संजय कुमार सिंह
दिल्ली में किसानों को रोकने की तैयारी की खबर कोलकाता के द टेलीग्राफ में लीड है, इसपर प्रियंका गांधी का सवाल ‘कोट’ है
आज मेरे सातो अखबारों की लीड अलग है। ऐसा बहुत कम होता है। जाहिर है, तभी होता है जब खबरें नहीं होती हैं। इतवार को छुट्टी के कारण अक्सर खबरें नहीं होती हैं और हमलोग सोमवार के अखबार के लिए खबरें पहले सोच कर रखते थे। एक्सक्लूसिव और खोजी खबरें ऐसे मौकों पर काम आती हैं। आज इंडियन एक्सप्रेस में एक्सक्लूसिव या खोजी खबर भी नहीं है जबकि अक्सर उसकी एक्सक्लूसिव खबरों के कारण रूटीन की खबरें पहले पन्ने पर नहीं होती हैं। ऐसे में इंडियन एक्सप्रेस की आज की लीड पाकिस्तान चुनाव नतीजे पर है। जनादेश आ गया, फैसला बंटा हुआ है, नवाज गठजोड़ वाली सरकार बनाने की कोशिशों का नेतृत्व कर रहे हैं। अखबार ने इस खबर को इतना ही महत्व दिया है कि 19 लाइन में बाईलाइन, डेटलाइन, टर्नलाइन और खबर सब है। एक लाइन का फ्लैग शीर्षक, चार लाइन का मुख्य शीर्षक और दो लाइन का उपशीर्षक कुल सात लाइनें खबर के मुकाबले बहुत ज्यादा जगह घेर रही है।
आज इंडियन एक्सप्रेस की इस लीड का एक मतलब तो यह है कि उसके पास आज प्रकाशित करने के लिए कोई एक्सक्लूसिव खबर नहीं थी या जो थी उसे आज किसी कारण से नहीं छापा गया है। दूसरा मतलब वो सारी खबरें जो आज दूसरे अखबारों में लीड हैं और इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर हैं या नहीं हैं, उन्हें एक्सप्रेस ने लीड नहीं बनाया है। उसके कारण हों या नहीं। ऐसे में अगर मैं रोज सिर्फ पहले पन्ने की खबरों और लीड की चर्चा करता हूं तो वह बेमानी नहीं है। उसमें पत्रकारिता और राजनीति दोनों होती है। और इसीलिए, हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड का शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने एक आदिवासी आउटरीच कार्यक्रम में कहा, 370 सीटें जीतेंगे। इसके साथ छपी एक अलग खबर का शीर्षक है, शिक्षा भारतीय मूल्यों पर आधारित होनी चाहिये : आर्य समाज के एक समारोह में मोदी। दोनों खबरों में जो नहीं कहा गया है वह यही है कि एक दिन में दो भाषण दो विषय पर होंगे तो दो खबरें होंगी, एक ही बात दो जगह कही जाये तो खबर एक ही होगी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की आज की लीड का शीर्षक है, “मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने घरें गिराने के फैशन की आलोचना की”। इंट्रो है, दो याचिकाकर्ताओं को क्षतिपूर्ति दी जाएगी। निश्चित रूप से यह खबर महत्वपूर्ण है और दूसरी खबर नहीं थी तो बुलडोजर सरकारों के जमाने में इस खबर को प्रमुखता दी जा सकती थी। अमूमन टाइम्स ऑफ इंडिया में अगर विज्ञापन न हो तो पहले पन्ने पर लीड के बराबर में छोटे या लाइफ फौन्ट में शीर्षक के साथ एक और खबर होती है जिसे सेकेंड लीड कहना चाहिये। आज यहां सेकेंड लीड नहीं है और लीड के नीचे चार कॉलम की एक खबर का शीर्षक है, “मुख्यमंत्री ने कहा, दिल्ली सातों सीटें आप को देगी। सीटे साझा नहीं (करेंगे)?” कहने की जरूरत नहीं है कि मुख्यमंत्री ने अगर ऐसा ही कहा है और अगर हिन्दी में कहा हो तो अंग्रेजी और फिर अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद के संभावित अंतर का भी ख्याल कर लें तब भी, सवाल के रूप में भी चार कॉलम की खबर नहीं है। तभी हि्दुस्तान टाइम्स ने इसे एक ही कॉलम में छापा है। यहां शीर्षक भी स्पष्ट है, ‘सभी सात सीटें जीतेंगे’: केजरवाल ने संकेत दिया आप दिल्ली में अकेले लड़ेगी। दोनों प्रस्तुति का अंतर कोई भी समझ सकता है।
हिन्दुस्तान टाइम्स में आज पहले पन्ने पर एक खबर भाजपा के राज्य सभा चुनाव के उम्मीदवारों के चयन की भी है। दूसरे अखबारों में दूसरी पार्टी के उम्मीदवारों की भी चर्चा है लेकिन यहां सिर्फ सत्तारूढ़ पार्टी की चर्चा है। द हिन्दू में आज लीड डायरेक्ट टैक्स वसूली बढ़ने की खबर है। शीर्षक है, डायरेक्ट टैक्स की किट्टी ने रफ्तार पकड़ी, 10 फरवरी तक 20.25% हुई। उप शीर्षक के अनुसार 10 जनवरी को यह 14.7 लाख करोड़ रुपये थी जो शनिवार को बढ़कर 15.6 लाख करोड़ हो गई। द हिन्दू में किसान आंदोलन की खबर सेकेंड लीड है यानी लीड के बराबर में टॉप पर लेकिन दो लाइन के शीर्षक, वार्ता टूट गई सो किसान आज दिल्ली मार्च शुरू कर सकते हैं। इस खबर के साथ एक तस्वीर छपी है, इसका कैप्शन है, निवारक उपाय – दिल्ली उत्तर प्रदेश सीमा पर प्रदर्शनकारी किसानों को रोकने के लिए लगाये जा रहे बै12रीकेड्स।
अमर उजाला में यह शीर्षक और विस्तार से है तथा लीड है। यहां शीर्षक है, किसानों का कल दिल्ली कूच… 16 को भारत बंद, सीमाओं की किलेबंदी। उपशीर्षक है, “दूसरे दौर की बैठक आज : राष्ट्रीय राजधानी में पुलिस कर्मियों की छुट्टियां रद्द, धारा 144 लागू।” यहां सेकेंड लीड राज्यसभा चुनाव की खबर है। शीर्षक में बताया गया है कि भाजपा ने नये चेहरों को मौका दिया, उत्तर प्रदेश समेत सात राज्यों के 14 उम्मीदवारों की सूची जारी। कहने की जरूरत नहीं है कि यह किसी भी अखबार में लीड बन सकती थी और किसी के भी समर्थन या विरोध की खबर नहीं होने के बावजूद खबर तो है ही। इसके अलावा, आज एक और महत्वपूर्ण खबर है जो अमर उजाला में बॉटम है और नवोदय टाइम्स में लीड। पठनीयता इसकी भी है लेकिन अखबार चाहते हैं लोग वही पढ़ें जो वे परोसते है।
नवोदय टाइम्स की आज की लीड का शीर्षक है, बिहार में आज विश्वासमत , खेला होगा या खेल खत्म (फ्लैग), तैयारी जोर आजमाइश की (मुख्य)। विज्ञापन के कारण यहां पहले पन्ने पर दो ही खबरें हैं। दूसरी खबर दिल्ली के अपराध की है। हालांकि शीर्षक में पेटीएम है जो पहले पन्ने पर इन दिनों अदृश्य और दुर्लभ सा है। कारण आप जानते हैं। अमर उजाला में यह खबर वैसे है जैसे होनी चाहिये और इसमें ‘भाजपा की चिन्ता बढ़ी’ भी है। यही नहीं, राज्य सभा वाली खबर के साथ जीतन राम मांझी की राज्यसभा की सीट का पेंच भी बताया गया है। आज बिहार विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के मौके पर इस खबर के राजनीतिक मायने हैं। हालांकि ईडी, सीबीआई जब सरकारी विभाग बन चुके हैं तो काम भी राजनीतिक इशारे पर ही करते हैं और यह मह्वपूर्ण नहीं है। वैसे छापे तो पैलेस ऑन व्हील्स पर पड़ते थे और मुझे वह भी अटपटा लगता था। कुल मिलाकर, मामला झुकने के लिए कहने पर कुछ लोगों के रेंगने लगने जैसा भी है। अपने अखबार के बारे में आप जानिये।
मेरा मानना है कि केंद्र की भाजपा सरकार अगर चुनाव हारेगी तो आंदोलनों और विरोध से डरने के कारण। यह डर इतना तगड़ा रहा कि सरकार की पूरी ताकत के बावजूद नरेन्द्र मोदी ना आंदोलनों को और ना विरोधियों को ठीक से हैंडल कर पाये। उनकी राजनीति (हालांकि है तो पैसे वाली ही) की आप चाहे जितनी तारीफ करें उसमें राजनीति है ही नहीं और जो है उसे बिहार में हमलोग लठैती कहते हैं। नरेन्द्र मोदी राजनीति करते होते तो प्रेस कांफ्रेंस करते, डरते नहीं होते तो सभी विरोधियों को जेल नहीं भेजते और विरोधियों से अच्छे संबंध रखते, भले दिखाने के लिए। इसलिए सरकार चुनाव हार जाये तो कहा जा सकेगा, “आंदोलन और विरोध से डर मरी सरकार”। किसानों में फिर से सुगबुगुहाट है और सरकार की तैयारियां वैसी ही हैं। चुनाव के पहले यह तैयारी शायद मेरे इस अनुमान के क्रम में ही की और कराई जा रही है। हालांकि, मुद्दा वह नहीं है। मुद्दा किसान आंदोलन की सुगबुगाहट, उसपर सरकार की प्रतिक्रिया (या घबराहट) और खबरें हैं।
इसीलिए आज अकेले द टेलीग्राफ ने बताया है कि दिल्ली और आस-पास किसानों को रोकने के लिए पहले जैसी तैयारियां चल रही हैं और किसानों के लिए संदेश है कि वे दिल्ली से दूर रहें। यही नहीं, अखबार का आज का कोट प्रियंका गांधी का यह सवाल है, किसानों के रास्ते में कांटे-कील लगाना अमृतकाल है या अन्याय काल? इसका जवाब तो नहीं ही आना है। कोई दूसरा पूछने-बताने की हिम्मत भी नहीं करेगा। और वे “कांग्रेस का ऑक्सीजन लूट और फूट है” जैसे बयान देते रहेंगे, टाइम्स ऑफ इंडिया पहले पन्ने पर छापता रहेगा और राजनीति के नाम पर आपको जो मिलेगा वह झारखंड विधानसभा में दिखेगा जहां एक विधायक ने कहा है कि कांग्रेस ने किसी को नहीं छोड़ा सबको जेल भेजा और ऐसा कोई सगा नहीं जिसे कांग्रेस ने ठगा नहीं। कांग्रेस में किसी ने अपनी पार्टी के बचाव में ऐसा कुछ कहा होता तो वायरल कर दिया जाता। दोनों पर चुप रहना – यही राजनीति और पत्रकारिता का हाल है।