अखबार यह नहीं बतायेंगे और बतायें भी तो क्या फर्क पड़ेगा, वाह, वाह राम जी, जोड़ी क्या बनाई है …
संजय कुमार सिंह
आज के अखबारों से देश को पता चला कि आम चुनाव सिर पर हैं, चुनाव कराने वालों की नियुक्ति होनी है, नहीं हुई तो जिस एक व्यक्ति को चुनाव कराना होगा उसे पता नहीं है कि सहयोगी मिलेंगे कि नहीं और मिलेंगे तो कौन होंगे, कैसे होंगे। जो व्यक्ति चुनाव कराने वालों की नियुक्ति करेगा वह खुद भी चुनाव लड़ने वाला है और पहले ही घोषित कर चुका है कि वही जीत कर आ रहा है। उसके पास यह बताने के लिए कुछ नहीं है कि उसे क्यों वोट दिया जाये या कम से कम बता तो नहीं रहा है। फिर भी यह दावा कर चुका है कि वह और उसका गठबंधन 400 पार करेगा। इसके लिए वह विपक्ष की आलोचना करता है। उनपर झूठे-सच्चे आरोप लगाता है अपनी झूठी प्रशंसा करता है। पहले जो चुनाव हुए हैं, अनुमानों का जो हाल हुआ है उसमें चुनाव क्या होगा कैसे होगा वह तो पता नहीं है पर प्रभावित करने के तमाम उपाय सार्वजनिक हैं।
इनमें एक साल में सबसे ज्यादा भारत रत्न देना, दिल जीतना, दल बदल कराना, इलेक्टोरल बांड से संबंधित जानकारी नहीं दिया जाना और विधायकों की खरीद से सरकार गिराने के रिकार्ड मामले शामिल हैं। चुनाव निष्पक्ष होंगे इसका कोई आश्वासन कहने – दिखाने के लिए भी नहीं है। ऐसे में मेरा यह मानना कि जिसके कारण यह व्यवस्था है उसे चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये। पर मैं कुछ कर नहीं सकता जैसी मेरी लाचारी चुनाव परिणाम के बारे में बहुत कुछ बता देती है। फिर भी चुनाव होंगे, नतीजे आयेंगे और व्यवस्था चलती रहेगी। कायदे से ये खबरें होनी ही नहीं चाहिये थी पर वर्षों पूर्व मीडिया में प्लांट किये गये लोग ऐसी खबरों (और उपायों) को मास्टर स्ट्रोक कहते हैं।
आज लगभग सभी अखबारों में चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे की खबर प्रमुखता से है। इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, अमर उजाला और नवोदय टाइम्स में यह लीड है। द हिन्दू में यह लीड के बराबर में टॉप पर है, हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर यह सेकेंड लीड है। अकेले द टेलीग्राफ में यह सिंगल कॉलम में है और सबसे छोटी खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में तीन कॉलम में है। खबरों में बताया गया है कि तीन में से एक चुनाव आयुक्त का पद पहले से खाली था और अब यह एक और खाली हो गया। चुनाव सिर पर हैं और कहने की जरूरत नहीं है कि यह सरकार की ओर से चुनाव के लिए की गई ‘व्यवस्था’ है। ऐसे में खबर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, इस्तीफा क्यों हुआ। जाहिर है, किसी व्यक्ति के लिये इस्तीफे का कारण बताना जरूरी नहीं है। व्यक्ति बता भी दे तो सरकार के लिए बताना जरूरी नहीं है लेकिन जब अखबार रोज सरकार की चुनावी तैयारियों का प्रचार कर रहे हैं जब चुनाव कराने वाली संस्था ही तैयार नहीं है, एक पद खाली था और दूसरा इस्तीफा हो जाता है अखबारों का काम है कि इस्तीफे का कारण बताये कम से कम अटकल लगाये।
कई बार इस्तीफा देने वाला कारण नहीं बताता है लेकिन कारण स्पष्ट होते हैं, अखबारों का काम है कि वे ऐसे मौकों पर सही जानकारी दें पर आज किसी भी शीर्षक से इस्तीफे का कारण पता नहीं चलता है। मैं सभी खबरों को पढ़कर इस्तीफे का कारण जानने की कोशिश करता हूं और बताता हूं कि क्या खास बातें हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है कि उनका कार्यकाल 2027 तक था और 2025 में वे मुख्य चुनाव आयुक्त बनने वाले थे। दूसरे चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडेय पिछले महीने रिटायर हो चुके हैं और अभी उनकी जगह नियुक्ति नहीं हुई है।
1. हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा है – चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने गुमनाम रहने की शर्त पर कहा कि दोनों चुनाव आयुक्तों में कुछ मतभेद लगते हैं पर उन्होंने विवरण नहीं दिया।
2. इंडियन एक्सप्रेस ने शीर्षक में बताया है कि नई नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री का पैनल अगले हफ्ते बैठेगा। उपशीर्षक विपक्ष का आरोप है, कोई पारदर्शिता नहीं है …. चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है। इस्तीफे का कारण पहले पन्ने पर जितनी खबर है उसमें नहीं है।
3. द हिन्दू में भी इस्तीफे का कोई कारण नहीं बताया गया है। यह जरूर लिखा है कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स ने नियुक्ति के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था पर एडीआर के चेयरमैने ने द हिन्दू से कहा है, हमें खुशी है कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
4. टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि उसे पता चला है कि इस्तीफे की कॉपी मुख्य चुनाव आयुक्त से साझा नहीं की गई है। कल इस्तीफा हुआ, कल ही स्वीकार किया गया औऱ कल ही घोषणा हो गई। खबर में लिखा है कि इस्तीफे का कोई आधिकारिक कारण नहीं बताया गया और इस कई भृकुटियां तनीं।
5. द टेलीग्राफ ने लिखा है, गोयल ने इस अखबार के कॉल और मैसेज का जवाब नहीं दिया। कलकत्ता में चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस में वे अनुपस्थित थे, आयोग के अधिकारी ने कहा कि यह खराब स्वास्थ्य के कारण था।
अरुण गोयल से किसी ने बात नहीं की
कहने की जरूरत नहीं है कि इस खबर का जो हिस्सा पहले पन्ने पर छपा है उतने में अकेले द टेलीग्राफ ने लिखा है कि उसने बात करने की कोशिश की पर कामयाबी नहीं मिली। ऐसे में अखबारों के साथ-साथ सरकार की भूमिका या चुनाव के प्रति गंभीरता को समझा जा सकता है। हालांकि, टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि राष्ट्रपति के निर्णय के अनुसार चुनाव आयोग एक व्यक्ति का भी हो सकता है। वैसे, अभी वह मुद्दा नहीं है। आज और इससे पहले का मुद्दा यह था कि रिटायर होने वाले चुनाव आयुक्त का पद खाली है या उनकी जगह किसी की नियुक्ति नहीं हो रही है। जब रोज यह चर्चा चल रही है कि किसी भी दिन चुनाव की घोषणा हो सकती है तब यह क्यों नहीं बताया जा रहा था कि एक पद खाली है और दूसरे से भी इस्तीफा हो सकता है।
अमर उजाला ने भले ही इस खबर को लीड बनाया है पर शीर्षक, खबर और भाषाशैली से नहीं लगता है कि यह कोई बड़ी बात है। अगर है तो इतनी ही बड़ी कि लीड बना दिया। नवोदय टाइम्स में एजेंसी की खबर है और यह भी ऐसे लिखी गई है जैसे सब कुछ सामान्य और ठीक-ठाक है। अमर उजाला ने खबर के बहुत सारे पक्ष दे दिये। इनके अनुसार, 1985 बैच के अरुण गोयल ने 18 नवंबर 2022 को स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ली थी और अगले ही दिन उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस जल्बाजी पर सवाल पूछे थे। यही नहीं, सरकार ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए मनमाफिक कानून बना लिया है। ऐसे में यह इस्तीफा मायने रखता है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इससे पहले एक और चुनाव आयुक्त अशोक लवासा को चुनाव आयोग छोड़ना पड़ा था। भले उन्होंने स्वेच्छा से छोड़ा हो पर उन्हें मजबूर किये जाने के कारण सार्वजनिक थे। तब सोशल मीडिया पर चर्चा थी कि सोशल मीडिया पर चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रास्ते में आने के बाद से ही अशोक लवासा को निर्वाचन आयोग से दूर किये जाने के कयास लगाये जा रहे थे।
प्रधानमंत्री की गैर जरूरी प्रशंसा
वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन ने इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित नीरजा चौधरी की एक रिपोर्ट को साझा करते हुए लिखा है, नीरजा चौधरी के लिये सुषमा स्वराज की नातज़ुर्बेकार बेटी बांसुरी स्वराज को नई दिल्ली से बीजेपी का उम्मीदवार बनाना मास्टरस्ट्रोक है और सड़कें नाप रहा राहुल गांधी डायनास्ट है। आप जानते हैं कि राहुल गांधी की न्याय यात्रा और भारत जोड़ो यात्रा को मीडिया में कितना और कैसे कवर किया जा रहा है और पहले की यात्राओं को कैसे कवर किया जाता रहा है। प्रशांत टंडन ने नीरजा चौधरी के इस लेख पर ही सवाल नहीं उठाया है, यह भी बताया है कि कांग्रेस के शासन में ऐसे विरोधियों को महत्व दिया जाता था। उन्होंने लिखा है, यूपीए सरकार में अंबिका सोनी ने जब टीआरपी के लिऐ कमेटी बनाई तो उन्हें सिर्फ नीरजा चौधरी ही दिखाई दी थीं। संभव है कांग्रेस उन्हें निष्पक्ष पत्रकार समझती रही हो। अब भाजपा राज में मजबूरी है कि आप सरकार के समर्थन में हों या विरोध में। उनका दावा है कि सरकार की आलोचना करें तो अच्छे काम की तारीफ भी करें। पर वह अलग मुद्दा है।
सवाल यह है कि नरेन्द्र मोदी या भाजपा की राजनीति का विरोध क्यों नहीं होता या वो जो करते हैं सब सही कैसे हो सकता है। पहले मीनाक्षी लेखी कोभाजपा ने ही उम्मीदवार बनाया। वह कांग्रेस के दबाव में तो रहा नहीं होगा। अब उनका काम और पार्टी के प्रति योगदान जो हो, सवाल का जवाब देने से बचने के लिए उन्हें दौड़ लगाते बहुतों ने देखा है। ऐसे में उन्हें टिकट नहीं देना उनकी हार की आशंका के कारण ही है और नई नवेली बांसुरी स्वराज से उम्मीद ही की जा सकती है। इसके लिए नरेन्द्र मोदी की तारीफ में इतना लिखना वाकई कमाल है। पर आजकल यही हो रहा है। जितेन्द्र कुमार ने प्रशांत टंडन के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा है, मुझे तो लगता है कि यह मीनाक्षी लेखी के लिए भी मास्टर स्ट्रोक है जिसका टिकट काटकर बांसुरी स्वराज को दिया गया है। मुझे भी यही लगता है कि मीनाक्षी लेखी का हारना तय लगा तो उन्हें हटा दिया गया। पार्टी के पास जो सबसे उपयुक्त था उसे उम्मीदवार बनाया गया है इसमें तारीफ के लायक कुछ नहीं है।
अपने पाठकों के लिए मैं नीरजा चौधरी के लेख के शीर्षक का अनुवाद बता दूं। मुख्य शीर्षक है, नई दिल्ली से बांसुरी स्वराज को टिकट देना मोदी के मिशन ’24 के बारे में क्या कहता है। उपशीर्षक है, वैसे तो बोलने में बांसुरी में सुषमा की छाया है, प्रधानमंत्री ने दिखाया है कि वे बीती ताहि बिसार दे में यकीन करते हैं और 370 सीटों के लक्ष्य में इस बार प्राथमिकता जीतने की है। मुझे यह समझ में नहीं आया कि हेमा मालिनी, मनोज तिवारी, रवि किशन, निरहुआ के बाद पवन सिंह को टिकट देने की घोषणा क्या उसी बेइज्जती के लिए दी गई थी जो हुई? जो भी हो, इस तरह की पक्षपाती रिपोर्टिंग की अपनी समस्या है और दुर्भाग्य से यह इंडियन एक्सप्रेस भी कर रहा है। हिन्दी के पाठक अगर नीरजा चौधरी को नहीं जानते हैं तो बता दूं कि वे इंडियन एक्सप्रेस में नियमित कॉलम लिखती हैं, कांट्रीब्यूटिंग एडिटर हैं और पिछले 10 चुनाव कवर कर चुकी हैं। हाल में उनकी एक किताब आई है, हाऊ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड।
खबरें जो दब जा रही हैं
सरकार, भाजपा और परिवार के प्रचार में जो खबरें छूट जाती हैं उनमें आज की कुछ खबरें जो मेरे किसी न किसी अखबार में पहले पन्ने पर हैं।
1. किसान आज 52 जगहों पर रेलों का चक्का जाम करेंगे (अखबारों का काम है कि उनकी परेशानी, मांग और सरकार का पक्ष बतायें। पर आपने कहां देखा? व्हाट्सऐप्प फॉर्वार्ड छोड़कर। वह खबर नहीं होती, आप पढ़ते, फॉर्वार्ड करते हैं तो अब भी छोड़ दीजिये।)
2. 13 मार्च को मौजूदा कैबिनेट की आखिरी बैठक होगी, 14 को चुनाव की तारीखों का एलान होगा।
3. बसपा अकेले लड़ेगी, गठबंधन की बात विरोधियों की अफवाह : मायावती
4. रामनवमी पर बंगाल में पहली बार छुट्टी
5. वैसे तो सीबीआई तमाम मामलों की जांच जबरन करने लगती है लेकिन वायनाड में छात्र की जांच की मांग केरल के मुख्यमंत्री ने की है।
6. तेलुगू देशम पार्टी ने आंध्र प्रदेश में भाजपा से करार किया, फिर एनडीए में शामिल
7. हिमाचल कांग्रेस के छह और तीन निर्दलीय विधायक उत्तराखंड के रेसॉर्ट में हैं
8. द्रमुक ने तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में 10 सीटें कांग्रेस को दीं।
9. प्रधानमंत्री ने (अब) कहा कि कांग्रेस ने सीमा सुरक्षा से समझैता किया
10.प्रधानमंत्री ने उत्तर पूर्व के लिए परियोजनाओं का अनावरण किया, कला अगला कम उद्योगों का विस्तार है।
हवाई यात्रियों की सुरक्षा में चूक
द हिन्दू में आज हवाई यात्रियों की सुरक्षा में चूक से संबंधित एक गंभीर खबर है। वैसे तो छह कॉलम में छपी यह खबर सरकारी निर्देश के रूप में छपी है और गृहमंत्रालय के एक अनाम वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से छपी है और पढ़ने से लगता है कि अधिकारी ने रिपोर्टर की सूचना का खंडन करने की बजाये नई सूचना और खबर दे दी। जो शीर्षक या सरकारी खबर है लेकिन असली खबर सुरक्षा में चूक की है और बताती है कि फरवरी में 10 दिन के अंदर दो मामले हुए जब बिना टिकट दो लोग यात्री बिल्डिंग में प्रवेश कर गये। मामला डबल इंजन वाले महाराष्ट्र के मुंबई एयरपोर्ट का है लेकिन खबर केंद्र सरकार के ‘निर्देश’ की है। 10 दिन में दो घटनाएं और उसके बाद निर्देश का मतलब आप समझ सकते हैं। वैसे भी प्रचार पर निर्भर यह सरकार कोई काम करे और प्रचार न हो यह कहां संभव है। यहां प्रचार खबर के रूप में क्यों है, इसका अनुमान मैंने ऊपर बताया है। दिलचस्प यह है कि मामला मुंबई का है और खबर दिल्ली से है यानी इसकी चर्चा भी है लेकिन किसी और ने यह या ऐसी खबर कम से कम पहले पन्ने पर नहीं दी। फरवरी खत्म हुए 10 दिन बीत गये। पहली घटना 12 फरवरी की है।