‘नेशनल वॉयस’ न्यूज चैनल के प्रोड्यूसर विकल्प त्यागी का मात्र 28 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. विकल्प कुछ दिनों से पीलियाग्रस्त थे. यूपी के मुजफ्फरनगर निवासी विकल्प त्यागी के निधन पर वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम की ये पोस्ट पढ़ें….
प्यारा सा ये लड़का इस दुनिया में नहीं रहा। विकल्प त्यागी नाम था उसका। फेसबुक पर उसने Zypsy’s Story के नाम से प्रोफ़ाइल बना रखी थी। यक़ीन नहीं हो रहा कि इस उम्र में वो दुनिया को अलविदा कह गया। दिसंबर के आख़िरी हफ़्ते में मैं लखनऊ गया तो उससे मिलने उसके दफ़्तर गया था। उसकी सेहत को लेकर उसे झिड़का भी था। वो मेरी बातें सुनता रहा फिर पढ़ने-लिखने की बातें करने लगा। मुझसे पूछने लगा कि सर, आजकल आप क्या पढ़ रहे हैं? फिर अपनी बताने लगा। बीएजी के मीडिया स्कूल में पहली मुलाक़ात से अब तक विकल्प त्यागी से जुड़ी इतनी यादें हैं कि उसके जाने का ग़म परेशान कर रहा है। जब कभी फेसबुक पर मैं किसी से बहस करता था और जवाब में कोई अभद्र टिप्पणी करता तो वो मुझे मैसेज करता था। मुझसे आधी उम्र का होकर भी मुझे समझाता था कि आप सोशल मीडिया पर किसी से बहस में मत उलझिए। किताब लिखिए। कुछ बड़ा करिए। आप मेरे गुरु हैं इसलिए आपको कोई ऐसे कुछ कह देता है तो मुझे ठीक नहीं लगता है। मैं उसकी बात मानने की कोशिश भी करता था। मैं जब डिबेट शो करता था तो वो एक दर्शक और आलोचक की भूमिका में हमेशा अपना फ़ीडबैक देता था। मुझे उस लड़के में हमेशा एक क़िस्म की बेचैनी दिखती थी। मीडिया छात्र के रुप में उससे पहली मुलाक़ात शायद 2010-2011 में हुई थी। पहली मुलाक़ात में ही उसने मुझे प्रभाव में ले लिया। वो काफ़ी देर तक मुझसे निर्मल वर्मा पर बात करता रहा। मैंने भी उसी की उम्र में निर्मल वर्मा का उपन्यास और यात्रा संस्मरण और कहानियाँ पढ़ी थी। फिर हम अक्सर ‘चीड़ों पर चाँदनी’से लेकर ‘कौवे और काला पानी’, ‘वे दिन’, ‘रात का रिपोर्टर’ से लेकर ‘पिछली गर्मियों में’, ‘लाल टीन की छत’ और ‘अंतिम अरण्य’ तक पर बातें करते। दुनिया जहान की किताबों पर बात करने का वो बहाना खोजता था। कई बार वो विदेशी लेखकों की कोई ऐसी किताब पर बात करने लगता , जो मेरा पढ़ा नहीं होता तो मैं बचने लगता था। पूरे क्लास में सबसे अलग था विकल्प। दिखने में , पहनावे में , हुलिया में।.लंबे बाल और बेतरतीब दाढ़ी रखने पर भी कई बार मैं गार्डियन की तरह टोकता था और वो सुनकर हँसता रहता। उन्हीं दिनों मेरे बर्थ डे पर अपने दोस्तों के साथ केक लेकर अ गया। खिलाया भी और लगाया भी। मैंने भी शरारती बच्चे का तरह विकल्प के चेहरे पर केक का लेप चढ़ा दिया। उसने तस्वीरें खिंचवाई और फेसबुक डाल दिया। मैं हमेशा उसे सिर्फ त्यागी बोलता था। उसका साथ मुझे ऊर्जा देता था। मस्तमौला , बिंदास, प्रतिभाशाली। हाँ, एक ख़ामी थी उसमें में। मैं उसके लिए उसे प्यार से अधिकार के साथ हड़काया रहता था कि ये छोड़ दो। आख़िरी बार मिला था, तब भी। मुझे उसके न होने की सूचना भी फेसबुक पर उसके दोस्तों की पोस्ट से ही मिली। पता नहीं कैसे क्या हुआ कि वो इस दुनिया को अलविदा कह गया। मैं उसके फेसबुक पेज पर उसकी तस्वीरें देख रहा था। उसका अल्बम उसकी शख़्सियत के रंगों का कोलाज है। इन्हीं तस्वीरों में एक मैं भी था। ख़ैर नियति ने उसकी उम्र की मियाद बहुत कम तय कर दी थी। विकल्प, मेरे दोस्त।..बहुत याद आओगे