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आज के ‘टेलीग्राफ’ के पहले पन्ने की तस्वीर : 56 इंच मोटी चमड़ी को चीरने में पीड़ा और शर्म को 79 दिन लगे!

आनंद बाज़ार पत्रिका (एबीपी) एक ओर प्रिंट एडिशन द टेलीग्रॉफ में मोदी और भाजपा पर एक से एक हेडिंग लगाती है। लगता है कि यही सबसे अच्छी पत्रकारिता है। वहीं इलेट्रॉनिक संस्करण अर्थात ABP News के माध्यम से मोदी/भाजपा का गुणगान। एक ही कंपनी, दो प्रोडेक्ट। गजब देश है यार। -मोहम्मद अनस



ये साहस ना हिंदी अखबारों में है न चैनलों में, हिंदी बेल्ट के किसी प्रदेश की किसी बड़े मीडिया घराने में नहीं.. क्षमता यहां भी है मगर यहां कुछ के रीढ़ नहीं ..तो कुछ को डर है सरदार से.. इसे कहते बिना कुछ कहे हलक से ज़बान खींच लेना.. फ्रंट पेज है ये! -दीपक कबीर



The Telegraph को हज़ार तोपों की सलामी… मगरमच्छ के आंसू के साथ जो कैप्शन है उसका भावानुवाद कुछ इस तरह होगा… “दर्द और हया को 56 इंच की खाल भेदने में 79 दिन लग गए।” (याद रखिए ‘खाल’ लिखा है ‘सीना’ नहीं)… जब आज के दौर की पत्रकारिता का इतिहास लिखा जाएगा तब उसमें The Telegraph का नाम सोने नहीं हीरे के अक्षरों से लिखा जाएगा। ज़िंदाबाद टेलीग्राफ, जिंदाबाद पत्रकारिता! -देवेंद्र सुरजन

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यहां पर मैं The Telegraph की प्रशंसा करना चाहता हूं, गटर मीडिया के इस दौर में इस तरह से नरेंद्र मोदी की हक़ीक़त छापना बहुत साहस का काम है। मगरमच्छ के आंसू 79 दिन बाद आए। -संजय कुमार मौर्या


समर अनार्या-

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ये है हुइरेम हेरोदास मैतेई। कुल उमर 32 साल। आज मीडिया इसे महिलाओं को नंगा कर उनके साथ यौन हिंसा करने वाली भीड़ का सरगना बता रहा है, दरिंदा बता रहा है, जाने क्या क्या बता रहा है?

आपको लगता है कि शक्ल से ही बेरोजगार लगने वाला ये आदमी असल दरिंदा है? असल सरगना है? अगर आपको लगता है तो आप हद दर्जे के चुगद हैं! ये बेचारा असल सरगना नहीं, शिकार है! हाँ, इसने हिंसा की, एक स्त्री को यही पकड़े हुए था, उसके साथ दरिंदगी कर रहा था। पर ये उतना ही शिकार है जितना वो पीड़ित स्त्री! ये अब जेल जायेगा, ज़िंदगी भर जेल रहेगा, बच के निकला तो जिस समुदाय की स्त्री के साथ इसने ये अमानवीय अपराध किया है उनके हाथों मारा जाएगा! घर तो इसका भीड़ ने आज ही जला दिया!

असल अपराधी वे हैं जिन्होंने बीते 9 सालों में ऐसे मूर्ख बलि के बकरों की फ़ौज खड़ी की है! वे जिन्होंने ऐसों को विश्वास दिलाया है कि तुम हमारे लिए हिंसा करो, हम तुम्हें बचा लेंगे!

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कठुआ बलात्कार कांड के बाद बलात्कारियों के समर्थन में तिरंगा लेकर निकली भीड़ याद है? उसमें जम्मू कश्मीर की तत्कालीन भाजपा-पीडीपी सरकार के कई मंत्री विधायक शामिल थे। वे हैं मणिपुर की इस भीड़ के भी असल सरगना, असल दरिंदे।

रामगढ़, झारखंड लिंचिंग मामला याद है? एक व्यापारी अलीमुद्दीन अंसारी को भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला था? उसमें 12 दोषसिद्ध हुए थे, आजीवन कारावास मिला था। साल भर बाद जेल से जमानत पर निकले थे तो एक केंद्रीय मंत्री ने माला पहना के स्वागत किया था! वो केंद्रीय मंत्री है मणिपुर कि उस भीड़ का सरगना।

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दादरी में अख़लाक़ की लिंचिंग याद है? उसके कई आरोपी बरसों जेल में रहे, एक तो जेल में ही मर भी गया। अभी भी मुक़दमा झेल रहे हैं। उनको भड़काने वाले आज विधायक, सांसद और मंत्री हैं! वे हैं मणिपुर कि भीड़ के असल सरग़ना!

तबरेज़ की लिंचिंग याद है? उसकी हत्या के सभी 10 आरोपियों को अभी अभी 10 साल की जेल हुई है। ज़िंदगी तबाह हो गई उनकी- उनके माई बाप लोग छुड़ा लें कभी तो भी! पर माई बाप लोग? आज विधायक सांसद मंत्री हैं! वे हैं मणिपुर की भीड़ के सरगना!

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गिनाता जा सकता हूँ ऐसे और मामले! पर बात तो आप समझ ही गये हैं!

पर अभी कुछ और सरगना बाक़ी हैं- गोदी मीडिया में बैठे हुए! जो कठुआ में साबित कर रहे थे कि बलात्कार हुआ ही नहीं! जो लिंचिंग मामले में हत्या नहीं पहले गौमांस ढूँढने लगते हैं। जो इन बेरोज़गार बेचारे ज़िंदगी में नाकाम युवाओं को हिंसा करने के लिए उकसाते हैं और फिर हिंसा करने पर तब तक हीरो बनाते हैं जब तक ये जेल न पहुँच जायें! वे एंकर हैं सरग़ना!

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ये शक्ल से ही दो कौड़ी का तीन दिख रहा हुइरेम हेरोदास मैतेई सरग़ना नहीं इनका शिकार है!

आपका अपना बेटा भी इनका शिकार हो जाये इसके पहले चेत जाइए!

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2 Comments

2 Comments

  1. Pankaj

    July 23, 2023 at 5:01 am

    पाल घर के साधु भूल गए या जानबूझ कर नहीं लिखे।

  2. Akhand Pratap

    July 23, 2023 at 9:18 am

    Telligram ko dhanyabaad Jo is tarah likha jisse ki sayad sabhi ko kuch to sacchai Pata chalegi

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