संजय कुमार सिंह –
- किसान आंदोलन स्थगित होने का कारण भी अखबारों ने स्पष्ट रूप से नहीं बताया है
- अंतरराष्ट्रीय खबरों और गैर राजनीतिक निधन की खबरों से दिखी बिखरी अखबारी नीति
- मणिपुर आंदोलन से संबंधित एक बड़ी खबर आज द हिन्दू में है और सिर्फ वहीं है
आज के मेरे हिन्दी अखबारों में दो बड़ी और दिलचस्प खबरें हैं। पहली अमर उजाला में है और दूसरी नवोदय टाइम्स में। इससे अलग अंग्रेजी अखबारों में अंतरराष्ट्रीय और मणिपुर की खबरें हैं। इस बीच गैर राजनीतिक हस्तियों के निधन की खबरों से अखबारों की बिखरी नीति दिख रही है। टाइम्स ऑफ इंडिया में चीन पर रक्षा सचिव का बयान लीड है जबकि पहले पन्ने स पहले के अधपन्ने से पर किसान आंदोलन स्थगित होने की खबर लीड है। शीर्षक है, सीमा पर झड़प में एक की मौत के बाद किसानों ने दिल्ली कूच की अपील स्थगित की। द हिन्दू में दिल्ली में होने वाले वार्षिक रायसीना डायलॉग की खबर लीड है।
इसके अनुसार ग्रीक प्रधानमंत्री ने कहा कि गाजा में युद्ध के बावजूद इंडिया-मिडिल ईस्ट इकोनोमिक कॉरीडोर (आईएमईसी) पर आगे बढ़ना चाहिये और शांति की इस परियोजना का संरक्षण करना चाहिये। द हिन्दू ने मणिपुर की एक खबर को सेकेंड लीड बनाया है। इसके अनुसार मणिपुर हाईकोर्ट ने मैतेई समुदाय के अनुसूचित जनजाति के टैग पर अपने आदेश के विवादास्पद हिस्से को वापस लिया। 20 जून 2023 की बीबीसी की एक खबर के अनुसार मणिपुर हाई कोर्ट ने 27 मार्च को दिए अपने विवादित आदेश में संशोधन के लिए दायर पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया है।
आज की खबर इसी फैसले को संशोधित किये जाने से संबंधित है। मणिपुर हाई कोर्ट ने अपने आदेश में राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने के लिए कहा था। मैतेई ट्राइब्स यूनियन (एमटीयू) की तरफ़ से दायर पुनर्विचार याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार की है. जस्टिस मुरलीधरन की बेंच ने ही एमटीयू की तरफ़ से दायर मूल याचिका पर 27 मार्च को फ़ैसला दिया था। भारतीय जनता पार्टी के नेता और मणिपुर पर्वत क्षेत्रीय परिषद के अध्यक्ष डिंगांगलुंग गंगमेई ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 06 मई 2023 की इस खबर के अनुसार मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के मामले में सुनवाई होगी।
आपको याद होगा, मणिपुर में हिन्सा इन्हीं दिनों शुरू हुई थी। इस लिहाज से यह खबर कितनी महत्वपू्र्ण है और आज इससे संबंधित अन्य तथ्य भी याद दिलाये जाने थे तो यह खबर पहले पन्ने पर ही नहीं है। गौर करने वाली बात है हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील भाजपा नेता ने की थी और केंद्र की सरकार ने मणिपुर मामले में समय पर आवश्य कार्रवाई नहीं की यह अब किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में इस मामले से ही नहीं, मणिपुर की हिन्सा से भाजपा का संबंध समझ में आता है पर अखबार खबर देर पाठकों को राय बनाने लायक नहीं छोड़ते हैं बल्कि अपनी बनी-बनाई राय थोपना चाहते हैं और इसी कोशिश में नजर आते हैं जिसे रेखांकित करने का काम मैं करता हूं।
नवोदय टाइम्स के शीर्षक, कांग्रेस के खातों से निकाले 65 करोड़ – से लगता है कि कांग्रेस ने अपने खाते से खुद 65 करोड़ रुपए निकाल लिये जबकि मामला यह लगता है कि आयकर विभाग ने निकाल लिये। अगर आयकर विभाग ने निकाले हैं तो जबरदस्ती है। वह मांग कर सकता है, खुद कैसे निकाल सकता है। अगर उसे यह अधिकार है और यह कानून सम्मत भी हो तो कानून ठीक होना चाहिये। जुर्माना या कीमत अथवा शुल्क भी मांग कर लिया जायेगा छीना नहीं जायेगा। जेब से नहीं निकाला जायेगा। बैंक अपने शुल्क जरूर खाते से काट ले रहा है और काट कर बताता है। पर यह नया है और यह अधिकार बैंक को भी नहीं दिया जाना चाहिये। सुविधा के लिए लोग बैंक को यह अधिकार स्वेच्छा से दें यह अलग बात है लेकिन अगर मेरी याद्दाश्त सही है तो पहले बैंक अपने शुल्क भी चेक से ही लेता था। उदाहरण ड्राफ्ट बनावाने का खर्च है और कमीशन की राशि जोड़कर चेक बनता था। अब बैंकों को खाते से पैसे काटने का अधिकार है। लेकिन आयकर विभाग खाता जब्त कर सकता है, पैसे कैसे निकाल सकता है? और निकाला है तो शीर्षक स्पष्ट नहीं है।
खबर बताती है कि कांग्रेस के खातों पर रोक की आयकर विभाग की कार्रवाई और फिर सुनवाई के बीच आयकर विभाग ने कांग्रेस के खातों से 65 करोड़ रुपये निकाल लिये। इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, एक दिन पहले दिया आदेश, अगले ही दिन हो गई निकासी। यहां मुद्दा यह है कि खातों पर रोक की खबर फैलने के तुरंत बाद रोक हटाने की खबर आई थी, बाद में पता चला था कि एक निश्चित राशि छोड़कर खाते के परिचालन पर से रोक हटा ली गई है। इसपर कांग्रेस ने कहा था कि जितने पैसे खाते में रखने का आदेश है उतने पैसे हैं ही नहीं तो रोक हटाने का कोई मतलब नहीं है। इस मामले में तथ्य जो भी हो, पूरा मामला स्पष्ट नहीं था और 2018-19 के मामले में आयकर की मांग पर अपील जब लंबित है और कुछ ही दिनों बाद सुनवाई होना निर्धारित है तो खातों पर रोक लगाने का कोई मतलब नहीं था। तब अखबार इस विस्तार में नहीं गये थे।
अब खाते में जितने पैसे हों उससे ज्यादा छोड़कर खाता चल सकता है या रोक हटा दी गई है कहने का भी अर्थ समझना मुश्किल ही है। इन सब मामलों को स्पष्ट किये बगैर कोई भी अपने खाते से पैसे निकाले वह खबर है? हालांकि, आज के समय में एक साथ 65 कलोड़ निकालना या किसी को देना भी खबर है। सामान्य तौर पर पूरा मामला स्पष्ट किये बगैर ऐसी खबर बहुत महत्वपूर्ण नहीं है और पहले पन्ने के लायक तो बिल्कुल नहीं। रिपोर्टर मामले को समझे नहीं या अपनी दिहाड़ी पूरी करने के लिए लचर खबर लिख दे या शीर्षक स्पष्ट नहीं होने से पहले पन्ने पर छप जाये – सब गड़बड़ है।
इस लिहाज से मुझे यह खबर दमदार नहीं लगी। यह अलग बात है कि इसके साथ छपी कांग्रेस की खबर ज्यादा महत्वपूर्ण और दमदार लगती है। कांग्रेस कोषाध्यक्ष अजय माकन ने पूछा है कि भाजपा से आयकर मद में कितने लिये। इस संबंध में ‘भाषा’ की खबर है, कांग्रेस ने बुधवार को आरोप लगाया कि आयकर विभाग ने विभिन्न बैंकों को उसके खातों से 65 करोड़ रुपये की राशि हस्तांतरित करने के लिए कहा है, जबकि आयकर रिटर्न से संबंधित मामला अदालत के विचाराधीन है। पार्टी के कोषाध्यक्ष अजय माकन ने कहा है कि आयकर विभाग का यह कदम अलोकतांत्रिक है। उन्होंने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘कल आयकर विभाग ने बैंकों को कांग्रेस, भारतीय युवा कांग्रेस और एनएसयूआई के खातों से 65 करोड़ रुपये से अधिक हस्तांतरित करने के लिए कहा। यह सरकार की तरफ से उठाए गए चिंताजनक कदम का द्योतक है।”
इसी खबर में आगे कहा गया है, उन्होंने कहा, ‘‘क्या राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के लिए आयकर देना आम बात है? नहीं। क्या भाजपा आयकर देती है? नहीं। फिर कांग्रेस पार्टी से 210 करोड़ रुपये की राशि क्यों मांगी जा रही है?” माकन ने कहा, ‘‘आयकर अपीलीय अधिकरण में कार्यवाही के दौरान हमने अपना मामला प्रस्तुत किया। सुनवाई कल भी जारी रहने वाली है।” उनके मुताबिक, विचाराधीन धनराशि जमीनी स्तर के प्रयासों से जुटाई गई थी, जिसमें युवा कांग्रेस और एनएसयूआई द्वारा चलाए गए ‘क्राउडफंडिंग’ और सदस्यता अभियान शामिल थे. माकन ने कहा, ‘‘यह स्थिति लोकतंत्र की स्थिति पर एक महत्वपूर्ण सवाल उठाती है. क्या यह खतरे में है? हमारी आशा अब न्यायपालिका से है।”
दूसरी खबर अमर उजाला में छपी है। सरकारें जिम्मेदारी निभाने के बजाय कर रहीं अदालत का इस्तेमाल – शीर्षक से चार कॉलम में छपी है। यह खबर किसान आंदोलन से संबंधित मामले में सरकार के प्रयास पर अदालत की टिप्पणी है। यह न सिर्फ किसान आंदोलन के मामले में सही है बल्कि सरकार की प्रवृत्ति भी बताती है और इसलिए चुनाव के माहौल में खास महत्व की है पर किसी और अखबार में नहीं छपी है। खबर के अनुसार हाईकोर्ट ने किसान आंदोलन में जेसीबी व मॉडिफाई ट्रैक्टर के उपयोग को लेकर हरियाणा और केंद्र सरकार की ओर से दायर अर्जी पर तुरंत सुनवाई से इन्कार कर दिया। प्रदर्शनकारियों के सीमा पर जमा होने के लिए पंजाब को फटकारा और पूछा, अब तक क्या कर रही थी सरकार।
इस खबर से पता चलता है कि सरकार किसानों के आंदोलन करने के अधिकार को तो नियंत्रित करना ही चाहती है जो हैं उसे भी रोकने के हर संभव कोशिश कर रही है और इसमें अदालत की मदद भी ली जा रही है। ऐसे तथ्य पहले अखबार बताते थे। अब जब अखबार ऐसी खबरें खुद नहीं छापते हैं तो हाईकोर्ट ने जो खुद देखा और कहा उसे भी नहीं छापा गया है। आज के अखबारों में जिन दो हस्तियों के निधन की खबर है उनमें कोई भी घोषित या अघोषित सरकारी रत्न नहीं थे। इसलिए, हेडलाइन मैनेजमेंट के इस दौर में दिख रहा है कि सरकारी नहीं होने और सरकारी नहीं हो सकने का लाभ मरने के बाद भी मिलता है।
दोनों को निधन के बाद भी लगभग समान प्रतिष्ठा मिली है और कहा जा सकता है कि इस दौर मेंममे दोनों से किसी को भी इससे बेहतर महत्व तभी मिलता जब दोनों का निधन दो अलग दिन होता। फिलहाल तो यही लग रहा है गैर राजनीतिक और गर पत्रकारीय मामले में मीडिया का रुख और उसकी प्रस्तुति सामान्य है। भले ही राजनीतिक मामलों में सबका एक-दूसरे के प्रति पत्रकारीय व्यवहार अलग और कई बार बदला हुआ भी लगता है। आश्चर्यजनक रूप से इन दो मामलों में यह बहुत सामान्य लग रहा है।
संदेशखली के केंद्र में जमीन पर कब्जा
आज इन और ऐसी खबरों के बीच सभी अखबारों की लीड अलग है। सबसे पहले तो द टेलीग्राफ ने बताया है कि संदेशखली मामले के केंद्र में जमीन पर कब्जा है जो अभी तक चल रहे प्रचार से बहुत अलग है। इस सिलसिले में ममता बनर्जी का कहा भी महत्वपूर्ण है। द टेलीग्राफ ने इसे आज अपना कोट बनाया है। इसके अनुसार, मैं वोट के गणित में विश्वास नहीं करती हूं बल्कि मानवता और अधिकारों और द टेलीग्राफ की एक खबर का शीर्षक है, मुख्यमंत्री ने खालिस्तान पर मामला गर्माये रखा। अन्य अखबारों की तरह आज टेलीग्राफ में भी पहले पन्ने पर एक खबर है, वार्ता की पेशकश के बाद किसानों ने मार्च की योजना टाल दी। लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स की आज की लीड का शीर्षक है, पुलिस कार्रवाई में किसान की मौत के बाद आंदोलन स्थगित। इस शीर्षक से लगता है कि द टेलीग्राफ की खबर आंशिक तौर पर गलत है और खबर गलत खबरें देने का भी प्रयास चल रहा है। इसका पता अमर उजाला के शीर्षक से लगता है जो किसान की मौत की खबर तो शीर्षक में देता है पर यह नहीं बताता कि आंदोलन टलने का कारण मौत ही है।
अमर उजाला का शीर्षक है, किसानों ने दिल्ली कूच दो दिन टाला सीमा पर तनाव, एक किसान की मौत। उपशीर्षक है, शंभू व खनौरी-दाता सिंह सीमा पर डटे किसान 12 पुलिसकर्मी और 23 किसान घायल। केंद्रीय मंत्री (अर्जुन) मुंडा ने दिया बातचीत का न्योता, शांति की अपील तथा आगे की आगे की रणनीति पर कल फैसला करेंगे किसान। नवोदय टाइम्स में इस खबर का शीर्षक है, दिन भर तनाव, कूच दो दिन टला। यहां एक छोटी सी खबर तीन कॉलम में छपी है। इसका शीर्षक है, चीन से सैन्यवार्ता रही बेनतीजा। लेकिन यूपी में कांग्रेस-सपा डील डन की खबर भी है।