Navin Kumar : इस तिमाही में अडाणी का मुनाफा छह गुना हो जाना, वोडाफोन पर सरकारी खजाने का 3 हजार करोड़ रुपया उड़ा दिया जाना और परधान जी के नौलखे कोट के बीच क्या कोई रिश्ता है? गौर कीजिएगा जेटली जी ने कहा है कि हमने भारत की गरीब जनता के 3 हजार करोड़ से जो वोडाफोन की आरती उतारी है उससे ‘निवेश’ का माहौल बेहतर होगा.. पूछना चाहता हूं कि नौलखा ‘कोट’ को निवेश मान सकते हैं कि नहीं?
Mukesh Kumar : दोस्त से दगा… भाईयों भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट से ओबामा की स्पीच के वे अंश हटा दिए गए जिसमें उन्होंने सभी धर्मों से बराबर का व्यवहार करने की बात कही थी। मज़े की बात ये है कि भारतीय मीडिया इस मुद्दे पर चुप रहा जबकि अमेरिकी मीडिया में इस सेंसरशिप को लेकर अच्छी-खासी चर्चा हुई। सवाल उठता है कि आख़िर जिस व्यक्ति को मोदी अपना जिगरी दोस्त बताते हैं, उसकी बात को वे सेंसर क्यों कर रहे हैं? क्या उनके मन में चोर है जो वे ओबामा की बातों को लोगों तक पहुँचने से रोकना चाहते हैं? लेकिन क्या सचाई छिप सकती है बनावट के उसूलों से…
Om Thanvi : किसी पार्टी या विचारधारा से मेरी जकड़बंदी नहीं है। मैं केजरीवाल और आप पार्टी की खामियां भी जानता हूँ। उन पर टीका भी की है। फिर भी फिलहाल उनमें सरोकार दिखाई देता है। वे प्रगतिशील नजर आते हैं। कांग्रेस के भ्रष्टाचार और भाजपा की समाज-तोड़ू राजनीति से उनमें दूरी दिखाई देती है। उनकी पार्टी को पहाड़-से घोटालों और बेगुनाहों के कत्ले-आम से नहीं जोड़ा जा सकता। ऐयाशी और लाल-बत्ती वाली वीआइपी राजनीति में भी उन्होंने अरुचि दिखाई है। बाकी किरण-विकिरण, खांसी-मफलर, जंगल-नक्सल, गाड़ी-बंगला, बोतल-गोदाम आदि सब चुनावी फुलझड़ियाँ हैं, उनसे कुछ बनता-बिगड़ता नहीं।
पत्रकार त्रयी नवीन कुमार, मुकेश कुमार और ओम थानवी के फेसबुक वॉल से.