देश के पहले आईआईटियन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर साहब आपके असमय निधन से मर्माहत हूं. लेकिन जाने के बाद भी फक्र इस बात की है कि आप जैसे व्यक्तित्व कभी भुलाये नहीं भुला सकते. आप मरकर भी अमर हो गए. ना ओहदे का गुरुर था आपको ना था कुर्सी का अभिमान. पूरी जिंदगी ही सादगी और ईमानदारी के उसूल पर गुजार दी. ना कारकेड का शौक था, ना लग्जरी गाड़ियों की भूख, ना धन का लोभ था और ना सम्पत्ति की लालसा.
आप तो महापुरुष ही थे वर्ना राजनीति और ये सियासत के काले बाजार से बेदाग कहाँ कोई निकलता है. अब कौन यकीन करेगा नेताओं पर. आडम्बर रचनेवालों पर. झूठे और मक्कारों पर. अरे आप तो ऐसे थे कि कभी साइकल पर तो कभी स्कूटर पर तो कभी बिना काफिले की कार में सचिवालय से लेकर विधानसभा तक पहुंच जाते थे. आपकी ईमानदारी और सादगी की तो लोग कसमें खाते थे. आप तो खुद ही चुकाते थे अपने मोबाइल और बिजली का बिल. मुख्यमंत्री आवास के ठाठ बाट से भी आप दूर रहे. ना संत्री से पहरेदारी करवाई और ना कभी दरबान की भी जरूरत समझा.
आपने तो कैंसर की भी परवाह नहीं की थी. पता था कि आप जानलेवा पेनक्रियाज कैंसर के मरीज थे और आपकी सांसें भी उधार की थी. बावजूद आपने सांसों की हिफाजत की परवाह नहीं की और जिंदगी से ज्यादा हर वक्त कर्तव्य को ही महत्व दिया. राफेल की लड़ाई लड़नेवाले भी आपकी ईमानदारी के आगे घुटने टेक दिए. लेकिन आप अपने उसूलों पर कायम रह गए. राफेल तो रह गया लेकिन विरोधियों की संवेदनहीनता उजागर हो गयी और वो संवेदनहीन सवाल भी आपकी संवेदनाओं के आगे शून्य हो गयी और बदजुबानी खुद बदनाम हो गई.
अरे आप तो आपने कृत्य से अमर हो गए. नाम कर गए. बेमिसाल छाप छोड़ गए. आपकी खामोशी और आपके विचारों से भी सियासत के सौदागरों को कुछ सीख मिल जाये तो हिंदुस्तान आबाद हो जाएगा. लेकिन सीखेगा कौन. सोचेगा कौन. यहां तो झूठ की बुनियाद पर नेताओं की दुकान चल रही है. हां, आपके जाने का गम मनानेवालों और आपके प्रति संवेदना प्रकट करनेवालों की दो चार दिन के लिए कतार जरूर लग गई है लेकिन चंद दिनों बाद आप भुला दिए जाएंगे और देश के पहरेदार, चौकीदार, सियासतदार फिर से अपनी राह पर लौट जाएंगे. वही होगा जिसे सियासत कहते हैं.
कैसे भूल सकता भारत माँ के ऐसे लाल को कोई जिसने पहली सर्जिकल स्ट्राइक कर दुश्मनों को औकात दिखा दी थी. कहीं सुना था कि इन्होंने अपनी खुद की तकदीर नहीं बदली लेकिन सीएम रहते गोवा की तकदीर जरूर बदल दिया. पर्रिकर साहब आप नहीं हैं. अब तो आप पंचतत्व में विलीन हो रहे हैं. वहां पहुंच गए जहां से फिर कोई लौटकर नहीं आता. आज आंखें नम हैं. देश रो रहा है. पहले भी बहुत आये और दुनिया से असमय चले गए. लेकिन इतनी संवेदना और इतना मर्माहत होते शायद ही किसी को देखा.
वजह साफ है. आप सियासत से वास्ता रखते हुए भी जीते जी सियासतदार नजर नहीं आये. अब तो आप चले ही गए. आप प्रेरणा हो युवाओं का, आप मसीहा हो ग़रीबों का, आप सोच हो ईमानदारी और उसूलों का, आप पहचान हो कर्मवीरों का, आप सबक हो सियासतदारों का, चुनौती हो बेईमानों का… आप संतान तो थे ही हिंदुस्तान का… मां भारती के ऐसे लाल को बार बार प्रणाम.. आप मृत्युंजय हो मरकर भी अमर ही रहोगे… करोड़ों दिलों पर कल भी राज करते थे और हमेशा दिलों पर राज करते रहोगे.
आप तो विरोधियों की परवाह तक नहीं करते थे. आज देश इसीलिए नहीं रो रहा कि सवा अरब की आबादी से एक इंसान चला गया बल्कि रो इसीलिए रहा कि राजनीति जगत से वास्तव में जो एक इंसान था वो चला गया. वोट, कुर्सी, दावे, वादे, आरोप, प्रत्यारोप, झूठी कसमें, बेईमान, अभिमान, नोट और सियासत करने वाले तो कल भी थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे ही लेकिन पर्रिकर साहब आप अतीत बन गए. देखिए आपके जाने का गम कहीं नेताओं की फितरत बदल दे और आपकी गैरमौजूदगी में भी कुछ नीयत बदल दे ताकि आप रहें ना रहें लेकिन आप अनुकरणीय बने रहेंगे… क्योंकि देश का विकास तब होगा, और सोच तब बदलेगी जब सड़क से लेकर सदन तक हर शख्स पर्रिकर हो जाये… इतना ही कहूंगा…
हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।
लेखक सुजीत कुमार सिंह ‘प्रिंस’ ग़ाज़ीपुर के वरिष्ठ पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट हैं.