख की नौकरी छोड़ दी. दबंग दुनिया के मालिक की सनकमिजाजी को कौन नहीं जानता. कितने लोग इसकी इसी आदत से तंग आकर नौकरी छोड़कर जा चुके हैं. मालिक गुटका व्यापारी है, इसलिए अखबार और पत्रकार को नहीं समझ पाता. सोचता है नौकरी नहीं, गुलामी कराएगा. संपादकों से अपने उलटे सीधे काम कराने का दबाव बनाता है. जो पत्रकार मना कर दे या नौकरी को लात मारकार चला जाए तो उसके खिलाफ दुष्प्रचार कराता है.
हकीकत यह है कि मालिक किशोर वाधवानी संपादकों को विज्ञापन का टारगेट जबरन पूरा करने का दबाव बना रहा था. भोपाल को 10 लाख रूपये का टारगेट दिया गया. इसे पूरा करने से शुक्ला जी ने मना कर दिया. मालिक को शुक्ला जी से गरज थी, इसलिए काम चलता गया. मगर अब किशोर वाधवानी के इनकम टैक्स विभाग में जब्त 90 लाख रूपये के केस को रफा दफा कराने का दबाव बनाया तो उन्होंने इससे इनकार कर दिया. मालिक को यह बात नागवार गुजरी तो शुक्ला जी ने नौकरी से इस्तीफ़ा दे कर कह दिया कि वो गलत काम में साथ नहीं देंगे. चर्चा तो यह भी है कि मुख्यमंत्री और उनके प्रमुख सचिव एसके मिश्रा जी से कोई गैर वाजिब काम कराने के लिए भी वाधवानी शुक्ला जी पर दबाब बना रहा था, जिसे करने से उन्होंने दो टूक मना कर दिया.
शुक्ला जी ने नौकरी को एक पल में ठोकर मार दी और मालिक की गुलामी से इनकार कर दिया तो यही बात वाधवानी के अहंकार को चोटिल कर गई. सो, अब उसके इशारे पर एक झूठा पुलिंदा बनाया जा रहा है. फर्जी रिकार्डिंग वीडियो की धमकी देकर शुक्ला जी को दबंग में वापस लाने का प्रेशर भी काम नहीं आया. पहले तो यही शुक्ला जी वाधवानी के दुलारे थे. सबसे अधिक समय करीब दो साल तक गुटका व्यापारी का संग-साथ दिया.
दबंग दुनिया में कोई भी ईमानदार और अच्छा पत्रकार नहीं ठहर पाता. कई उदाहरण हैं. जिसने मालिक के तलवे चाटे, वही टिके रहे. इस अखबार के मालिक को कौन नहीं जानता. कीर्ति राणा, पुष्पेंद्र सोलंकी, पंकज मुकाती जैसे पत्रकारों को जब चाहा रखा और जब चाहा ठोकर मार दिया. प्रदेश टुडे के मालिक ने वाधवानी को अच्छा सबक सिखाया. खिसियानी बिल्ली अब खम्भा नोच रही है. दबंग दुनिया के मुंबई एडिटर पाटणकर जी ने भी दबंग की तानाशाही से तंग आकर कुछ दिन पहले नौकरी छोड़ी. भोपाल में कारपोरेट हेड रहे सफाकत अंसारी ने भी दो दिन पहले नौकरी छोड़ी. सीईओ विजय गुप्ता जी ने भी मॉलिक से तंग आकर भरी मीटिंग में पूरे स्टाफ के सामने नौकरी को अलविदा कह दिया. क्या यह सब लोग गलत और बदमाश थे? हो सकता है अगला नंबर यूनिट हेड संजीव सक्सेना का भी आये क्योंकि खटपट तो चल रही है.
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
Manoj Singh Rajput
December 29, 2016 at 4:02 pm
यशवंत जी, नमस्कार
काफी समय बाद आपसे बात कर अच्छा लग रहा है। भड़ास पर दबंग दुनिया संस्थान को लेकर डाली गई पोस्ट पढ़ी, स्वाभाविक है ये आपको किसी ने भेजी ही होगी। क्योंकि आप बिना तथ्यों के कोई पोस्ट प्रकाशित नहीं करते हैं। इस पोस्ट में मेरी रुचि होने का कारण महज इतना है कि वर्तमान में मुझे विजय शुक्ला के स्थान पर पुन: दबंग दुनिया भोपाल में संपादक बनाया गया है। पोस्ट में जिस प्रकार कथित तौर पर संबंधित पत्रकार ने विजय शुक्ला और विजय गुप्ता का ‘दर्द’ बयां किया है, उससे लगता है कि ये दोनों संस्थान के लिए कुछ ज्यादा ही कर्मठ और इमानदार रहे हैं। खैर, इस संबंध में चर्चा न करते हुए मैं विजय शुक्ला और विजय गुप्ता के कुछ तथ्य बताना चाह रहा हूं।आशा करता हूं कि इन्हें भी आप उचित स्थान देंगे—
1. यह कहां तक सही है कि विजय शुक्ला को जिसकी रिपोर्टर लायक औकात नहीं है उसे मालिक ने पहले स्थानीय संपादक तथा बाद में स्टेट एडिटर बना दिया। वहीं विजय गुप्ता बंसल न्यूज चैनल में जीएम था जिसे दबंग में मोटी सैलरी पर सीईओ बनाया गया। इसके बाद भी इन दोनों का भोपाल मोह नहीं छूटा और इनके अधीन आने वाली यूनिटों का इन लोगों ने आज तक दौरा तक नहीं किया।
2. क्या किसी संपादक और सीईओ पद पर बैठे व्यक्ति को ये शोभा देता है कि जिस संस्थान से उसका परिवार चल रहा है और जिसका वो नमक खा रहा है, उस नमक का कर्ज क्या उस संस्थान को बर्बाद करने की साजिश कर दिया जाना उचित है। और वो भी संस्था के द्वारा दिए गए केबिन में बैठकर।
3. विजय शुक्ला ने आज तक जिस संस्था में काम किया वहां से इन्हें धक्के मारकर निकाला गया। इसकी जानकारी पूरे भोपाल को है।
4. जब सब कुछ सही था तब तक मालिक का मोबाइल नंबर विजय शुक्ला ‘मेरे भगवान’ नाम से सेव किए हुए थे। यहां तक कि दबंग की ग्रुप मीटिंग में पिछले दिनों इन्होंने सार्वजनिक रूप से मालिक को भगवान का दर्जा दिया और ये भी कहा कि यदि मेरी जान भी मालिक के काम आ जाए तो मैं कभी मना नहीं करूंगा। साथ ही यह भी कहा था कि मुझे दबंग से धक्के मारकर निकालेंगे तो भी नहीं जाउंगा, यह मेंरी आखिरी नौकरी है। ऐसे ढकोसलों का विजय शुक्ला ने केवल अच्छे लोगों को संस्थान से दूर रखने में उपयोग किया।
5. ये मालिक की दरियादिली ही थी कि स्थानीय संपादक रहते विजय शुक्ला ने भोपाल के एक बिल्डर पर अड़ी डालकर दो लाख रुपए वसूले थें। जिसकी जानकारी मालिक को लगी और जब इनके खिलाफ कार्यवाही होने लगी तो इन्होंने मालिक के पैरों पर गिरकर उन्हें भगवान कहते हुए नौकरी की भीख मांगी। यदि ये निर्णय आज के बजाए उस दिन हो जाता तो दबंग दुनिया इस गंदगी से पहले ही मुक्त हो जाता।
6. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आपकी पोस्ट में जिन बातों का उल्लेख किया गया है, वे केवल मालिक और विजय शुक्ला के बीच हुई हैं। इसकी जानकारी केवल इन्हीं दोनों लोगों को है। यदि ये जानकारी आप तक पहुंची है तो ये तय है कि या तो मालिक या फिर विजय शुक्ला ने आप तक ये जानकारी दी है। मालिक ने ऐसा किया नहीं है तो साफ है कि संस्था की आंतरिक जानकारियां भी सार्वजनिक कर रहा है।
7. दबंग दुनिया के मालिक के प्रति जो जहर आपकी पोस्ट के माध्यम से उगला गया है मैं इस बारे में यह कहना चाहता हूं कि दबंग दुनिया के खिलाफ षड़यंत्र करने के बावजूद मालिक ने शुक्ला का मुंबई (शुक्ला की पूर्व की मांग पर) और गुप्ता का इंदौर केवल ट्रांसफर किया है।
यशवंत जी शुक्ला और गुप्ता द्वारा एक बिल्डर के साथ मिलकर दबंग दुनिया तथा एक और अन्य सांध्य दैनिक को बर्बाद कर नया अखबार लांच करने की जो प्लानिंग की गई, उसके पूरे प्रमाण संस्था के पास मौजूद हैं। मालिक ने लगभग 80 मिनट की इस बातचीत को सार्वजनिक तौर पर सभी कर्मचारियों को सुना भी दिया है। और यदि आप चाहें तो आपके पते पर ये सीडी पहुंचा दी जाएगी। तब आप खुद ही तय करना कि मालिक गलत है या शुक्ला और गुप्ता जैसे विभीषण और जयचंद।
जल्द ही इस सीडी का खुलासा दबंग न्यूज चैनल पर किया जाएगा।
धन्यवाद
आपका
मनोज सिंह राजपूत