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सुख-दुख

विमल मिश्र, सुमंत मिश्र और रेखा खान को ‘वाग्योग पत्रकारिता सम्मान’

विमल मिश्र – एक संभावनाशील सामर्थ्य का सम्मान

निरंजन परिहार-

‘वाग्योग पत्रकारिता सम्मान’ हेतु श्री विमल मिश्र को बधाई। साथियों, विमल मिश्र हमारे साथ इस मंच पर शुरुआती काल से उपस्थित हैं, एवं इस उपस्थिति में उनके कृतित्व व व्यक्तित्व से हमें उनकी योग्यता, विनम्रता व उनके नाम के अनुसार विमलता का दर्शन भी होता है और उसकी तुलना में हमें अपनी तुच्छता का आभास भी। आपको इस बात की खास बधाई कि विमल जी, कि हजारों हजार कमजोरियों की तत्काल प्राप्ति की संभावनाओं वाले इस महा शहर में रहने के बावजूद आप कपटी, कुटिल, काइयां और राजनीतिबाज नहीं हो पाए, जैसे कि हम लोग अक्सर हो ही जाते हैं।

आपका हमारे साथ इस मंच पर होना हम सबके लिए किसी खास अनुभव का अहसास है। इस सम्मान हेतु आपका चयन आपकी क्षमताओं एवं संभावनाशील सामर्थ्य का सम्मान है। आप पत्रकार हैं, पत्रकार थे और रहेंगे भी, इसका प्रमाण यही है कि निवृत्ति के पश्चात अकसर लोग बूढ़ा जाते हैं, लेकिन आप वर्तमान में जी रहे हैं और सबलता से सक्रिय भी है इसकी भी बहुत बहुत बधाई। और खास बात यह भी कि आप हम जैसों के भीतर चिपकी सत्ता के सुख, कीर्ति की कसक और प्रसिद्धि प्राप्ति की लालसा से ऊपर उठे प्राणी हो, और वही बने रहें, यह उम्मीद भी।

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मित्रो, विमल मिश्र बनारसिया हैं, अतः उनके व्यवहार में गंगा की महानता एवं लेखन शैली में उसके बहाव का भाव है। गंगोत्री से निकलकर बनारस आते आते गंगा भले ही मैली हो जाती है, और नरेंद्र मोदी जी के लाख प्रयासों के बावजूद अब तक साफ नहीं हो पा रही है, लेकिन दिल में बनारस को बसाकर मायानगरी मुंबई आए विमल मिश्र का मन गंगोत्री सा साफ है, यह सच्चाई है। वे मुंबईया माहौल में भी हमारी तरह, खासकर मेरी तरह कुलुषित नहीं हो पाए है, तो संभवतया कारण यही है कि वे बाबा विश्वनाथ सी विशालता वाले मन को ओढ़कर इस शहर में पहुंचे और बाबा के पराक्रम की पावन प्रखरता को प्राप्त मन को बनाए रखा। इसीलिए प्राप्ति की लालसाओं, आगे बढ़ने की आकांक्षाओं और दूसरों को पटखनी देकर पीछे छोड़ने की होड़ के भाव ने उनको छुआ तक नहीं।

क्षमा भी बहुत वे उदारता से कर देते हैं, यह उनके करीब के लोग जानते हैं। और लोग तो यह तक जानते हैं कि नवभारत टाइम्स में रहते हुए उनसे अपनत्व दिखानेवालों ने ही उनके साथ जैसे जैसे, जो जो और जैसा जैसा किया, वह ईश्वर करे दुश्मन के साथ भी न हो। फिर भी विमल जी उनको क्षमा कर दिया। उस शाम कईयों ने साफ साफ देखा कि विमल मिश्र आपा नहीं खोते और किस तरह से अपने भीतर के उस सर्जक की सहजता को सरलता से अपने साथ बनाए रख लेते है, जो अपने आसपास की उठापटक, गहमागहमी और उखाड़-पछाड़ से भी उनको विचलित न करे। साथियो, क्षेपक के लिए क्षमा करें, लेकिन मामला विमल मिश्र की विशाल हृदयता का था, और नवभारत टाइम्स की अंदरूनी राजनीति का होने के बावजूद इस प्रसंग अनुरूप था ही आवश्यक भी था, इसीलिए बिंबों में ही सही पेश कर दिया।

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खैर, मूल बात यही है कि ‘वाग्योग पत्रकारिता सम्मान’ प्राप्त करनेवाले विमल मन के विमल मिश्र के लिखे को जिन लोगों ने पढ़ा है, वे समझ सकते हैं कि उनके लिखे में जानकारियां तो होती ही है, लेखन में किसी संगीत सा सुर और गीत सी लय होने के साथ साथ भावनात्मक जुड़ाव की जड़े भी होती है। घटनाओं, हालातों व जीवन के बारे में उनके लेखन में ऐसी सामान्य बोली और मुहावरे भी पढ़ने को मिल सकते है, जो हमारी पत्रकारिता की भाषा से तो लुप्त हो ही गए है, सार्वजनिक जीवन में भी वे सुनाई नहीं देते। ‘वाग्योग पत्रकारिता सम्मान’ उनकी इसी तासीर का सूचक है।

हमारे साथी सुमंत मिश्र एवं रेखा खान को भी इस सम्मान हेतु बधाई। वे दोनों भी मीडिया के तो हैं, पर मीडिया मंच के इस समूह में नहीं है, इसलिए उनकी बात कहीं अन्यत्र करेंगे। विमल मिश्र जी, आपको एक बार फिर इस सार्वजनिक मंच से बधाई। और हां… सत्य को आप यदि उलट भी देंगे, तो भी वह अपने सत्य स्वरूप में ही निखरेगा, इसलिए अपना लिखा यह यदि किसी साथी को विमल मिश्र के स्तुतिगान सा लगे, तो भी कोई परवाह नहीं, क्योंकि सत्य अकसर हर किसी को सुहाता भी कहां है!

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