Girijesh Vashistha : हमारे पुराने मित्र, साथी और बेहद भले आदमी रुचिर गर्ग राजनीति को प्राप्त हो गए हैं.उन्होंने राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस को धारण किया. लेकिन वो राजनीति में करेंगे क्या ? चाल-फरेब, झूठ धोखा-धड़ी, धन-संपदा, एक भी ‘सद्गुण’ नहीं है . मोटी चमड़ी भी नहीं है. चिंता होना स्वाभाविक है. इस चक्कर में शरीफ आदमी की शुगर न गड़बड़ा जाए. भगवान करे राजनीति का सतयुग आ गया हो और वो बहुत सफल हों.
Ramesh Sharma : सहारा न्यूज ब्यूरो रायपुर में 2003 से करीब 9 साल मेरे वरिष्ठ सहयोगी रहे रूचिर गर्ग ने नवभारत की एडिटरी छोड़ने के बाद सारी अटकलों को ठिकाने लगा दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। पत्रकार कोई भी हो मेरा मानना है वह राजनीति से असंपृक्त नहीं रह सकता और जो कहते हैं कि उनको राजनीति में नहीं जाना, उनकी विवशता दरअसल यह होती है कि उनको राजनीति नहीं आती या रास नहीं आती। रुचिर में राजनीतिक प्रतिभा कूट कूट कर भरी है, साथ में एक कमिटेड एक्टिविज्म भी है जिसके संस्कार उनके पिता से मिले हैं। अटलजी वो आदरणीय हस्ती रहे जिनपर हमदोनो के विचार मिले।
एक किस्सा मुझे याद आता है। एक माता पिता विहीन 14 साल की बच्ची रायपुर में घरों में झाड़ू पोछा करके अपने छोटे भाई बहनों को पालती थी। मुझे उसके बारे में पता चला। मैंने रूचिर से दफ्तर में डिस्कस किया, “यार बॉस, उसकी कुछ मदद होनी चाहिए।” रूचिर ने मदद के लिए चीखते हुए सारे दिन सहारा न्यूज चैनल पर वो खबर तान दी। हैरान करने वाला नतीजा। उस बच्ची का अकाउंट खुल गया। रात के बुलेटिन में पता चला उस बच्ची के अकाउंट में 12 लाख रुपए जमा हो गए। वो भावना वो जज़्बा लिए अगर वे राजनीति में आते हैं तो कौन कहेगा स्वागत नहीं है? शहरों से उपेक्षित रीजनल पत्रकार बिरादरी का भी कल्याण होगा क्योंकि उनकी समस्याओं का उनको बखूबी पता है। मेरी हार्दिक शुभकामना।
Sunil Kumar : रुचिर गर्ग जैसे पत्रकार का राजनीति में जाना… छत्तीसगढ़ के सबसे होनहार पत्रकार रूचिर गर्ग के कांग्रेस में जाने से बहुत से लोगों को हैरानी हो सकती है कि प्रदेश के सबसे बड़े और सबसे अच्छे अखबारों में काम करने के बाद, और अभी लंबी कामकाजी उम्र बाकी रहने पर भी उन्होंने राजनीति में जाना क्यों तय किया। वे न तो पहले पत्रकार हैं जो कि राजनीति में गए हैं, और न ही आखिरी। लेकिन पत्रकारिता में रहते हुए रूचिर गर्ग ने कभी कोई राजनीतिक पक्षपात नहीं किया, और खासे बदनाम इस पेशे में वे बिल्कुल निर्विवाद बने हुए मेहनत से काम करते रहे।
उनकी अपनी एक विचारधारा थी, लेकिन उसकी वजह से उन्होंने अपने अखबारों में कभी समाचारों को प्रभावित नहीं किया, और इसीलिए तमाम पार्टियों में, तमाम नेताओं के बीच उनकी बहुत अच्छी साख रही। रूचिर का राजनीति में जाना, राजनीति का नफा और पत्रकारिता का नुकसान है। फिर भी यह बात समझने की जरूरत है कि लोगों को अपनी निजी जिंदगी और अपने सार्वजनिक कामकाज को लेकर हर किस्म के फैसले लेने की आजादी रहती है, और इस आजादी का इस्तेमाल बिना मिलावट ईमानदारी से किया जाना चाहिए।
बहुत से लोग अखबारनवीसी की आड़ में नेतागिरी करते हैं, और कुछ लोग तो पत्रकारिता करने के दावे के साथ-साथ दलगत राजनीति भी करते हैं, और वे उस कार की तरह दिखते हैं जिस पर किसी पार्टी का निशान भी चिपका होता है, और प्रेस भी लिखा होता है। ऐसे में ये दोनों पेशे इतने अलग-अलग मिजाज के हैं कि इन्हें अलग-अलग रखकर ही काम करना ठीक है। जब तक एक पेशे में रहे तब तक दूसरे पेशे का काम नहीं करना चाहिए। लेकिन इसका यह मतलब कहीं नहीं होता कि अगर पत्रकारिता शुरू कर दी तो आगे कभी राजनीति में जाया ही न जाए। राजनीति में जाकर बहुत से लोग ऐसे काम कर सकते हैं जो कि अपने पिछले पेशे या कारोबार में नहीं कर पाए थे। कुछ हफ्ते पहले ही छत्तीसगढ़ के एक नौजवान आईएएस अफसर ओपी चौधरी ने भी कलेक्टरी छोड़ी और भाजपा में दाखिला लिया। अपने इलाके, और अपने लोगों की सेवा की उनकी नीयत के चलते उन्हें लगा कि शासन की कुर्सी पर बैठने के बजाय वे राजनीति के रास्ते बेहतर काम कर सकेंगे। और शायद रूचिर को भी यही लगा होगा कि पत्रकारिता की ताकत अब सीमित रह गई है, और लोकतंत्र को लेकर अपनी हसरतों को अगर पूरा करना है तो राजनीति के रास्ते सड़क पर उतरना होगा।
यह एक अच्छी बात है कि राजनीतिक दलों में घुटे हुए छंटैल लोगों के बीच कुछ भले लोग भी आ रहे हैं, और वे खुलकर पेशा बदलकर आ रहे हैं। बुरा तो तब होता जब वे पुराने पेशे में रहते हुए नए पेशे का काम करते। अब चुनावी-राजनीतिक लोकतंत्र में छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस का स्कोर एक-एक गोल का हो गया है। भाजपा को एक अच्छी साख वाला अफसर मिला, और कांग्रेस को एक अच्छी साख वाला अखबारनवीस। दोनों ही पार्टियां अलग-अलग किस्म की कई सीडी की खबरों को लेकर बुरी तरह की बदनामी झेल रही थीं, और लोगों को लग रहा था कि क्या राजनीति स्टिंग ऑपरेशन और सेक्स-सीडी का धंधा हो गई है, ऐसे निराश लोगों को राजनीति में कुछ भले लोगों के आने से राहत भी लगेगी। लोकतंत्र के लिए यही अच्छा है कि पुराने और पेशेवर छंटैल लोगों के बीच बीच-बीच में कुछ नए, भले, कामयाब, और जुझारू लोग आते रहें। राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि अपने बीच आए ऐसे लोगों के हुनर, उनकी काबिलीयत का बेहतर इस्तेमाल करें।
जो लोग अखबारनवीस बनकर राजनीति करते हैं, वे राजनीति का तो शायद भला करते हैं, लेकिन अखबारनवीसी का नुकसान करते हैं। इसलिए लोगों को अपना कामकाज बिल्कुल साफ-साफ, अलग-अलग रखना चाहिए। रूचिर गर्ग के साथ कभी कोई विवाद नहीं जुड़ा रहा, और वे एक जुझारू धर्मनिरपेक्ष नेता हैं। वे कांग्रेस के भीतर भी उन नेताओं में से रहेंगे जो कि साम्प्रदायिकता के मुद्दे पर चुप रहने के बजाय संघर्ष करने वाले हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी को आज की चल रही बदनामी के बीच यह एक बड़ा फायदा हुआ है।
पत्रकार गिरिजेश वशिष्ट, रमेश शर्मा और सुनील कुमार की एफबी वॉल से.
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी की टिप्पणी पढ़ें…