गिरीश मालवीय-
परंजय गुहा ठाकुरता ने तो कई बार आगाह किया, सुचेता दलाल भी बोली। यहां तक कि सुब्रमण्यम स्वामी भी बोले। हम और आप जैसे लोग भी कई बार इनके गड़बड़ घोटाले की पोल खोले। लेकिन जब तक कोई विदेशी न बोला तब तक किसी ने माना ही नहीं!

सबसे पहले वरिष्ठ पत्रकार Pranjoy Guha Thakurta ने अड़ानी को बेनक़ाब किया था लेकिन उनके उपर केस करवा कर उनको चुप कराया गया। उस समय किसी ने भी उनका साथ नही दिया।
अदानी ग्रुप के बारे में आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट के मामले में विपक्ष कहा है ? क्या दिल्ली में एक दो प्रेस कांफ्रेंस करने से कांग्रेस अपने कर्तव्य से मुक्त हो जाती है ?
यह इतना बड़ा मामला है जहा पब्लिक के पैसे की लूट हुई है और इस पर भी आप मोदी सरकार को घेर नही पा रहे हो ? तो आपका विपक्ष में होना किस काम का ?
हमने मान लिया कि संख्या बल आपके पास कम है लेकिन यदि कांग्रेस इस मुद्दे पर अन्य विपक्षी पार्टियों जेसे तृणमूल को, झामुमो को, बीजू जनता दल को, वाईएसआर कांग्रेस को, तेलगु देशम को शिवसेना को, बसपा को साथ लेकर लड़े तो बहुत प्रभावी सिद्ध हो सकती हैं।
और सिर्फ सदन में ही क्यों संघर्ष करे !…आप जमीन पर उतरिए !
दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से क्या होगा ? देश के हर प्रदेश की राजधानी में प्रेस कान्फ्रेंस होनी, हर छोटे बड़े शहर कस्बों में ये बात विपक्ष के माध्यम से जाना चाहिए कि हमारी आपकी बचत को ऐसे पूंजीपति के हवाले किया जा रहा है जो फ्रॉड कर रहा है धरने प्रदर्शन होने चाहिए आंदोलन होने चाहिए और इस मसले पर पब्लिक भी आपका साथ देगी ?
बजट सत्र शुरु होने से पहले इस मुद्दे पर गैर भाजपाई दलों को एक साथ लेकर काग्रेस मोदी सरकार के नाकों चने चबा सकती है।
ऐसे ही मामलो में 1992 में सुरक्षा मामलों एवं बैंकिंग लेन-देन में अनियमितता के आरोप पर और 2001 में स्टॉक मार्केट घोटाले को लेकर जेपीसी का गठन किया गया था।
सदन के शुरु होने से पहले विपक्ष रणनीति बनाकर मोदी सरकार को संयुक्त संसदीय समिति के गठन को लेकर उसके द्वारा जांच को लेकर मजबूर कर सकता है लेकिन ये काम उसे आज ही करना होगा।
One comment on “परंजय गुहा ठाकुरता, सुचेता दलाल, सुब्रमण्यम स्वामी ने अडानी गड़बड़ी के बारे में लिखा-बोला, लेकिन जब विदेशी ने बोला तब सबने माना!”
यह टिप्पणी भी भड़ास पर ही देखने को मिल रही है। क्या इस समय कोई और भी ऐसा लिख वा पोस्ट कर सकता है।
पहले समाचारों से महरूम किया गया अब विचारों से महरूम किया जा रहा है।