संजय कुमार सिंह-
आजादी के अमृत महोत्सव के बाद द टेलीग्राफ ने दिखाया अंतर
वंशवाद की चौथी पीढ़ी और चायवाला 20 साल में!
राहुल गांधी – एक आम आदमी के साथ। इससे पहले कि भक्तगण पूछें कि राहुल कौन हैं, मैं अपनी समझ और जानकारी से बता देता हूं। जी हां, उनकी दादी और पिता ही नहीं, दादी के पिता भी देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं और ‘विदेशी’ घोषित उनकी मां, दादी की इमरजेंसी के बावजूद, विधिवत (बिना झूठ बोले, बिना किसी अन्ना के प्रचार के, दुनिया की सबसे अमीर महिलाओं में से एक होने के झूठे प्रचार के बावजूद) प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच कर सत्ता छोड़ चुकी हैं।
ऐसे में उस समय वयस्क होने के नाते वंशवाद के संस्कारी उदाहरणों के अनुसार प्रधानमंत्री बन सकते थे, फिर भी नहीं बने। देश की पहली गैर कांग्रेसी, पूर्ण बहुमत वाली सघ परिवार की भाजपा सरकार के शासन में जब सांप्रदायिकता की आग लगाई गई तो उसके खिलाफ मोहब्बत की दुकान खोलने पैदल दक्षिण से उत्तर साढ़े तीन हजार किलोमीटर से ज्यादा चल चुके हैं। इतना ही फिर पश्चिम से पूरब चलने वाले हैं।
इस लिहाज से मेरी राय में देश के अद्वितीय नागरिकों में एक हैं। प्रधानमंत्री बनने के योग्य हों या नहीं, संघ परिवार द्वारा इस पद के लिए आगे किये गये और तमाम नालायकियों के बावजूद अभी तक समर्थन पा रहे, बहुप्रचारित चाय वाले और स्वयंभू ‘मेरा कोई नहीं है’ के तमाम लोगों का बचाव करते देखे गए नरेन्द्र मोदी के मुकाबले कई गुणा ‘आम’ हैं।
द टेलीग्राफ ने उस असली राहुल गांधी के साथ एक सब्जी विक्रेता की तस्वीर छापी है। दूसरी ओर 10 साल प्रधानमंत्री (और उससे पहले मुख्यमंत्री रहने के बाद) चायवाले के की स्थिति यह है कि उनके कार्डबोर्ड के कटआउट रख दिये जाते हैं और लोग उसके साथ तस्वीर खिंचवाकर धन्य होते हैं। दिल्ली के तथाकथित, ‘विश्व पुस्तक मेले’ में भी ऐसा कटआउट रखा गया था और तब भी उसकी आलोचना हुई थी, उसके बावजूद। लोग कहते हैं द टेलीग्राफ का एजंडा है। मैं कहता हूं, होगा। पर सवाल है कि संघ परिवार का एजंडा नहीं है? बात पत्रकारिता की हो तो स्वागत है।
Mohammad Azeem
August 16, 2023 at 8:21 pm
हर मासूम आंख के आंसू पोछेंगे
हर नफरती गिद्ध की आंखें नोचेंगे।
कुछ पुल हैं बनाने
कुछ दीवारें हैं गिरानी
ये हो जाए फिर अपना और
अपनों का कुछ सोचेंगे।
Atul Gupta
August 16, 2023 at 8:28 pm
Adwitiya Naagrik ……. Ha ha ha. A great joke of The Year.