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सुख-दुख

अमिताभ ठाकुर प्रकरण पर एक शानदार विश्लेषण

Mayank Yadav-

अमिताभ ठाकुर प्रकरण…. जिस जसराना कांड का जिक्र बार बार आता है, वह जसराना मेरे जिले का हिस्सा है. बिना किसी लाग लपेट के बता सकता हूं उसमें पूरी गलती समाजवादी पार्टी के गुंडों की थी. एक एसपी को सरेआम लिंच करने के लिए ले जा रहे थे. अमिताभ ठाकुर की छवि पूरे जिले में बहुत ही अच्छी थी, और इस घटना के बाद हर जाति धर्म समाज के लोगों में रोष था. यहां तक इस घटना के बाद उल्टे अमिताभ ठाकुर का तबादला किया जाना चुनावी मुद्दा बना था. और उसके कुछ समय बाद हुए विधानसभा चुनाव में वहां और उसके बगल की विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी हारी थी, हारने वाले भी यादव थे, हराने वाले भी यादव.

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बाद में समय बदला और मलाई मिलना बंद हुई तो वे गुंडे भी पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए.

दूसरा, नेताजी द्वारा फोन पर धमकाया जाना, मुलायम सिंह यादव हों या कोई और भी नेता, क्यों किसी अफसर को फोन कर के धमकाना चाहिए? और क्यों इस बात का समर्थन किया जाना चाहिए.

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जहां तक समाजवादी पार्टी सरकार के उस समय की बात है, जो मुद्दा अमिताभ उठा रहे थे, खनन के मसले पर, और मंत्री गायत्री प्रजापति पर सवाल हो रहे थे….कौन नहीं जानता कि गायत्री ने क्या किया था खनन विभाग में……किसको नहीं पता है कि पिछली सरकार में खनन के नाम पर कितनी लूट हुई थी, और किस किस तक हिस्सा पहुंचा था? और आज भी वह लूट कितना बंद हो गई है?

अमिताभ क्यों कर रहे थे, आप बार बार ये पूछ रहे हैं? मैं नहीं मना करता कि ये उनकी राजनीति रही हो. लेकिन मेरी दिलचस्पी इसमें है कि जो वे कर रहे थे वह गलत था क्या?

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अमिताभ की राजनीति क्या है, वे आगे क्या करेंगे मैं कोई प्रमाण पत्र जारी नही करना चाहता, आप उनका समर्थन/विरोध उनकी राजनीति के आधार पर कीजिए.

लेकिन वर्तमान सरकार से मुखलफत के कारण उनके साथ बदसलूकी, बदतमीजी और उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन पर आप लेकिन उपरोक्त कारणों की वजह से उनका मजाक बना रहे हैं तो फिर आप में भी समस्या है. आप वह बन चुके हैं जो यह सरकार आप को बनाना चाहती है.

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यह सरकार तो पूरी तरह लोकतंत्र विरोधी है ही, लेकिन आप क्या हुए जा रहे हैं. समाजवाद बड़ा शब्द है, बिना स्वतंत्रता के भारतीय समाजवाद के मायने ही क्या रह जाते हैं.

अमिताभ सुरक्षित रहें, जिन मुद्दों को उठाना वे ठीक समझते हैं, किसी के भय या दवाब के कारण बंद न हों, कम से कम इतनी स्वतंत्रता उन्हें ही नहीं बल्कि हर नागरिक को हो. वे कल अगर वह बीजेपी में भी पहुंच जाएं तो भी मैं यही कहूंगा.

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और रही बात मेरी तो मैं समाजवाद का नाम किसी नेता या व्यक्ति की चाकरी के लिए नहीं लिया करता, और न ही नाला पुलिया के ठेके लेने के लिए, समाजवाद की समझ लोहिया को पढ़ के विकसित हुई है, और समय बीतेगा तो और मजबूत होगी.

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