आज सुबह जब नज़र अख़बार के इस इश्तेहार पर पड़ी तो मैं आवाक रह गया। एक पल को तो यक़ीन ही नहीं हुआ। फिर कुछ एक जगह फोन की घंटी बजाने पर विश्वसनीय सूत्रों से पता चला कि एक पूरी ‘विवादास्पद सीरीज’ निकाली गई है जिसमें अगले हफ्ते ‘सुधीर चौधरी’ जी का भी जिक्र होगा। जिसकी मांग और जिसको लेकर कटाक्ष आज कई लोग करते नज़र आए।
वजह जानने पर पता चला कि इस सोच को अमलीजामा पहनाने वालों की चाहत है कि हर बड़े नाम का इस्तेमाल किया जाए और फिर इन सबमें से कोई मानहानि का मुकदमा कर दे, ताकि इससे चैनल को बड़े पैमाने पर पब्लिसिटी मिल जाए। मानहानि से महान आइडिया देने वालों को डर इसलिए नहीं क्योंकि ऐसे 90% मामलों में कुछ होता नहीं और हुआ तो ऐड के 11-12 करोड़ तय बजट में फुल पब्लिसिटी लेकर 1 करोड़ खर्च कर देंगे।
ख़ैर आज चौतरफा ये विषय छाया रहा। अलग-अलग लोग इसपर रायशुमारी करते रहे। ज़ी मीडिया इंडस्ट्री का पहला प्राइवेट चैनल है। मेरा पिछला ऑफिस भी रहा है। लेकिन मुझे और शायद पत्रकारिता कर रहे हर व्यक्ति को निराशा हुई।
हां एंकरलेस कंसेप्ट को लेकर मैं उत्साहित था कि कैसे ये काम करेगा। डॉक्टर सुभाष चंद्रा सर को मैंने हमेशा दूरदृष्टि रखने वाला व्यक्ति माना है। इंडस्ट्री में ऐसा प्रयोग पहले नहीं किया गया था इसलिए ये और उत्साहित करने वाला था। लेकिन एक अच्छा कंसेप्ट कैसे सस्ते आइडिया से नकारात्मक चर्चा का विषय बन सकता है, इसका साक्षात उदाहरण ज़ी हिंदुस्तान का ये इश्तेहार है।
वैसे हम सबने फिल्मों में कई मर्तबा सुना था… गंदा है पर धंधा है… और धंधे से बड़ा कुछ नहीं होता। अब ये हम सबके समक्ष है। ऐसी सोच देने रखने और अमल करने वालों को समस्त पत्रकार बिरादरी की तरफ से साष्टांग दंडवत प्रणाम….
हां कोई नया नवेला चैनल ऐसा करता तो इतनी हैरानी और निराशा नहीं होती। लेकिन शायद फिर ऐसी सार्वजनिक शिकायत भी नहीं होती।
शुभांकर मिश्रा
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