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सुख-दुख

स्टीवन हॉकिंग के बहाने ‘विकलांग’ बनाम ‘दिव्यांग’ पर ओम थानवी की चर्चा, जानिए सही क्या है….

Om Thanvi : स्टीवन हॉकिंग चले गए। आइंस्टाइन के बाद सबसे लोकप्रिय वैज्ञानिक थे। उनके अंग विकल थे। लेकिन उन्हें मीडिया विकलांग नहीं, दिव्यांग कहेगा। क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री ने यह शब्द दिया है। क्या प्रधानमंत्री भाषाविज्ञानी हैं? बिलकुल नहीं। न वे मीडिया के भाषा सलाहकार हैं। फिर भी जैसे सरकार में उनका हुक्म चलता है (जो स्वाभाविक है), वैसे ही आजकल मीडिया में भी चल जाता है (जो नितांत अस्वाभाविक है)।

<p>Om Thanvi : स्टीवन हॉकिंग चले गए। आइंस्टाइन के बाद सबसे लोकप्रिय वैज्ञानिक थे। उनके अंग विकल थे। लेकिन उन्हें मीडिया विकलांग नहीं, दिव्यांग कहेगा। क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री ने यह शब्द दिया है। क्या प्रधानमंत्री भाषाविज्ञानी हैं? बिलकुल नहीं। न वे मीडिया के भाषा सलाहकार हैं। फिर भी जैसे सरकार में उनका हुक्म चलता है (जो स्वाभाविक है), वैसे ही आजकल मीडिया में भी चल जाता है (जो नितांत अस्वाभाविक है)।</p>

Om Thanvi : स्टीवन हॉकिंग चले गए। आइंस्टाइन के बाद सबसे लोकप्रिय वैज्ञानिक थे। उनके अंग विकल थे। लेकिन उन्हें मीडिया विकलांग नहीं, दिव्यांग कहेगा। क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री ने यह शब्द दिया है। क्या प्रधानमंत्री भाषाविज्ञानी हैं? बिलकुल नहीं। न वे मीडिया के भाषा सलाहकार हैं। फिर भी जैसे सरकार में उनका हुक्म चलता है (जो स्वाभाविक है), वैसे ही आजकल मीडिया में भी चल जाता है (जो नितांत अस्वाभाविक है)।

विकलांग कहीं से आपत्तिजनक शब्द नहीं है। अंगरेज़ी का डिसेबल (अक्षम या ग़ैर-क़ाबिल) ज़रूर ग़लत रहा होगा। पर वह अंगरेज़ी की समस्या थी, हिंदी की नहीं। जिसके अंग या अंगों में विकार हो, उसे हिंदी में अक्षम कभी नहीं कहा या समझा गया। लेकिन अंगरेज़ी वालों ने disable की जगह differently/specially able/challenged आदि कर अपनी भूल क्या सुधारी, अंगरेज़ीदाँ नौकरशाहों ने हिंदी में भी ‘विकलांग’ प्रयोग को बदलने की क़वायद कर डाली। फिर मोदीजी ने भी वही कोशिश की।

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दिव्यांग प्रयोग किसी विकलांग व्यक्ति का मज़ाक़ उड़ाने से कम नहीं है। दिव्यता का दर्शन और दिव्य-पुरुष, दिव्य-चक्षु, दिव्य-दृष्टि या दिव्य-मूर्ति जैसे प्रयोग एक धर्मसंस्कृति का बोध देते हैं। जबकि विकलांगता का किसी धर्म या समुदाय से कोई लेना-देना नहीं है।फिर उन्हें उन लोगों पर क्यों थोपा जाय, जो अपनी आंगिक चुनौतियों के बावजूद संघर्षरत हैं, सक्रिय हैं?

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दिव्यांग कहकर उन्हें सहानुभूति का पात्र बनाया जाता है। जैसे उनमें बेचारगी हो जिसे नाम-परिवर्तन से दूर कर दिया जाएगा। एक अर्थ में यह उस समुदाय का मज़ाक़ उड़ाना भी है। जैसे ग़रीब को सहानुभूति (!) में सम्पन्न लोग करोड़ीमल या अम्बानी कहने लगें! यह हक़ उन्हें न भाषाशास्त्र देता है, न राजनीति, न शासन। इसलिए न कहें कि हॉकिंग दिव्यांग थे। उनके अंग-प्रत्यंग विकल ज़रूर थे, इसके बावजूद उन्होंने अपने तप और ज्ञान से उन लोगों के दिमाग़ के जाले साफ़ किए जो संसार की वास्तविकता को कभी सही परिप्रेक्ष्य में समझ ही नहीं पाए।

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वरिष्ठ पत्रकार और राजस्थान पत्रिका के संपादकीय सलाहकार ओम थानवी की उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ प्रमुख यूं हैं :

Devendra Surjan पूरे चार साल लगा दिए आपने विकलांग दिव्यांग का भेद करने में . काश कि यह भेद तभी सामने आ जाता जब एक चाय वाले ने अपनी हैसियत का फायदा उठाते अर्थ का अनर्थ कर डाला था . भला हो स्टीवन हॉकिंग का जिनके दिवंगत होने से आप इन दो शब्दों का सही सही भावार्थ व्यक्त कर पाये . इसमें कोई शक नहीं कि आधुनिक समय में विकलांग शब्द के शब्दशः जीवंत उदाहरण स्टीवन हॉकिंग ही थे.

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Ravishanker Acharya क्षमा चाहुंगा सर, आपके तथ्य पूर्णतः उचित ही है, परन्तु मैंने अनेक विकलांगों को अद्भुत और असाधारण विशेष योग्यताओं के साथ देखा है।साधारण मनुष्य चाहकर भी वो योग्यता हासिल नहीं कर पाता।ऐसे व्यक्तित्व वाले लोगों के लिए दिव्यांग शब्द भी उचित ही लगता है। दिव्य अगर विशेष धर्म का बोध कराता लगता है तो divine को कैसे महसूस करे।

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Anurag Dubey असाधारण योग्यता होने का शारीरिक विकलांगता होने अथवा न होने से कोई समवाय संबंध नहीं है। मायने ये कि प्रत्येक विकलाँग के पास असाधारण योग्यता हो यह ज़रूरी नहीं। हाँ लेकिन प्रत्येक विकलाँग के पास एक अंग विशेष (जो विकल हो) का होना अवश्य ही ज़रूरी है और जब आप दिव्यांग कह रहे होते हैं तो असल में आप उस अंग विशेष को दिव्य अंग की उपमा देकर खिल्ली उड़ाने का काम कर रहे होते हैं। यह सब ठीक वैसा ही हो रहा है जैसे अतिरिक्त अंग वाले नंदी को बैलगाड़ी टैंपो में सजाधजाकर पुजवाते हुए धन इकट्ठा किया जाता है!

Musafir Baitha जिस विकलांग हिन्दू धार्मिक मानसिक समझ का नमूना ‘दिव्यांग’ है उसी का उदाहरण गांधी का ‘हरिजन’ भी है।

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Om Thanvi कालखंड में देखना होगा। गांधी और मोदी में ईमानदार सरोकार का फ़ासला एक सदी का है।

Musafir Baitha शब्द को समझने की तमीज़ दोनों की एक ही है सर, बाकी गांधी और मोदी में कोई तुलना नहीं।

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Mukesh Kumar जाने-अनजाने में गांधी जी ने कभी अछूतों को हरिजन कहकर भी यही ग़लती की थी।

Om Thanvi नीयत ठीक थी, इसलिए अपने दौर में चल गया था। जिन संबोधनों के काट के लिए इसे सोचा होगा, वे समुदाय को गाली की तरह प्रयोग होते थे।

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Bhagwan Singh अंधे को प्रज्ञाचक्षु या सूरचक्षु (सूर/सूरा/ सूरदास) कहने के पीछे जो भाव था वह एक विकलांगता तक सिमट कर रह गया. व्यापक आशय वाले एक शब्द की जरूरत थी. नया है इसलिए खटकता मुझे भी है पर प्रयोग अच्छा है.

Om Thanvi पहले सूरदास का प्रयोग भी अनुकंपा में गढ़ा गया होगा जो मज़ाक़-सा साबित हुआ। ग़नीमत है किसी प्रधानमंत्री ने उसकी अनुशंसा नहीं की, वरना सरकारी कामकाज में जैसे दिव्यांगों लिखा जाता है, वैसे ही बाबू लोग ‘सूरदासों के लिए योजना’ लिखते और वंचित समुदाय का मज़ाक़ बनाते।

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Urmilesh Urmil दिव्यांग शब्द सर्वथा अनुपयुक्त है! मैं इसका कभी प्रयोग नहीं करता।

Mohan Lal Mishra पूर्णतः सहमत. दिव्यांग कहना एक प्रकार से चिढ़ाना ही होता है विकलांग को.  एक तो बेचारा विकलांग होता है विशेष अंग कमजोर होता है ऊपर से उन अंगों को दिव्य कहना. ये दिव्यांग शब्द मतिहीन मोदीजी का दिया हुआ है.

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Ramprakash Kushwaha अनन्यांग या अन्यांग कैसा रहेगा !

Om Thanvi ‘प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो’ …

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Anurag Dubey नौकर होने के चलते मैं चाहकर भी इस पोस्ट को शेयर नहीं कर पा रहा हूँ… इससे बड़ी भी विकलांगता कोई होगी भला!

Narendra Tomar विकलांग को दिव्यांग कह कर असल मैं उसे भगवान जैसी चीज से जोड़ा जाता है जिसका अर्थ है की उसे ऐसा उपरवाले ने बनाया है उसके ‘पापों’ की सजा देने के लिए.

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Jai Singh Lochab ईश्वर को भी हॉकिंग ने यह कहकर नकार दिया था कि यह यह ब्रह्माण्ड किसी अद्रश्य शक्ति के कारण नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक प्रक्रिया के कारण हुआ जिसे “big bang” ( a blast) हुआ ब्लेक होल में और ये धरती और लाखों गृह बने!

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Mohan Lodwal Kunjela थानवी जी, स्टीफन हॉकिंग या स्टीवन हॉकिंग (Stephen Hawking), कृपया सही शब्द उच्चारण का उल्लेख करें।

Mahendra Kumar Misra Stephen का सही उच्चारण स्टीवेन ही है। स्टीवेन या स्टीवन दोनों ही प्रचलित हैं।

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Mohan Lodwal Kunjela हमारा शक इसलिए गहरा गया है कि आज सभी राष्ट्रीय स्तर के अखबारों में ‘स्टीफन’ ही लिखा है।

Mahendra Kumar Misra हिन्दीभाषी स्टीफन या स्टीफेन ही बोलते और लिखते हैं अधिकतर। उसमें कुछ बुराई नहीं है।

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Adarsh Prakash बहुत महत्वपूर्ण चिंतन थानवी जी। राजनीति के बहाव में बह रहा है मीडिया, वह भी वर्तमान सत्ता के। मुझे तो हँसी आती है जब इन राजनेताओं को चित्र प्रदर्शनी या साहित्यिक समारोहों में बुलाकर हम गौर्वान्वित महसूस करते हैं जिन्हें इन विषयों का क ख ग तक नहीं मालूम। लेकिन विचार प्रकट करने से यह चूकते नहीं, मानों विश्व का सारा ज्ञान इन्हीं के भेजे में आ सिमटा है। फिर मोदी जी तो मोदी जी ठहरे।

Khursheed Ansari सच मे सर कल जावेद आबिदी और स्टीफ़ेन हाकिंग से जुड़ी हुई कुछ यादों को लिखने की कोशिश कर रहा था और एक अनजान से भय विकलांग लिखने और न लिखने के बीच मुझे परेशान कर गया कि कहीं विकलांग लिख देना क्या किसी कानूनी दांव पेंच में तो नही फंसा देगा और या कि मीडिया बहादुर…

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