कपिल शर्मा के अभिनय वाली ‘ज्विगैटो’ शानदार फिल्म है, नंदिता दास का निर्देशन कमाल है!

Share the news

चंदन पांडेय-

इस फिल्म को देखते हुए आप पाएँगे कि अपने आप में घुटता निम्नवर्ग किस कदर हाशिए पर चला गया है और उसकी घुटन का क्या स्तर है। चुप्पी इस जीवन रूपी जेल को पार कर जाने का लगभग आखिरी उपाय है। लेकिन बोलना तो पड़ता है।

उच्च-गध्यम, माफ कीजिए, उच्च-मध्यम वर्ग की सेवा में लगे करोड़ों उन निम्नवर्गीय मनुष्यों की कहानी हैं जिसे वह मध्यम वर्ग मनुष्य भी नहीं समझना चाहता। एक दृश्य में डेलिवरी ब्वाय मानस भागते हुए लिफ़्ट तक आता है और वहाँ लिफ़्ट का बटन दबा देने के बाद यह लिखा देखता है, डेलिवरी ब्वाय लिफ़्ट का इस्तेमाल न करें। वह फिर पैदल ही सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उस फ़्लैट तक जाता है, जहाँ सिर्फ यह कह देने के कारण कि सामान वापस ले जाना मेरा काम नहीं है, वह मगरूर ग्राहक उसकी झूठी शिकायत करता है और फिर…

एक दूसरे दृश्य में प्रतिमा लिफ्ट का इंतज़ार कर रही है जो उस इमारत में किसी ऐसी स्त्री का मालिश करने जा रही है जिसके कंधों में दर्द है। एक दूसरी स्त्री, जो उसी इमारत में रहती है, भी लिफ्ट का इंतज़ार कर रही है। वह प्रतिमा को देखते ही कहती है, नौकरों का लिफ्ट उस तरफ है।

आप स्विगी, जोमेटो से याDunzo, Blinkit से जब कोई सामान मँगाते हैं तो उस डेलिवरी ब्वाय को लेकर क्या ख्याल आता है? आता भी है या नहीं? यह फिल्म आपको बदल डालेगी। आप इन करोड़ों युवाओं के बारे में बिना किसी स्टूपीडियाना ‘गेज’ के सोचना शुरू कर देंगे।

ऐसे करोड़ों युवकों का शोषण कैसे ये कम्पनियाँ करती हैं, उसे देखना भी हृदयविदारक है। मसलन यह नियम कि दिन के दस डेलिवरी पर इंसेंटिव मिलेगा लेकिन सिस्टम ऐसा है कि दस order आपको मिलेंगे ही नहीं! आपसे आठ या नौ order भिजवा देने के बाद आखिरी order आपको देंगे ही नहीं। और बिना इंसेंटिव के, पंद्रह रुपए प्रति डेलवरी की आमदनी।

नंदिता दास का निर्देशन कमाल है। इन अर्थों में नहीं कि वह निर्देशक हैं इसलिए कुछ भी दिखा सकती हैं। बल्कि इन अर्थों में कि वह फिल्म के शिल्प को लेकर जब कमिट कर जाती हैं तब उससे एक रत्ती भी दूर नहीं होतीं।

वर्षों पहले पनाही की एक फिल्म देखी थी, क्रिमसन गोल्ड। ईरानी फ़िल्मकार यथार्थ के बजाय यथार्थ के शिल्प में फंतासी रचते हैं और वह निस्संदेह एक सुंदर शिल्प है। क्रिमसन गोल्ड फिल्म भी बहुत अच्छी है लेकिन क्राफ़्ट में फर्क है। डेलिवरी ब्वाय के यथार्थ से शुरू तो होती है यह फिल्म लेकिन मध्यांतर के आस-पास एक फंतासी की राह पकड़ लेती है।

नंदिता दास ऐसा नहीं करतीं। इस बेहतरीन फिल्म ‘ज्विटैगो’ में क्रमवार घटनाओं का ऐसा बुनाव करती हैं कि दर्शक को एक पल की भी राहत नहीं मिलती।

लेकिन सबसे अच्छी है फिल्म की लिखाई। स्क्रिप्ट के स्तर पर बेहतरीन है। एक एक दृश्य जैसे डूब डूब कर लिखा गया हो। समीर पाटिल और शाश्वत मिश्र ने इसे लिखा है।

कपिल शर्मा और शहाना गोस्वामी ने उत्कृष्ट अभिनय किया है। लगा ही नहीं कि यह वही कपिल शर्मा है जिसकी हाज़िरजवाबी लाजवाब है।

अगर देख सकते हों तो यह फिल्म जरूर देखिए। इसी शुक्रवार को रिलीज़ हुई है।



भड़ास का ऐसे करें भला- Donate

भड़ास वाट्सएप नंबर- 7678515849



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *