यशवंत भाई। आपको बधाई कि आपके तकनीकी प्रयोग हमेशा ही आकर्षक होते हैं। नया भड़ास पोर्टल भी आकर्षक है। मगर एक बात है। दो खबरों के बीच में गैप काफी ज्यादा है और पुराने भड़ास की तरह समग्रता नहीं है। अच्छी बात यह है कि जिनके बारे में खबर होती है, उनका मैग्नीफाइंग फोटो इस पोर्टल पर खूब फबता है। इससे खबर में जान आ जाती है। मेरा आग्रह है कि नए पोर्टल को रिडिजाइन करें। फिर से इसमें कुछ बदलाव लाएं तो यह औऱ अधिक आकर्षक हो जाएगा। वैसे अक्षरों का फांट बहुत आकर्षक है। फीचर भी उम्दा हैं। आप प्रयोगधर्मी व्यक्ति हैं। यही गुण मनुष्य को आगे बढ़ाने में सहायक होता है। आप आगे हैं, इसे किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है। आपका ब्लाग इसे सिद्ध कर देता है।
बीच बीच में आपने अपने पोर्टल पर विज्ञान, संस्कृति और इतर क्षेत्र की जानकारियां भी देनी शुरू की थी। उसे जब समय मिले जारी रखिएगा। कोई समय सापेक्ष विशेष रिपोर्ट होती है तो वह भी। हालांकि यह समय साध्य काम है और बड़े स्टाफ की मांग करता है। लेकिन आप जैसे जुझारू आदमी के लिए यह मुश्किल काम नहीं है। आपने किसी भी लेखक को अपने ब्लाग से दूर नहीं रखते। यानी आपके यहां पूर्वाग्रह का कोई स्थान नहीं है। यह काफी अच्छा लगता है। इसीलिए इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है। आखिर भड़ास पर खबर देने वालों की खबर होती है। आपका यह पोर्टल निरंतर निरंतर लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ता रहे, यही मेरी कामना है।
दो लाइन के लिए तनिक विषयांतर कर रहा हूं। पूरे देश में पके केले में न जाने कौन सा केमिकल या रसायन मिलाया जा रहा है कि वह तत्काल पक जाता है लेकिन खाने में केले का स्वाद कड़वा हो जाता है। यह निश्चय ही कार्बाइड नहीं है। कोई और रसायन है। इसी तरह भूंजा (भुने हुए चने, चावल, मकई इत्यादि अन्न) भी अब रसायनों का जहरीला शिकार हो चला है। उसे खा कर मन तो खराब होता ही है, उबकाई आना, सिर दर्द या चक्कर आना जैसी बातें भी सामने आ रही हैं। इस पर फिर कभी लिखूंगा क्योंकि मुझे लगता है यह देशवासियों के प्रति कोई साजिश कर रहा है। होटलों में सब्जियों में केमिकल का कारोबार पहले से ही चरम पर है। इक्कीसवीं सदी में हम कहां जा रहे हैं? किसके हाथ का खिलौना बन रहे हैं? चिंता का विषय है। देशवासियों का स्वास्थ्य ही बरबाद हो जाएगा तो देश की स्थिति भिन्न होगी। हो सकता है यह साजिश हो। हालांकि कुछ लोग इस शंका को मेरी सनक कह सकते हैं। लेकिन क्या यह सचमुच सनक है?
विनय बिहारी सिंह
वरिष्ठ पत्रकार
कोलकाता
vinaybiharisingh@gmail.com
Comments on “पुराने भड़ास की तरह समग्रता नहीं है नए भड़ास में”
satya-vachan—– aapki baat se sahmat hoon main, shayad naye ke naam par yah badlav badhiya nahi hua hai
नया भड़ास आ चुका है। लेकिन शायद पुराने भड़ास पर इसका लिंक नहीं डाला गया है। मुझे नए भड़ास का एड्रेस पता करने में मशक्कत करनी पड़ी। पुराने भड़ास का होमपेज मुझे बेहतर लगता था। क्योंकि सारे नए अपडेट एक विंडो में एक साथ दिख जाते थे। मुझे लगता है कि नया भड़ास कुछ अधिक समय लेगा। फिर भी नया भड़ास एक बेहतर प्रयास है।