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चबाने वाला तंबाकू 90 प्रतिशत मुंह के कैंसर का प्रमुख कारण!

नई दिल्ली। देश दुनिया में दिन प्रतिदिन बढ़ रही तंबाकू उत्पादों की लत से कैंसर का प्रकोप महामारी का रुप लेता जा रहा है। इसमें खासतौर पर चबाने वाले तंबाकू उत्पादों का उपयेाग प्रमुख है, जिसके कारण 90 प्रतिशत मुंह का कैंसर होता है। इसमें युवा अवस्था में होने वाली मौतों का मुख्य कारण भी मुंह व गले का कैंसर है। हालांकि पूरी दुनियांभर में 27 जुलाई को वर्ल्ड हैड नेक कैंसर डे आज ही के दिन मनाया जा रहा है। इस अवसर पर कैंसर रोग विशेषज्ञों ने एक बहुत ही चिंताजनक आशंका जताई है कि आने वाली सदी तम्बाकू के उपयोग के कारण अरबों मौतें होंगी। यदि कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ तेा इन मौतों में 80 प्रतिशत मौतें विकासशील देशों में होगी। विशेषज्ञों ने लोगों से तंबाकू से दूर रहने की अपील करते हुए यह आशंका जताई और कहा कि कैंसर का मुख्य कारण तंबाकू सेवन है।

वायॅस ऑफ टोबेको विक्टिमस (वीओटीवी) के पैट्रेन एंव मैक्स हास्पीटल के कैंसर सर्जन डा. सौरव गुप्ता ने बताया कि ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे, 2017 के अनुसार भारत में बिड़ी, सिगरेट की लत की तुलना में चबाने वाले तंबाकू की लत के अधिक लोग शिकार हैं। इस सर्वे की रिपोर्ट में पाया गया है कि 21.4 प्रतिशत (15 वर्ष से अधिक ) धूम्रपान रहित तंबाकू का उपयोग करते हैं जबकि 10.7 प्रतिशत धूम्रपान करते हैं। जिसका मुख्य कारण 90 प्रतिशत मुंह का कैंसर है। हालांकि जब तंबाकू की बात होती है, तो सरकार, स्वास्थ्य विशेषज्ञ, गैर सरकारी संगठन और अन्य स्वैच्छिक संगठन तुरंत सिगरेट और बीड़ी के उपयोग और इसके दुष्प्रभाव के बारे में ही अधिक बात करते हैं। दुनियांभर में हैड नेक कैंसर के 5 लाख 50 हजार नए मामले सामने आते है, जिनमें से दो लाख लोगों की मौत हेा जाती है, वहीं भारत में करीब डेढ़ लाख नए मामले सामने आ रहे है। जो कि बेहद चिंता का विषय है।

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इंटरनेशनल फैडरेशन ऑफ हैड नेक आनकोलाजी सेासायटी (आईएफएचएनओएस) ने जुलाई 2014 में न्यूयार्क में 5 वीं वर्ल्ड कांग्रेस में वर्ल्ड हैड नेक केंसर डे मनाने की घोषणा की। यह दिन रोगियों, चिकित्सकों और नीति निर्माताओं को बीमारी और हाल ही में उपचार की दिशा में हुई तरक्की के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक मंच पर लाता है। इस दौरान देखा गया है कि भले ही समस्या धूम्रपान रहित या चबाने वाली तम्बाकू के कारण हो, लेकिन धूम्र रहित तंबाकू के सेवन पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय पर अधिक ध्यान धूम्रपान पर दिया जाता है।

ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (जीएटीएस) 2017 की रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं ने 48.8 पतिशत लोगों को धूम्रपान छोड़ने की सलाह दी है। इसकी तुलना में केवल 31.7 प्रतिशत लोगों को तंबाकू सेवन न करने की सलाह दी गई है। दोनों के बीच 17.1 प्रतिशत का अंतर है। गैर-संचारी रोग (एनसीडी) के खिलाफ अभियान चलाने वाली राज्य सरकारों के स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को सभी तरह के तंबाकू उपयोगकर्ताओं को तंबाकू छोड़ने की सलाह देनी चाहिए। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे, 2017 के अनुसार हैड नेक केंसर डे के मरीजों की संख्या की कुल मिलाकर 57.5 प्रतिशत एशिया में है। इनमें 30-35प्रतिशत मरीज भारत में पाए जाते हैं। तंबाकू या धूम्रपान के धूम्र रहित रूपों का उपयोग करने वाले आम रूप से जानते हैं कि इससे गंभीर बीमारी हो सकती है। लेकिन केवल 49.6 प्रतिशत धूम्र रहित तंबाकू का सेवन करने वाले इसे छोड़ने की सोचते हैं जबकि 55.4 प्रतिशत धूम्रपान करने वालों लोग छोड़ने की योजना या इसके बारे में सोचते हैं। इससे फिर यह पता चलता है कि धूम्र रहित तंबाकू का सेवन करने वालों की तुलना में धूम्रपान करने वाले अधिक लोग छोड़ने की योजना बनाने या छोड़ने की सोच रहे हैं। हमें धूम्र रहित तंबाकू का सेवन करने वालों को छोड़ने का और अधिक परामर्श देने की आवश्यकता है ताकि अधिक संख्या में चबाने वाले तंबाकू उपयोगकर्ता भी इसे छोड़ने के लिए सोचना चाहिए या छोड़ने की योजना को बना सकें।

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वर्ल्ड हैड नेक केंसर डे पर हेड एंड नेक कैंसर सर्जन, टाटा मेमोरियल अस्पताल और वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) के संस्थापक डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने कहा, “धुआं रहित तंबाकू (सुर्ती, खैनी, गुटखा, पान आदि) का उपयोग 90 प्रतिशत मुंह के कैंसर का कारण है। धूम्ररहित तंबाकू के उपयोग के कारण मरीज ऑपरेशन टेबल तक पहुंच जाते हैं। इसका कारण धूम्ररहित तंबाकू(एसएलटी) के उपयोगकर्ता धूम्रपान रहित उत्पादों के सरोगेट विज्ञापन के कारण छोड़ने की योजना बनाने वालों की संख्या कम है। पान मसाला के विज्ञापनों पर रोक लगे होने के बावजूद टीवी चैनलों, रेडियो, समाचार पत्रों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं। विशेष रूप से बच्चे और युवा वर्ग इन विज्ञापनों का आसानी से शिकार हो जाते हैं और विज्ञापनों के लालच में इन उत्पादों को खरीदते भी हैं। पान मसाला और सुगंधित माउथ फ्रेशनर्स के लोकप्रिय ब्रांडों में सुपारी का उपयोग किया जाता है, जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कार्सिनोजेनिक (कैंसर का कारण) के रूप में पुष्टि की गई है। हमें चिकित्सा चिकित्सकों के रूप में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी मरीज हमारे ओपीडी से तंबाकू का सेवन छोड़ने की सलाह के बिना नहीं जाए, चाहे वह धूम्र रहित तंबाकू का सेवन करता है या फिर वह धूम्रपान करता हो। मौखिक कैंसर को रोकने के लिए सरकारों को धूम्ररहित तंबाकू के प्रचलन पर अधिक निवारक रणनीति बनानी चाहिए। मौखिक कैंसर सिर और गले के कार्सिनोमस के प्रमुख कारकों में से एक है।

संबंध हेल्थ फाउंडेशन (एसएचएफ) के ट्रस्टी संजय सेठ ने कहा, “भले ही राज्यों ने तंबाकू के साथ गुटखा और पान मसाला पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन ये उत्पाद हर जगह बड़े पैमाने पर बेचे जाते हैं। महाराष्ट्र ने बिना तंबाकू के पान मसाला पर प्रतिबंध लगाने का साहसिक कदम उठाया है। बच्चों को ये उत्पाद आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं क्योंकि पान मसाला और अन्य तंबाकू उत्पाद बेचने वाली दुकानें उनके स्कूलों व कॉलेजों के बाहर ही हैं। जबकि डॉक्टर इन उत्पादों का उपयोग छोड़ने के लिए रोगियों का उपचार और परामर्श कर रहे हैं, हम सभी को मिल कर गुटखा और तम्बाकू प्रतिबंध अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए काम करना चाहिए। जिससे अंततः धूम्रपान और धूम्र रहित तंबाकू के सेवन के प्रचलन को कम करेगा जो हमारी भावी पीढ़ी को स्वस्थ जीवन प्रदान करेगा।

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धुआं रहित तंबाकू कंपनियों द्वारा सरोगेट विज्ञापन, बड़े कार्यक्रमों का प्रायोजन किया जाता है, जिसके कारण भी हो सकता है कि धुआं रहित तम्बाकू के उपयोगकर्ता कम संख्या में इसे छोड़ रहे हैं।

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