योगी आदित्यनाथ का राज रहा हो या फिर इससे पहले अखिलेश राज, सत्ताधारी पार्टी का झंडा या सत्ताधारी पार्टी से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जुड़ाव ही यूपी में सबसे बड़ा कानून है। नेता और कार्यकर्ताओं का तो खैर पूछना ही क्या, सत्ताधारी दल के सरंक्षण में पल रहे भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारियों के तेवर भी किसी राजा-महाराजा से कम नहीं होते। अभी कल की ही बात है कि एक सरकारी कर्मचारी ने मुझे रात में शराब के नशे में फ़ोन करके बेहद दुःसाहसी तरीके से घूस देने की मांग की।
हालांकि मुझे अब यहां के अधिकारियों व कर्मचारियों के इस दुःसाहसी बर्ताव से जरा भी हैरत नहीं होती क्योंकि वे इसी तरह बिना किसी से डरे खुलेआम आफिस में सबके सामने या फ़ोन करके घूस मांगते ही रहते हैं। उन्हें किसी तरह की रिकॉर्डिंग या एविडेंस का भी डर नहीं होता। यह भी डर नहीं होता कि वह किसी पत्रकार से घूस मांग रहे हैं।
हर किसी की तरह मैं भी जानता हूँ कि यहां यूपी में कारोबार करने के लिए हर विभाग में घूस देना उसी तरह जरूरी है, जिस तरह पेड़-पौधों को पानी देना।
लेकिन वह महोदय चूंकि नशे में थे इसलिये उन्होंने अपनी बात की शुरुआत ही धमकी से की। मुझे उनका लहजा बेहद अखरा इसलिए मैंने भी उनसे उसी लहजे में बात करनी शुरू कर दी। उसके बाद तो उन्होंने मुझे बर्बाद कर देने और न जाने क्या-क्या कर देने की धमकी देने की शुरू की तो मैं खुद भी आपा खो बैठा और उन्हें उनकी औकात दिखा कर चुनौती दे दी कि जो करते बने, कर लेना। वह महाशय अपनी हर पंक्ति में उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और एक अन्य स्थानीय भाजपा नेता का नाम ले-लेकर मुझे धमकाते रहे।
दरअसल, उनके बारे में क्षेत्र में सर्वविदित है कि वे महाघूसखोर हैं और महज जातीय समीकरण के आधार पर उनकी ऐसी पहुंच स्थानीय भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री तक है कि सरकार बनते ही उन्हें उस क्षेत्र में तत्काल बुला लिया गया है।
मजे की बात यह है कि वह महोदय जानते हैं कि मैं पत्रकार हूँ और बार-बार मुझे यह याद भी दिलाते रहे कि आप होंगे पत्रकार लेकिन मैं भी उपमुख्यमंत्री तक सीधी पहुंच रखता हूँ।
मैंने जब कहा कि अगर उपमुख्यमंत्री तक आपकी पहुंच है तो मैं भी मुख्यमंत्री महोदय से व्यक्तिगत तौर पर मिलने की कोशिश करूंगा ताकि आपकी शिकायत की जा सके। इस पर वह महोदय बोले कि तो मुख्यमंत्री मेरा क्या कर लेगा?
उनसे यह जुमला सुनते ही मुझे याद आ गया महज एक साल पहले का वह दौर, जिसमें ऐसे ही एक सरकारी अधिकारी ने हमारे प्रोजेक्ट की फ़ाइल रोककर परेशान किया था। इसके चलते जितनी बार मैं उस अधिकारी से मिलने जाता था तो वह यही और इसी लहजे में कहता था कि मुख्यमंत्री मेरा क्या कर लेगा? वह अधिकारी भी महाघूसखोर और भ्रष्ट था और वहां भी सर्वविदित था कि उसे भी सत्ताधारी भाजपा सरकार का संरक्षण मिला हुआ है।
यह बाद में साबित भी हो गया, जब मेरे इस मामले को मीडिया के जरिये उठाने व मुख्यमंत्री महोदय तक पहुंचाने के बाद उसे वहां से हटाकर हमारी फ़ाइल तो मंजूर करा दी गयी लेकिन सजा नहीं एक तरह से इनाम देकर उसे नोएडा जैसी बेहतरीन कमाई वाली जगह पर भेज दिया गया।
जाहिर है, अगर संरक्षण न मिला होता तो उस अधिकारी को न सिर्फ दंडित किया जाता बल्कि पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए उसकी पोस्टिंग भी किसी शक्तिहीन जगह पर की जाती।
बहरहाल, अखबार पढ़ता हूँ तो योगी सरकार अपनी पीठ थपथपा कर हर रोज जनता को यह बताती नजर आती है कि यहां निवेश का माहौल बनाया जा रहा है। प्रदेश को भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी आदि से मुक्त कराया जा रहा है।
लेकिन जब अपने साथ या अन्य लोगों के साथ हो रही घटनाओं को देखता-सुनता या पढ़ता हूँ तो लगता है कि कैसे यह सरकार भला प्रदेश को सुधार पाएगी, जब वह खुद अपनी पार्टी का झंडा लगाए गुंडों या पार्टी नेताओं के प्रिय भ्रष्टाचारियों आदि को खुला संरक्षण दे रही है!!!
दिल्ली के बड़े अखबारों में प्रतिष्ठित पत्रकार रहने के बाद रियल इस्टेट उद्यमी बने अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से।