Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

दैनिक भास्कर में शुरू हुआ फिल्म समीक्षक अजित राय का कॉलम

जाने-माने अंतरराष्ट्रीय फिल्म समीक्षक अजित राय का नियमित स्तंभ दैनिक भास्कर अखबार में शुरू हुआ है. अजित राय ने देश के सबसे बड़े अखबार दैनिक भास्कर के एम डी सुधीर अग्रवाल जी का विश्व सिनेमा पर नया कालम शुरू करने के लिए धन्यवाद दिया है. यह कालम हर महीने के दूसरे और चौथे शनिवार को संपादकीय पृष्ठ पर सभी संस्करणों में छपेगा. ज्ञात हो कि अजित राय डीबी कार्प के एमडी सुधीर अग्रवाल को अपनी किताब ‘बालीवुड की बुनियाद’ भेंट करने गए थे. इसी दौरान बातचीत में इस कालम की शुरुआत की नींव पड़ी.

पढ़िए अजित राय के कालम का शुरुआती राइटअप-

Advertisement. Scroll to continue reading.

रूसी सिनेमा में विद्रोही आवाजें

विश्व राजनीति में अब सिनेमा भी एक हथियार बन गया है

अजित राय-

रुस के अलेक्सी चुपोव और नताशा मरकुलोवा की फिल्म ‘ कैप्टन वोलकोनोगोव एस्केप्ड ‘ की इन दिनों बड़ी चर्चा है।

यह फिल्म एक राजनैतिक थ्रिलर है जो हमें 1938 के लेलिनग्राद ( अब सेंट पीटर्सबर्ग) में स्तालिन युग के उस खौफनाक दौर में ले जाती है जब झूठे आरोप लगाकर और महान सोवियत क्रांति का गद्दार होने के संदेह में करीब दस लाख निर्दोष नागरिकों को यातना देकर मार डाला गया था। सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी यानि कोमिटेट गोसुदार्स्तवेन्वाय बेजोपास्नोस्ती ( 13 मार्च 1954 से 3 दिसंबर 1991) की स्थापना से पहले एनकेवीडी ( 10 जुलाई 1934 से 15 मार्च 1946) नामक एजेंसी होती थी जिसने दस लाख निर्दोष लोगों को मारा था। केजीबी के खत्म होने के बाद अब जो सरकारी खुफिया एजेंसी 3 अप्रैल 1995 से रूस में कार्यरत हैं और वहीं सब कारनामे करती है जो कभी केजीबी करती थी, उसे एफएसबी( फेडेरल सेक्युरिटी सर्विस ) कहा जाता है। रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के जी बी के कमांडो रह चुके हैं।अभी हाल ही में रुस की सबसे बड़ी निजी सेना वागनर ग्रूप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोजिन की हेलीकाप्टर दुर्घटना में हुई मौत के मामले में इसी एजंसी पर शक किया जा रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

फिल्म का नायक कैप्टन फ्योदोर वोलकोनोगोव ( यूरी बोरिसोव) एनकेवीडी का एक आफिसर है जो अपने कमांडर के आदेश पर निर्दोष लोगों को गद्दार होने के संदेह में उठा लेता है और उन्हें अपने आफिस मुख्यालय लाकर यातना देकर मार देता है। वह उनसे जबरन कबूलनामें पर दस्तखत करवाना नहीं भूलता। विभाग में उसकी बड़ी इज्जत और रौब है । एक दिन जब वह अपने आफिस पहुंचता है तो देखता है कि उसका कमांडर खिड़की से छलांग लगा कर भाग रहा है। उसे डर है कि उसे भी उसी तरह मार दिया जाएगा जैसे वह निर्दोष लोगों को मारता था। इसी बीच कैप्टन वोलकोनोगोव को एक बड़ी सामूहिक कब्र में मृतकों को दफनाने की जिम्मेदारी मिलती है। अचानक उसे लगता है कि उसका सबसे अच्छा दोस्त वेरेतेन्निकोव कब्र से उठकर उसे सावधान करते हुए कहता है कि निर्दोष लोगों को मारने के अपराध में उसे नरक में सड़ना होगा। इससे मुक्ति का एक ही उपाय है कि जिन लोगों को उसने मारा है उनमें से वह किसी एक भी व्यक्ति के परिजन को ढूंढें जो उसे माफ कर दें।

यहां से फिल्म नया मोड़ लेती है। वह अपने आफिस से उस गोपनीय फ़ाइल को चुराकर भागता है जिसमें उन लोगों के नाम और पते है जिन्हें उसने मारा था। वह एक एक कर उन लोगों के परिजनों तक पहु़चता है जिन्हें उसने मारा था और उन्हें बताता है कि वे निर्दोष थे, वे गद्दार नहीं थे। उसे यह देखकर दुखद आश्चर्य होता है कि उन परिजनों की जिंदगियां नरक से भी बदतर हो चुकी है। एक तरह से पूरा लेनिनग्राड शहर ही नरक में बदल चुका है। खुफिया एजेंसी का प्रमुख मेजर गोलोव्यना कैप्टन का अंत तक पीछा करता है। यहां से पूरी फिल्म एक पाप मुक्ति की यात्रा पर चलती है जैसा कि हम महान रूसी लेखक फ्योदोर दोस्तोवस्की की रचनाओं में पाते हैं। निकोलाई गोगोल की ऐबसर्डिटी और मिखाइल बुल्गाकोव के जादुई यथार्थवाद को भी यहां देखा जा सकता है। यह फिल्म तो एक उदाहरण भर हैं । दुनिया भर में सरकारी दमन में मारे गए निर्दोष नागरिकों की कहानियों पर हजारों फिल्में बनी हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रूस के ही युवा फिल्मकार ब्लादिमीर बीटोकोव भी एक आधुनिक राजनीतिक ड्रामा लेकर आए हैं – ‘ ममा, आई एम होम ।’ रूस के कबार्डिनो बल्कारिया इलाके के एक गांव में रहनेवाली तोन्या एक बस ड्राइवर है। तोन्या का इकलौता बेटा उस इलाके के एक प्राइवेट रूसी सेना में भर्ती होकर सीरीया में लड़ते हुए मारा जाता है। तोन्या को इस खबर पर भरोसा नहीं है। उसे विश्वास है कि उसका बेटा जीवित है और एक दिन लौट आएगा। आगे की फिल्म उस बेटे की हृदयविदारक खोज में चलती है। यह वह इलाका है जहां भयानक गरीबी के कारण अधिकतर नौजवान ठेकेदारों की निजी सेनाओं में भर्ती होकर दुनिया भर में लड़ने के लिए भेज दिए जाते हैं। रूसी सरकार अधिकारिक रूप से कभी इस बात को स्वीकार नहीं करती, न ही रिकार्ड पर लाती है। इन नौजवानों के युद्ध में मारे जाने पर कोई इनकी जिम्मेदारी नहीं लेता।

सोवियत संघ के विघटन के बाद भी विश्व राजनीति में तरह तरह से शीत युद्ध जारी है जिसमें सिनेमा का इस्तेमाल एक बड़े हथियार के रूप में किया जा रहा है। आज अमेरिका, रुस, जर्मनी, चीन, जापान, यूक्रेन, मिस्त्र, ईरान और कई देशों में ऐसी फिल्में बन रही है जो विश्व राजनीति को प्रभावित कर सकें।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आपको ब्रिटिश फिल्मकार डेविड लीन की बहुचर्चित फिल्म ‘ डाक्टर जीवागो’ (1965) याद होगी जो रुसी लेखक बोरिस लेवनिदोविच पास्तरनाक के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित थी। उन्हें इसपर साहित्य का नोबेल पुरस्कार(1958) मिला था पर सोवियत संघ की कम्यूनिस्ट पार्टी ने उन्हें पुरस्कार लेने जाने नहीं दिया और दबाव डाला कि वे नोबेल पुरस्कार को ठुकरा दें। । बाद में पास्तरनाक के बेटे एवगेनी पास्तरनाक ने अपने पिता की ओर से उनकी मृत्यु (1960) के 29 साल बाद स्वीडन जाकर 1989 में नोबेल पुरस्कार ग्रहण किया उस समय दुनिया सोवियत संघ और अमेरिका के नेतृत्व में दो ध्रुवों में बंटी थी। तब सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिकी समूह ने इस फिल्म का बहुत इस्तेमाल किया था। सिनेमा के माध्यम से यह सिलसिला अभी तक जारी है। ताज़ा उदाहरण रुस यूक्रेन युद्ध का है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेता और इसमें रोज नई नई जटिलताएं जुड़ती जा रही है।

रुस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन इन दिनों अक्सर यह कहते पाए जाते हैं कि अमेरिकी – यूरोपीय देशों के पैसों से कई निर्वासित रुसी फिल्मकार रुस की छवि बिगाड़ने के लिए फिल्में बना रहे हैं। दुनिया के कई बड़े फिल्मोत्सवों में ऐसी फिल्मों की बड़ी चर्चा हो रही है। उनका इशारा जिन रुसी फिल्मकारों की ओर है उनमें सर्जेई लोजनित्स, किरील सेरेब्रेनिकोव, आंद्रेई ज्याग्निशेव , ब्लादिमीर बीटोकोव आदि प्रमुख हैं। इसी वजह से ब्लादिमीर पुतिन ने मशहूर रुसी फिल्मकार किरील सेरेब्रेनिकोव को हाउस अरेस्ट करवाकर न सिर्फ 71 वें कान फिल्म फेस्टिवल ( 2018) में आने नहीं दिया, वल्कि उनपर आर्थिक धोखाधड़ी का केस भी दर्ज करवाया। उनकी फिल्म ‘लेटो'( समर) तब प्रतियोगिता खंड में चुनी गई थी जो पुतिन राजनीति पर प्रतिकूल टिप्पणी करती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोदेमिर जेलेंस्की ने पिछले साल रुस के खिलाफ जनमत बनाने के लिए 75 वें कान फिल्म फेस्टिवल (2022) का जमकर इस्तेमाल किया। उन्हें उद्घाटन समारोह में वीडियो संबोधन का अवसर दिया गया था। सवाल उठता है कि क्या यहीं अवसर रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को कान फिल्म फेस्टिवल दे सकता है, कभी नहीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement