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वसूली रैकेट पर सरकार का कोई संतोषजनक जवाब नहीं

अखबारों में राहुल गांधी और कांग्रेस के आरोपों को महत्व नहीं मिला लेकिन लचर सरकारी जवाब …. 

संजय कुमार सिंह

इलेक्टोरल बांड से संबंधित जो विवरण भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने जारी किये हैं उससे देश में एक वसूली रैकेट चलते होने का संकेत मिलता है। राहुल गांधी ने कहा है कि इलेक्टोरल बांड का उपयोग दुनिया भर में सबसे बड़े वसूली रैकेट के रूप में किया है। द टेलीग्राफ की खबर के अनुसार उनकी पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई तथा सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की मांग की है। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भाजपा के खाते फ्रीज करने की मांग की है। पी चिदंबरम ने कहा है कि यह योजना घूसखोरी को कानूनी जामा पहनाने के लिए बनाई गई थी जो सुनिश्चित करती है कि सत्तारूढ़ पार्टी को सबसे ज्यादा लाभ हो। जवाब में अमित शाह ने कहा है कि चुनावी बांड खत्म करने से राजनीति में काले धन की वापसी का खतरा है। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार द्वारा वसूली रैकेट चलाये जाने का मामला ज्यादा बड़ा है और जिस ढंग से इसे गोपनीय रखा गया था और अभी भी जानकारी देने में आना-कानी की जा रही है उससे बहुत कुछ साफ लगता है। फिर भी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा है कि ईडी के छापों से (बांड खरीदने का) संबंध सिर्फ पूर्वानुमान है। यह सब तह जब पांच करोड़ की चुकता पूंजी वाली कंपनियों ने 250 करोड़ रुपये से ज्यादा के बांड खरीदे हैं और ये सफेद धन भी हैं तो क्या मतलब रह जाता है, पूर्वानुमान का भी।

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इंडियन एक्सप्रेस में आज पहले पन्ने पर छपी खबर में अमित शाह और केंद्रीय वित्त मंत्री की बातें एक साथ हैं। निर्मला सीतारमन ने कहा, ईडी (की कार्रवाई) से संबंध सिर्फ पूर्वानुमान है। हालांकि नंबर इसीलिए दिये जाने चाहिये थे और नहीं दिये गये हैं तो सुप्रीम कोर्ट ने देने के लिए कह दिया है और आज सभी अखबारों में लीड यही है। इस तरह हुआ यह है कि सरकार द्वारा वसूली रैकेट चलाये जाने का मामला एसबीआई द्वारा दी जाने वाली जानकारी के मुकाबले दबा दिया गया है और आज खबर होनी चाहिये थी कि वसूली रैकेट पर सरकार का कोई संतोष जनक जवाब नहीं तो खबर है, एसबीआई को फटकार या सुप्रीम कोर्ट ने फिर चलाया चाबुक या ऐसी ही बातें हैं। बात इतनी ही नहीं है। सरकार का जवाब संतोषजनक नहीं है फिर भी अमित शाह ने जो कहा है उसे अमर उजाला ने अपने दूसरे पहले पन्ने पर लीड बनाया है जबकि राहुल गांधी और कांग्रेस का आरोप दोनों पहले पन्नों पर नहीं है।   

वसूली, सांसदों की संख्या के अनुसार

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यही नहीं, अमित शाह ने इस कथित वसूली को सांसदों की संख्या से जोड़ दिया है। अगर ऐसा है तो किसी भी दल के सांसद कॉरपोरेट और कारोबारियों से पैसे क्यों ले रहे हैं? अगर ऐसा है तो प्रोटेक्शन मनी ही है। सरकार क्या कर रही है? सरकार का काम तो कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाये रखना है, लेकिन सब सांसद मिलकर वसूली कर रहे हैं। अगर ऐसा है तो स्वीकार किया जाना चाहिये। और चंदे का सांसदों की संख्या से संबंध क्यों होना चाहिये? दिलचस्प यह भी है कि कांग्रेस को हिन्दू विरोधी और भाजपा को हिन्दू हित रक्षक, मुसलमानों को कसने वाला प्रचारित करने में लगा व्हाट्सऐप्प विश्वविद्यालय अब नहीं बता रहा है कि जिनसे वसूली हुई उनमें ज्यादातर हिन्दू ही हैं।

इलेक्टोरल बांड से वसूली किये जाने के संकेत मिलने वाली इंडियन एक्सप्रेस की ढेरों खबरों की सूची कल आप यहां पढ़ चुके हैं। आज के अखबारों में उन खबरों का फॉलो अप होना चाहिये था, जिन्होंने कल खबर नहीं छापी उन्हें आज बताना चाहिये था। भले यह बताते या नहीं बताते कि कल यह खबर रह गई थी। या एसबीआई ने इलेक्टोरल बांड के बारे में जो जानकारी सुप्रीम कोर्ट के कहने पर चुनाव आयोग को दी है उसमें यह निकला है। यह इसलिये भी महत्वपूर्ण है कि सरकार इस जानकारी को छिपा रही थी, पूरी कोशिश हुई कि यह जानकारी नहीं देनी पड़े। एसबीआई ने यहां तक कह दिया कि जानकारी तैयार करने में समय लगेगा आदि आदि। इससे पहले कुछ जानकारी सीलबंद लिफाफे में दी गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने उसे वापस करने और चुनाव आयोग को उसे अपने वेबसाइट पर अपलोड करने का आदेश दिया है।

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बांड का नंबर

जाहिर है, यह सब ऐसी सूचनाएं हैं जिसे सरकार छिपा रही थी और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नहीं, यह जनता को जानना चाहिये। इसमें यह भी महत्वपूर्ण है कि एसबीआई ने जो जानकारी दी है उसमें बांड का नंबर नहीं है। इस बात की संभावना बहुत कम है कि बैंक के पास इसे खरीदने या भुनाने का जो विवरण होगा वह इसके नंबर के बिना होगा। फिर भी जानकारी इसके बिना दी गई है और सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए एसबीआई को फटकार लगाई है। आप जानते हैं कि एसबीआई सरकारी बैंक है और सरकार के नियंत्रण में है। इसलिए वह जो कर रहा है वह सरकार का काम है या सरकारी निर्देश पर किया जा रहा हो सकता है। उसमें वसूली रैकेट लग रहे बांड के मामले में पूरी जानकारी नहीं देना और सुप्रीम कोर्ट को बार-बार कहना पड़े तो खबर है लेकिन सरकार अगर कुछ छिपा रही है तो पत्रकारों का काम है कि पूछें और सरकार का काम है कि संतोषजनक जवाब दे या स्वीकार करे कि जो हो रहा था वह गलत है, या नहीं है।

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वसूली सरकार का पक्ष

आज के अखबारों में पहले पन्ने पर जो खबरें हैं उसमें सरकार का अधिकृत पक्ष दमदार या तर्कसंगत नहीं है। कल सोशल मीडिया पर अमित शाह का एक वीडियो जरूर था। लगभग वैसी ही बातें अमर उजाला में आज उसके दूसरे पहले पन्ने पर लीड है। उसपर आने से पहले बता दूं कि, अमर उजाला में इलेक्टोरल बांड की खबर के बारे में कल मैंने लिखा था, …. यहां लीड के बराबर, ढाई कॉलम में है। शीर्षक है, सिर्फ तीन कंपनियों ने 2744 करोड़ चंदा दिया पार्टियों को, उपशीर्षक है, निर्वाचन आयोग ने सार्वजनिक किया चुनावी बॉान्ड का डाटा। अखबार ने 10 चुनावी दानकर्ता की सूची छापी है और एक खबर है, अन्जान कंपनी फ्यूचर गेमिंग सबसे अधिक, 1368 करोड़ के बांड खरीदे। आज अमित शाह का पक्ष यहां दूसरे पहले पन्ने पर लीड है जो मेरे सात अखबारों में किसी और में पहले पन्ने पर इतना विस्तार से नहीं है।

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अब आइये, देखें अमर उजाला क्या बता रहा है। शीर्षक के अलावा अमित शाह की फोटो है और फोटो कैप्शन के साथ दो अन्य खबरों के शीर्षक प्रमुखता से हैं पहले इन्हें देख लेते हैं। फोटो कैप्शन के नीचे अमित शाह के हवाले से छपा है, “कौन कहता है बॉन्ड काला धन है? यह कंपनी व पार्टी, दोनों की बैलेंस शीट में दिखता है। गोपनीयता तो तब होती जब नकद चंदा लिया जाता, नाम सार्वजनिक नहीं करते, ताकि दूसरे दल की सरकारें बदले की कार्रवाई न करें।” मुझे लगता है कि बांड की बुराई को ही यहां अच्छाई के रूप में पेश किया जा रहा है। वरना बांड पर नंबर अदृश्य हैं, पहले योजना थी कि नहीं बताया जायेगा, एसबीआई ने आरटीआई के जवाब में नहीं बताया है, सुप्रीम कोर्ट के कहने पर भी नबंर नहीं दिया है और यह पक्का नहीं हो रहा है कि जो बांड ईडी के दबाव में खरीदे गये वे भाजपा को ही गये या तृणमूल कांग्रेस को सबसे ज्यादा दान क्यों मिला। यही नहीं, सरकारी बैंक सरकार को जानकारी तो दे ही देगी। नहीं बताने और बदले की कार्रवाई से बचने-बचाने का क्या मतलब?

अमित शाह के तर्क

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अमित शाह का दूसरा तर्क है, भाजपा को 6,000 करोड़ मिले तो 14,000 करोड़ किसे मिले? अव्वल तो अभी पूरी जानकारी नहीं आई है और भाजपा को अपने 6,000 करोड़ का जवाब देने के साथ बाकी का भी जवाब देना चाहिये तो वह सवाल पूछ रही है। आरोप है कि भाजपा को मिले 6,000 करोड़ (अगर इतने ही हैं तो भी) वसूली के हैं। उसे चंदा देने के पुराने तरीके से भी पैसे मिले हैं जो अलग हैं। उसकी खबर अलग है। यहां सिर्फ इलेक्टोरल बांड की बात हो रही है जिसे भाजपा सरकार ने वसूली के लिए शुरू किया है और सरकार में भाजपा है इसलिए जवाब उसे देना है। बाकी के 14,000 करोड़ का भी और अगर वह भी वसूली है तो लानत है। भाजपा सरकार में क्या कर रही थी? और कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है? ये सब सवाल अमित शाह से पूछे जाने चाहिये जो नहीं पूछे गये हैं और उन्हें मन की बात करने के लिए मंच और माइक दे दिया गया है।

एक और खबर है, विपक्ष पर बरसे। इसका शीर्षक है, भ्रष्टाचार में जेल जा रहे लोग भाजपा से सवाल पूछ रहे हैं। सच यह है कि जेल जाने वाले ही नहीं पूछ रहे हैं, और भी लोग पूछ रहे हैं। मैं भी पूछ रहा हूं और जेल जाने वाले ही पूछें, सवाल तो रहेगा ही और जवाब है या नहीं और है तो क्या उसका महत्व कम नहीं होगा। इसमें अमित शाह ने जो सवाल पूछे हैं उसका जवाब तो कोई भी दे सकता है पर वह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि पहले गलत हुआ तो आपने और बड़ी गलती की। पहले वाले को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक नहीं कहा आपके वाले को कहा। पहले लोग वसूली नहीं करते थे ना लगता था ना आरोप था और ना पैसे देने के बाद जांच रुक जाने के उदाहरण थे ना खबरें छापने पर रोक थी। काले धन की वापसी का खतरा भाजपा का महत्वपूर्ण मुद्दा है पर काला धन नकली नोट ही होता है बाकी सब जो कमाता है उसके लिए सफेद ही होता है। टैक्स नहीं देने से काला होता है और टैक्स इसलिए नहीं देता है कि दर ज्यादा है या रिश्वत देनी पड़ती है। वह अलग मुद्दा है और नोटबंदी से ठीक हो रहा था नहीं हुआ। सच कहिये तो ठीक करने की कोशिश ही नहीं हुई। ईमानदारी नहीं थी पर वह भी अलग मुद्दा है। 

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जहां तक इलेक्टोरल बांड का सवाल है, सरकार ने वसूली के उपाय पर संतोषप्रद जवाब नहीं दिया है। अखबार इसे सीधे बताने की बजाय सरकार के लचर जवाब छाप रहे हैं। राहुल गांधी और कांग्रेस के जवाब को महत्व नहीं दिया और सोशल मीडिया पर वीडियो घूम रहा है जिसमें लोग लचर जवाब पर भी ताली बजाते हुए दिखाये जा रहे हैं। यही नहीं, टीएमसी को मिले पैसों पर भी सवाल उठाया जा रहा है। संभवतः तृणमूल ने भी इसका जवाब नहीं दिया है। लेकिन मामला वसूली का है और अगर तृणमूल भी वसूली कर रही थी तो भाजपा या तृणमूल का अपराध कम नहीं हो जायेगा और जवाब भाजपा यानी सत्तारूढ़ दल को ही देना है उसी को देना होगा जिसके पास ईडी और सीबीआई है। इसने बंगाल से कोई रियायत की ऐसा तो है नहीं और की तो क्यों? अखबारों में मुद्दा यह होना चाहिये पर भाजपा अपने बचाव में घुमा रही है और अखबार उसका साथ दे रहे हैं।

हिन्दुस्तान टाइम्स की एक खबर के अनुसार इलेक्टोरल बांड से संबंधित जानकारी को तीन तरह से देखा गया – भौगोलिक, क्षेत्रवार और वित्तीय। भौगोलिक तौर पर यह पाया गया है कि बंगाल में पंजीकृत कंपनियां सबसे बड़ी खरीदार हैं उसके बाद महाराष्ट्र और तेलंगाना में। सबको पता है कि बंगाल में पांव जमाने के लिए भाजपा ने कितना जोर लगाया और कितनी कामयाबी मिली। अगर जोर ज्यादा था तो पैसे ज्यादा खर्च होने होंगे, बजट बड़ा होगा, वसूली ज्यादा करनी होगी। दूसरी ओर, संभ है जो जीता वही सिकदर। पैसे उसे ही मिलें। और अगर आपको लगता है कि कम ताकतवर को मिल गये तो वसूली में कौन सी या कैसी ताकत चलती है यह कोई नियम तो नहीं है। फिर भी तृणमूल को ज्यादा पैसे मिले हैं और गलत है तो कार्रवाई होनी चाहिये उसके लिए भाजपा को माफी नहीं मिल सकती है।

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दान देने वालों यशोदा सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पीटल का भी नाम है। इनमें एक गाजियाबाद में भी है। दो हैदराबाद में हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार तीनों ने दान देने से इनकार किया है। मामला 162 करोड़ का है पर हैदराबाद वाले अस्पताल के मालिकों ने तीन करोड़ के बांड खरीदना स्वीकार किया है। बांड वसूली हो सकती है, यह शक इसलिए भी है कि कई कंपनियों ने अपनी हैसियत से ज्यादा के बांड खरीदे हैं। कोई हैसियत से ज्यादा दान क्यों देगा और किसी अन्य के नाम से क्यों खरीदेगा।  

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