परिवाद सं0-227/2016
1- Prasoon Srivastava s/o Sh. Vijay Kumar Srivastava,
2- Prateek Srivastava s/o Sh. Vijay Kumar Srivastava,
Both R/o 863/8, Mohalla Bairihawa, Post-Gandhi
Nagar, Basti
…Complainants.
Versus
1- Yashoda Super Specialty Hospital
through Chairmen, Nehru Nagar,
IIIrd M, Ghaziabad.
2- Dr. Ajay Panwar,
3- Dr. Saurabh,
4- Dr. Manjari,
All (OPs no. 2, 3 &4) are Consultant at
Yashoda Super Specialty Hospital,
Address: Nehru Nagar, IIIrd M, Ghaziabad.
5- Uttar Pradesh Medical Council,
5, Sarvapalli, Mall Avenue Road,
Lucknow-226001
…Opp. parties.
Present:-¬
1- Hon’ble Sri Rajendra Singh, Presiding Member.
2- Hon’ble Sri Vikas Saxena, Member.
इस मामले में परिवादी प्रसून श्रीवास्तव एवं प्रतीक श्रीवास्तव अपनी मॉं के साथ दिनांक 23-08-2014 को साहिबाबाद रेलवे स्टेशन से सत्याग्रह एक्सप्रेस पकड़ने के लिए गये थे, जहॉं पर उनकी मॉं ट्रेन पर चढ़ते समय गिरने और पटरियों के बीच आने से उनका पैर कुचल गया और अॅगूठा अलग हो गया। स्थानीय लोगों की सहायता से उन्हें अम्बा हास्पिटल में भती करया गया, जिन्होंने उसे अपने यहॉं भर्ती नहीं किया और तब परिवादीगण अपनी मॉं को लेकर यशोधा सुपरस्पेशलिटी हास्पिटल ले पहुँचे और वहॉं आवश्यक फीस जमा की। वहॉं पर उनकी मॉं के कई तरह के आवश्यक परीक्षण किये और उसी दिन उनका आपरेशन किया गया। यह बताया गया कि तीन-चार दिन में उन्हें छोड़ दिया जायेगा। अस्पताल में ही उनकी मॉं की हालत खराब होने लगी, लेकिन काडियोलाजिस्ट को नहीं बुलाया गया। उन्हें बताया गया कि अधिक ब्लड प्रैशर होने के कारण सीने में भारीपन है। उचित दवा और चिकित्सीय सुविधाऐं उपलब्ध न कराने के कारण उनकी मॉं की मृत्यु हो गयी।
परिवादीगण ने स्वयं कहा है कि यह मामला फैट इम्बालिजम का था, इसीलिए उनके सीने में भारीपन था। उन्होंने डॉक्टरों से कई बार इस सम्बन्ध में कहा लेकिन उनकी नहीं सुनी गयी। 25 अगस्त को उनकी मॉं को ए0आई0आई0एम0एस0 में भर्ती करने के लिए कहा गया। उनकी मॉं बोल नहीं पा रही थी और उनकी सारी क्रियाऐं शिथिल पड़ गईं थीं। रात 9.00 बजे उन्हें मृत घोषित किया गया। यह डॉक्टरों की लापरवाही के कारण हुआ है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादीगण ने यह परिवाद राज्य उपभोक्ता आयोग, उ0प्र0, लखनऊ में प्रस्तुत किया, जिसकी सुनवाई राज्य आयोग के माननीय श्री राजेन्द्र सिंह सदस्य एवं माननीय श्री विकास सक्सेना सदस्य द्वारा की गयी।
प्रिसाइडिंग जज माननीय श्री राजेन्द्र सिंह ने इस मामले में अपना 59 पृष्ठ का निर्णय उदघोषित करते हुए यह पाया कि इस मामले में फैट इम्बालिजम एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कोई निश्चित चिकित्सीय औषधि उपलब्ध नहीं है, जो शत-प्रतिशत इलाज सफल हो। फैट इम्बालिजम में फ्रैक्चर होने की दशा में कभी-कभी चर्बी के कण शरीर के विभिन्न हिस्सों और रक्त वाहिनी में पहुँच जाते हैं, जिसके कारण वह रक्त प्रवाह को अवरूद्ध करते हैं, जिसके कारण परिणाम घातक होते हैं। इसी कारण हृदय भी प्रभावित होता है। इसमें कभी-कभी बोन मेरो सीधे निकलकर वेनस सिस्टम में पहुँच जाती है, जिसका परिणाम घातक होता है। यह भी कहा जाता है कि कभी-कभी स्वतन्त्र फैटी एसिड बोन मेरो से निकल कर वेनस में पहुँच जाता है, जिससे स्वतन्त्र फैट या चर्बी की कणिकाऐं बढ़ जाती हैं। ऐसे बहुम कम पेशेण्ट होते हैं, लेकिन यह घातक भी होता है।
इस मामले में परिवादीगण ने स्वयं स्वीकार किया है कि मामला फैट इम्बालिजम का है। इस तरह यह स्पष्ट होता है कि परिवादीगण को यह मालूम था कि यह मामला फैट इम्बालिजम से सम्बन्धित है, जिससे बचने की कम उम्मीद होती है और इसका कोई सुनिश्चित इलाज भी उपलब्ध नहीं है। फैट इम्बालिजम से पलमोनरी इम्बोलिजम भी होता है, जिससे मरीज को श्वास लने में कठिनाई उत्पन्न होती है और इसका विशेष प्रभाव होता है, जो पलमोनरी की आर्टरी के बन्द होने पर होता है। इस मामले में विश्व के चिकित्सा जगत में यह पाया गया है कि मृत्यु की दर 7 से 10 प्रतिशत होती है और इसका कोई विशिष्ट उपचार भी उपलब्ध नहीं है। इससे स्पष्ट है कि इस मामले में डॉक्टर की कोई लापरवाही नहीं है और परिवादीगण द्वारा अनावश्यक रूप से उनके विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत किया गया है, जबकि परिवादीगण को मालूम था कि यह मामला फैट इम्बालिजम से सम्बन्धित है। राज्य उपभोक्ता आयोग ने यह पाया कि इस मामले में परिवादीगण के ऊपर अनुकरणीय हर्जाना लगाने का आधार पर्याप्त है।
अनुकरणीय हर्जाना या अनुकरणीय व्यय वह होता है, जो वादी या अपीलार्थी पर इस आशय से लगाया जाता है कि उसके द्वारा प्रतिवादी या प्रत्यर्थी के विरूद्ध दुर्भावनापूर्ण मन्तव्य से वाद प्रस्तुत किया गया हो। इसका उद्देश्य वाद प्रस्तुत करने वाले को दण्डित करना होता है, जिससे कि वह इस तरह के अन्य मामलों में अपने को अलग रखे और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो पाये।
इसलिए राज्य उपभोक्ता आयोग ने परिवादीगण को आदेश दिया कि वे विपक्षी डॉक्टर अजय पँवार, डॉ0 सौरभ एवं डॉ0 मंजरी में से प्रत्येक को 1,20,000/- रू0 – 1,20,000/- रू0 और विपक्षी यशोदा सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल, गाजियाबाद को 20,000/- रू0 अनुकरणीय हर्जाना के रूप में इस निर्णय के 30 दिन के अन्दर अदा करें, अन्यथा उन्हें इस धनराशि पर 30 दिन के पश्चात् 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज वास्तविक भुगतान की तिथि तक देना होगा।