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सियासत

अफगानिस्तान में अमेरिका की हार भारत को भारी पड़ने वाली है!

सौमित्र रॉय-

अफ़ग़ानिस्तान की हार न सिर्फ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को, बल्कि भारत और पूरे दक्षिण एशिया को भारी पड़ने वाली है।

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क्वाड गठजोड़ से भारत और अमेरिका ने जितना हासिल किया था, वह बीते एक महीने में खत्म हो चुका है।

चीन ने इराक से ईरान होते हुए तेल की पाइपलाइन बनाने की योजना को अंजाम देना शुरू कर दिया है।

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अभी इराक-ईरान से कच्चा तेल होरमुज़ जलडमरूमध्य से निकलकर मलक्का की खाड़ी से होता हुआ गुआंग्झू पहुंचता है।

अमेरिका ने भारत को क्वाड में शामिल होने के लिए इसलिए पटाया था कि चीन को मलक्का की खाड़ी में उस छोटे से संकरे रास्ते में घेर सकते हैं।

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चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर और श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाहों पर कब्ज़ा किया हुआ है, ताकि उसके जहाज सुरक्षित रहें।

लेकिन यह रास्ता लंबा और दुश्मनों से घिरा है। मलक्का की खाड़ी पर कभी चोल साम्राज्य का नियंत्रण हुआ करता था। अंडमान से इसकी दूरी ज़्यादा नहीं है।

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अब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को समर्थन देकर चीन ने पाइपलाइन का रास्ता महफूज़ कर लिया है। (नीचे नक्शे से समझें)

सिर्फ लद्दाख में उसे भारत से खतरा था, जिसे उसने करीब 1000 वर्ग किलोमीटर ज़मीन हथियाकर महफूज़ कर लिया है।

अगर यह कहें कि अब अफ़ग़ानिस्तान से लेकर समूचे मध्य पूर्व में चीन का दखल अमेरिका से ज़्यादा हो गया है, तो ग़लत नहीं होगा।

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भारत सरकार फिर मात खा गई है और वह भी अफ़ग़ानिस्तान में करोड़ो डॉलर का निवेश गंवाकर।

फिर भी कोई मोदी सरकार से यह नहीं पूछ रहा है कि उसकी अफ़ग़ानिस्तान को लेकर क्या नीति है।

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बीजेपी को सिर्फ तालिबानी स्टाइल पसंद आ रही है।

अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी और क्वाड का टूटना मध्य और दक्षिण एशिया को जंग के मुहाने पर धकेल गया है।

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पाकिस्तान और कश्मीर का मुद्दा और आज महबूबा मुफ्ती के बयान को गंभीरता से लें।

चीन अब भारत को अस्थिर करने की पूरी कोशिश करेगा ताकि वह अमेरिका को छोड़कर उसके कर्ज़ के जाल में फंस जाए।

आज लिख देता हूं, याद रखिएगा। अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी (31 अगस्त तक का अल्टीमेटम तालिबान ने दिया है) एक सोची-समझी डील है।

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यह क़्वाड समूह का अंत है। इसके भयानक नतीज़े होंगे।


अवधेश कुमार-

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जो बिडेन अमेरिका को कलंकित करने वाला अभागा राष्ट्रपति। 4 दिनों में देश को दो बार संबोधित कर बताना पड़ रहा है कि हमने अफगानिस्तान क्यों छोड़ा।

कह रहे हैं कि हम 13000 अमेरिकियों को निकाल चुके हैं, एक भी अमेरिकी को नहीं छोड़ेंगे, हमारे सैनिक अभी भी 6000 वहां हैं ,हम काबुल हवाई अड्डा संभाल रहे हैं जिससे वहां से हमारे सैन्य विमानों के उड़ान भरने से लेकर दूसरे देशों के विमानों की भी आवाजाही संभव हो पा रही है।

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वो कह रहे हैं कि अगले हफ्ते G7 की मीटिंग में हम बड़ा फैसला करेंगे। अब क्या फैसला करेंगे? अमेरिका की महिमा को 1 दिन में पाताल में पहुंचाने वाला राष्ट्रपति, जिसने पूरी दुनिया को संकट में डाल दिया। दुनिया भर के जेहादी आतंकवादी कह रहे हैं कि हमने अमेरिका को हराकर भगा दिया तो इस्लामी साम्राज्य का भी सपना साकार कर लेंगे। भुगतो। ऐसे वापसी होती है!

हमारे देश में भी सही जानकारी के अभाव में कुछ लोग अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन के निर्णय को सही ठहरा रहे हैं । 2014 से अमेरिका जमीन पर तालिबान से युद्ध नहीं लड़ रहा था। झूठ बोलते हैं जो बिडेन।

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युद्ध अफगान सेना लड़ रही थी और उस समय से अब तक उनके 10 हजार जवानों ने अपना बलिदान दिया। अमेरिकी सेना में मरने वालों की संख्या इस बीच केवल 99 रही। उनके जमीन पर केवल 2500 सैनिक थे। इससे ज्यादा 8500 सैनिक तो नाटो के थे।

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