यशवंत सिंह-
हरिद्वार लुभाता है। गंगा के हरबल/मेडिसिनल पानी के इर्द गिर्द घेरा डेरा डाले साधुओं की निश्चिंतता मुग्ध करती है। माँग के खइबो, तान के सोइबो। गंगा नहाना गंगा पीना गंगा बिछाना गंगा ओढ़ना। गंगा से गंगा तक। दिल पर लोड न लेना। दूसरों को लोड न देना। ये समुदाय धरती से न्यूनतम लेता है, प्रकृति को न्यूनतम डिस्टर्ब करता है। न संग्रह न महत्वाकांक्षा।
पिछले दस बरस से अपन मनुष्य की आंतरिक शक्तियों को समझने बूझने के प्रयोग कर रहे हैं। इस काम में हरिद्वार से काफ़ी मदद मिली। कई क़िस्म के प्रयोग खुद पर भी किए। कुछ प्रयोगों के नतीजे बहुत आत्मघाती हुए। कुछ बहुत उत्साह जनक। अब सब कुछ एक शेप लेता दिख रहा है। एक न्यूनतम गाइडलाइन समझ में आ रही है। विस्तार से कभी लिखूँगा। फ़िलहाल कुछ बातें इशारे इशारे में।
मनुष्य को क्या खाना कैसे जीना क्या करना है क्या नहीं करना है क्या अच्छा है क्या बुरा है की जो ट्रेनिंग मिली है वह काफ़ी कुछ एकरस एक खाँचे वाला है। जो होता आया है जो हो रहा है जो बताया जाता है जो दिखाया जाता है जो बेचा जा रहा है जो बनाने का प्रयास किया जा रहा है वह सब मिला कर आदमी को बर्बाद कर रहा है। या तो हम जीवन पर्यंत समझ नहीं पाते या जब समझते हैं तब उम्र हाथ से निकल चुकी होती है।
जैसे भोजन को लेते हैं। हम जो खूब खाते हैं, जिसे हम खूब पसंद करते हैं, वह हमारी सेहत हमारी आत्मा के लिए ठीक नहीं है। पर उस खाने के आदी बना दिए गए हैं हम। एडिक्ट हो गए हैं हम। आप किसी भी उम्र के हों। आप अगर दोपहर के मुख्य खाने में मूँग दाल चावल हल्दी नमक ढेर सा पानी वाला सूप नुमा खिचड़ी व दही को सबसे स्वादिष्ट भोजन नहीं फ़ील कर पाते तो आपकी ईटिंग हैबिट ठीक नहीं है।
ऊपर जो लिखा हूँ वह ज़्यादातर लोगों के समझ में न आएगा। बहुत ही पूर्वाग्रह के साथ समझेंगे लोग। बस यूँ समझिए कि सारा खेल बस ये है कि आपको अच्छा क्या लगता है (जो कि जबरन लगाया जाता है) और अच्छा क्या लगना चाहिए (जो कि प्राकृतिक है व स्थाई है)।
सुबह उठ कर जो पानी पीता हूँ वह नब्बे फ़ीसदी पेट की समस्याओं का निदान होता है!
खुद पे प्रयोगों का ज़िक्र करूँगा तो बहुत मोटी किताब लिख जाएगी। थोड़ा सा बताता हूँ।सुबह उठ कर जो एक ग्लास पानी छानकर पीता हूँ वह नब्बे फ़ीसदी पेट की समस्याओं का निदान होता है। शेष दस फ़ीसदी दोपहर और रात के भोजन की क्वालिटी से ठीक होता है। सुबह के लिए पानी को शाम को ही रखा जाता है कई चीजों को मिक्स कर।
ये पानी और भोजन भी कुछ फ़ायदा न करेगा अगर आप मन से सहज निर्मल तनावमुक्त और मजबूत न हों। ख़राब मन बहुत सी चीजें ख़राब कर देता है। तो समझिए कि सब इंटरकनेक्टेड है।
आप पेट के किसी भी रोग से परेशान हों। मुझे दस दिन से महीने भर तक का वक्त दीजिए। मेरे पेरोल पर रहिए। न चमत्कार हुआ तो आप यहीं फ़ेसबुक पर मेरे दावे की पोल खोलिएगा। हाँ पर पूरा खुलना पड़ेगा। सब कुछ बताना पड़ेगा। कोई गाँठ न रह जाए। कोई भेद न शेष रहे… न बोल के बता पाएँगे तो लिख कर कहिए, न सामने बोल पाएँगे तो इन्बाक्स में बोलिए। पर कहिए बोलिए। आधा इलाज आधी बीमारी तो नक़ली जीवन है। झूठ दर झूठ का लबादा ओढ़ते जाना है। न चाहते हुए भी अवांछित करते जीते खाते पीते मानते स्वीकारते जाना है।
मिडिल क्लास दवा खा खा कर दूसरों की जेबें भर रहा और खुद खोखला हो रहा, शारीरिक आर्थिक मानसिक रूप से।
बस कुछ दिन और। एक संप्रदाय एक मठ एक वाद एक टीम वर्क एक बाबागिरी एक सामाजिक आध्यात्मिक आंदोलन जो भी समझ लीजिए शुरू किया जाएगा।
एक आख़िरी प्रयोग के मुहाने पर हूँ।
❤️🙏🏼
जै जै
यशवंत