औद्योगिक विकास प्राधिकरणों को कोई अफसर अब प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह नहीं चला पायेगा…
Ashwini Kumar Srivastava : प्रदेश के औद्योगिक विकास प्राधिकरणों में बरसों से कुंडली मारकर बैठे भ्रष्ट अफसरों-कर्मियों के लिए आज बड़ा ही बुरा दिन है। राज्यपाल ने आज आठ विधेयकों को अंतिम मंजूरी दी है, जिसमें वह संशोधन भी शामिल है, जिसके तहत अब औद्योगिक विकास प्राधिकरण के अफसर-कर्मी भी प्रदेश के अन्य विकास प्राधिकरणों में ट्रांसफर करके भेजे जा सकेंगे।
राज्य के औद्योगिक विकास पर ग्रहण बनकर छाए हुए ये अफसर-कर्मी किस कदर भ्रष्ट और बेखौफ थे, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण तो मैं खुद रहा हूँ। लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण (लीडा) को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बदल कर अपने ही खासमखास अफसरों-कर्मियों का गिरोह बनाकर वहां के वरिष्ठ अफसर एस. पी.सिंह ने हमारे प्रोजेक्ट की मंजूरी ढाई साल तक किसी न किसी बहाने से लटकाए रखी थी।
जब भी उससे मैं अपनी फ़ाइल आगे बढ़ाने की बात करने जाता था और शासन में उसकी शिकायत की उसे चेतावनी भी देता था तो वह बेहद बेशर्मी और दुःसाहस से एक ही जवाब देता था- ‘ मेरा ट्रांसफर तो प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं कर सकता…’
वह हमसे बेहद मोटी रकम की आस लगाए बैठा था, जो चलन आमतौर पर विकास प्राधिकरणों में नक्शा पास करवाने के लिए चलता भी है। अब हम सस्ते फ्लैट्स की योजना लेकर आ रहे हैं और शुरू में ही करोड़ों रुपये महज सरकारी मंजूरी के नाम पर घूस में ही दे देंगे तो क्या खाक सस्ते फ्लैट बना पाएंगे… अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही दिन-रात जनता को चीख-चीख कर बताते रहें कि उनकी सरकार जनता को सस्ते आवास देने के लिए बिल्डर की राह में कोई रोड़ा नहीं आने देगी…और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यूँ ही दिन-रात जगकर प्रदेश के औद्योगिक विकास के लिए कड़ी मेहनत करते रहें…लेकिन एस. पी. सिंह जैसे भ्रष्ट अफसरों को इससे क्या लेना-देना है…उन्हें तो सिर्फ अपने महल-कोठियां खड़ी करने की ही चिंता है।
बहरहाल, अंत भला तो सब भला की तर्ज पर मेरा तो यह मानना है कि मेरे प्रोजेक्ट को ढाई बरस बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सीधा दखल देकर मंजूरी देने से बड़ा काम तो यही किया है कि अब औद्योगिक विकास प्राधिकरण को कोई अफसर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह नहीं चला पायेगा…और अगर ऐसा करने की अब कोशिश भी करेगा तो उसका तबादला तो कम से कम किया जा सकेगा।
लीडा में एस. पी. सिंह और उनके खासमखास अफसरों-कर्मियों को यह सरकार लीडा से बेदखल करके राजधानी के विकास के लिए बेहद अहम कम से कम एक विभाग को तो भ्रष्टाचार की गंदगी से मुक्त करके पतित-पावन बना पाती है या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा। फिलहाल मुझे तो इस बात की ही खुशी है कि अमृत चख कर लीडा की कुर्सी पर बैठे एस. पी. सिंह को भी योगी सरकार ने अब मृत्युलोक के तमाम आम प्राणियों की ही तरह नश्वर तो बना ही दिया…
दिल्ली के कई बड़े अखबारों में वरिष्ठ पदों पर रहे और अब लखनऊ में रीयल इस्टेट फील्ड में सक्रिय अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.
अश्विनी ने इसी के संबंध में 24 December 2017 को एक पोस्ट लिखा था, जो इस प्रकार है….
सुबह-सुबह इस छोटी सी खबर की एक पंक्ति को पढ़कर बहुत सुखद अनुभूति हुई… इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बाकायदा चेतावनी भरे लहजे में कहा कि बिल्डर की कोई भी फ़ाइल कागज पूरे होने की दशा में प्राधिकरण द्वारा रोकी न जाए। बाकी खबर में उन बिल्डरों को भी गंभीर चेतावनी दी गई है, जिनके चलते देश के लाखों निवेशक हलकान हैं।
इस खबर से साफ पता लग रहा है कि मुख्यमंत्री रियल एस्टेट उद्योग के सभी पहलुओं को अच्छी तरह से समझ रहे हैं। हमारे देश में बेशुमार बिल्डर धोखेबाजी और वादाखिलाफी करके लोगों की गाढ़ी कमाई को सरेआम लूट रहे हैं, यह सच है लेकिन यह भी एक सच है कि जो रियल एस्टेट कंपनियां नियम-कानून से चलकर निवेशक को तय समयसीमा के भीतर और वाजिब कीमत पर घर, फ्लैट या प्लॉट मुहैया कराना चाहती हैं, उन्हें और कोई नहीं बल्कि खुद विकास प्राधिकरण में व्याप्त भ्रष्ट अफसरों का मजबूत गिरोह ही ऐसा करने नहीं दे रहा।
ये भ्रष्ट अफसर इन्हीं बिल्डरों की फाइलें रोक-रोक कर अकूत सम्पति के मालिक भी बन चुके हैं। इसी वजह से नोएडा अथॉरिटी के यादव सिंह जैसे न जाने कितने भ्रष्ट अफसर शासन की पकड़ में भी आ चुके हैं। खुद हमारे प्रोजेक्ट की फ़ाइल को ढाई साल तक दबा कर बैठने वाले भ्रष्ट अफसर एस. पी. सिंह ने भी लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण को एक तरह से अपनी निजी कंपनी में बदल कर रख दिया है। वह इससे पहले भदोही में तैनात था और समाजवादी सरकार में बेहद रसूखदार आईएएस और शिवपाल खेमे के खासमखास अनिल गुप्ता का वरदहस्त पाकर लीडा में न सिर्फ स्थायी हो गया बल्कि एक के बाद एक करके उसने कई अफसर और कर्मचारी भी भदोही से वहां बुलवा कर अपना मजबूत गिरोह खड़ा कर लिया है। यह गिरोह अब एस. पी. सिंह को लीडा में हर गोरखधंधे करने में अपना पूरा योगदान दे रहा है।
जाहिर है, भ्रष्ट अफसरों की ऐसी भयंकर गिरोहबंदी के बाद अगर सरकार लीडा के क्षेत्र में काम करने वाले बिल्डरों को ही निवेशकों को प्रॉपर्टी देर से या महँगी देने का दोष देती है तो वह निश्चित तौर पर गलती ही करेगी। क्योंकि जहां करोड़ों का चढ़ावा चढ़ाये बिना एक पत्ता न हिल पा रहा हो, वहां बिल्डर भला कैसे निवेशकों का हित देख पाएंगे। हमने तो भ्रष्टाचार के खिलाफ खुली जंग छेड़कर पीएमओ और योगी सरकार की मेहरबानी से बिना घूस दिए ही प्रोजेक्ट अप्रूव कराकर तात्कालिक तौर पर एक जीत हासिल कर ली है लेकिन यह हमें भी पता है कि भ्रष्ट अफसरों का यह गिरोह जब तक वहां धूनी रमाकर बैठा है, तब तक न हम और न ही कोई और बिल्डर, इनकी कोपदृष्टि से कोई भी बच नहीं पायेगा।
सरकार को हर हाल में लीडा और अन्य प्राधिकरण में बरसों से जमे बैठे इस तरह के भ्रष्ट कॉकस को तोड़ना ही होगा वरना यूपी के विकास का स्वप्न महज स्वप्न ही रह जायेगा। ये अफसर और कर्मी अगर अलग अलग जगहों और जिम्मेदारियों पर नहीं भेजे गए या प्राधिकरण में बिल्डर की फ़ाइल के आगे बढ़ने को लेकर कोई पारदर्शी व समयबद्ध तंत्र नहीं बनाया गया तो फिर चाहे जितने इन्वेस्टर्स समिट करवा लिए जाएं… यूपी के विकास को ये भ्रष्ट अफसर ऐसे ही ग्रहण लगाए रखेंगे।
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