राम धनी द्विवेदी-
पत्रकारिता में ईमानदारी…अमृत प्रभात में पत्रकारिता में ईमानदारी होती थी और संपादक पर किसी का दबाव नहीं चलता था। किसी खबर के लिए मालिकों का भी कभी कोई दबाव नहीं रहा। उनका स्पष्ट निर्देश था कि खबर जैसी भी हो, आप लोग उसका मूल्यांकन करें,उसे छापने और न छापने का फैसला आप का होगा। अखबार की विश्वसनीयता पर कभी आंच नहीं आनी चाहिए।
गोंडा के जिला संवाददाता रहे डा चंद्रगोपाल पांडेय ने बताया कि कैसे उनकी एक खबर छपने के बाद पूरे पेज का जो विज्ञापन मिलने वाला था,वह नहीं मिला। लेकिन चूंकि खबर अच्छी थी इसलिए संपादक या प्रबंधन ने कभी कुछ नहीं कहा। आज का समय होता और दूसरा अखबार हेाता तो उनकी नौकरी खतरे में पड़ सकती थी। इस तरह के कई उदाहरण हैं। जब अमृत प्रभात खुले अभी कुछ ही महीने हुए थे कि एनआइपी में लोक सेवा आयोग के खिलाफ एक खबर छपी।
खबर सही थी जिससे आयोग तिलमिला गया और उसने विज्ञापन बंद कर दिया। उसने हमारे विज्ञापन मैनेजर से शिकायत भी की।आयोग बड़ा विज्ञापन दाता था और निश्चित ही विज्ञापन बंद होने से बड़ा आर्थिक नुकसान था। विज्ञापन मैनेजर ने अपनी शिकायत एनआइपी के संपादक एसके बोस और महाप्रबंधक शिशिर मिश्र से की।
एनआइपी के न्यूज एडीटर वीएम बडोला से थे। उन्हें बुलाया गया और कहा गया कि खबर का खंडन छाप दीजिए और आगे इस तरह की खबर न छापें। उन्होंने मना कर दिया। कहा कि इसमें आयोग का वर्जन है और अब खंडन की जरूरत नहीं है। विज्ञापन विभाग अपना काम करे और हमें अपना काम करने दे।
खंडन नहीं छपा और दूसरे दिन खबर की दूसरी किस्त छपी। आयोग कुछ नहीं कर सका। हार कर उसने कुछ दिन बाद विज्ञापन चालू कर दिया। क्यों कि एनआइपी उन दिनों इतना प्रतिष्ठित था कि उसमें बिना छपे विज्ञापन सब जगह पहुंच ही नहीं सकता था।
एक बार अमृत प्रभात के मेजा के संवाददाता हरिहर मिश्र ने इलाहाबाद के बड़े नेता के खिलाफ खबर छाप दी। वह भी मेजा के ही रहने वाले थे। खबर छपने पर वह अमृत प्रभात दफ्तर आए और संवाददाता को हटाने की मांग की। कहने लगे कि वह संवाददाता उनसे पैसे मांग रहा था जब नहीं दिए तो खबर छाप दी। उस समय केबी माथुर समाचार संपादक थे। हरिहर मिश्र तहसील के संवाददाता थे और वहीं पास के इंटर कालेज में पढ़ाते भी थे। नेता जी ने कहा कि आपका संवाददाता अपने स्कूल भी नहीं जाता और वहां ठीक से पढ़ाता नहीं ।
माथुर साहब ने कहा कि दो बातें हैं। पहली यदि खबर में कोई गलती है तो उसे बताएं। यदि खबर गलत नहीं है तो इस पर बात खत्म हो जाती है। दूसरे वह पैसे मांग रहे थे,इसका कोई प्रमाण आपके पास नहीं है। तीसरी बात वह अपने स्कूल में नहीं जाते और पढ़ाते नहीं तो इसके लिए आप स्कूल प्रबंधन से कहें,वह कार्रवाई करे, मैं रोकने नहीं जाऊंगा। नेता जी ने परोक्ष रूप से धमकी भी दी कि अखबार चलाना है तो मेरी बात माननी होगी। माथुर साहब ने कहा कि आपको जो करना है करें, मैं संवाददाता को नहीं हटाऊंगा। उसकी गलती होती तो देखा जाता। संवाददाता भी नहीं हटा और अखबार भी चलता रहा।
इसी तरह एक बार हमारे रायबरेली के संवाददाता श्याम नारायण द्विवेदी से तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी किसी बात पर नाराज हो गए थे। उन्होनें संपादक केबी माथुर से उन्हें हटाने के लिए कहा। माथुर साहब ने मना कर दिया। तिवारी जी ने कई बार उन्हें इसके लिए दबाव डाला लेकिन वह नहीं माने। इसी बीच एक बार तरुण कांति घोष किसी काम से लखनऊ आए। वह मिलने के लिए एनडी तिवारी के पास गए। साथ में माथुर साहब भी थे। वहां भी तिवारी जी ने वही बात दोहराई और कहा कि आपके संपादक जी मेरी बात नहीं मानते।
तरुण बाबू ने कहा कि माथुर साहब देख लीजिए। तिवारी जी से मेरे पारिवारिक संबंध हैं। इनकी बात मान लीजिए। माथुर साहब ने फिर अपनी बात रखी कि उस संवाददाता की कोई कमी तो बताएं या उसकी लिखी खबर में गलती बताएं तो कार्रवाई की जाए।
माथुर साहब ने मुझसे बताया कि बाहर निकलने के बाद तरुण बाबू ने उनसे कहा कि तिवारी जी के सामने मैने भले ही कह दिया हो, आप जो उचित समझें,वही कीजिएगा। इस तरह की अनेक घटनाएं हैं जिसमें घोष परिवार ने कभी हस्तक्षेप नहीं किया और किसी दबाव में नहीं आए।
एक बात और है। अमृत प्रभात के संवाददाता भी अपने क्षेत्र के सम्मानित व्यक्ति हुआ करते थे। कोई शिक्षक, कोई वकील, कोई डाक्टर। इन लोगों के खिलाफ शिकायतें भी नहीं आती थीं। शायद ही हमारा कोई संवाददाता ऐसा रहा हो जिसकी कभी शिकायत आई हो।
पत्रिका समूह ऐसा था जो अपने जिला संवाददाताओं को मानदेय और स्टेशनरी खर्च देता था। जिनके पास फोन था, उन्हें फोन का भी खर्च मिलता था। अन्य अखबारेां के संवाददाताओं को यह सब कुछ नहीं मिलता था। हमारे कुछ तहसील संवाददाता बाद में मुख्य धारा में बड़े अखबारों में गए और प्रतिष्ठित हुए। कुछ की कॉपी तो ऐसी हेाती थी कि मुख्यालय के लोगों से बेहतर लिखते थे। आज भी वे सक्रिय पत्रकारिता में हैं और बहुत अच्छा कर रहे हैं।
एक बार की घटना है। तब अमृत प्रभात के खराब दिन चल रहे थे। विज्ञापन कम हो गए थे। तमाल बाबू के पास कांग्रेस नेता लोकपति त्रिपाठी का विज्ञापन आया क्वार्टर पेज का। तब मैं अमृत प्रभात का समाचार संपादक था। वह विज्ञापन मेरे पास भिजवाए कि इसे अच्छी तरह छाप कर मिर्जापुर भिजवाना है। समय से डाक छूट जाए। मैने उन्हें आश्वस्त किया और पेज पर विज्ञापन लगवा कर फोरमैन को सहेज दिया कि जल्द डाक छुड़वा दें। जब अखबार छपने लगे तो एक कॉपी मेरे पास भिजवा दें। ऐसा ही हुआ।
अखबार छपने पर मैने जब वह पेज देखा तो उसपर लोकपति त्रिपाठी के खिलाफ ही खबर ठीक विज्ञापन के बगल में ही लगी थी। वह खबर मेरी निगाह से नहीं गुजरी थी और प्रादेशिक देखने वाले साथी ने उसे जरूरी लिख कर प्रेस में दे दिया था। जब तक मैं पेज रुकवाता तब तक पूरा संस्करण छप चुका था। कुछ किया नहीं जा सकता था। मैं काम खत्म कर घर आ गया था और सोने की तैयारी ही कर रहा था कि तमाल बाबू का फोन आ गया। वह कहीं से टहलते हुए प्रेस में आ गए थे और मिर्जापुर संस्करण देख कर सिर पकड़ लिए।
मुझसे पूछे कि आपने पेज नहीं देखा था क्या। मैने बताया कि पेज पर विज्ञापन तो लगवा दिया था लेकिन खबरें नहीं देखीं थी। बोले कि विज्ञापन के बगल में ही उनके खिलाफ खबर छपी है। मैंने कहा कि जी मैने भी देखा था तब तक संस्करण छप चुका था।वह बोले कि मैं खबर रोकने के लिए नहीं कह रहा था, वह किसी दूसरे पेज पर लग जाती। मैने माना कि गलती हो गई है। इसे अब सुधारा नहीं जा सकता था। दोबारा छापने की स्थिति नहीं थी क्यों कि कागज की कमी थी और कभी- कभी कागज न मिलने से अखबार भी नहीं छप पाता था।
एक और घटना की याद आती है। तमाल बाबू ने रेलवे की एक खबर दी और कहा कि इसे पहले पेज पर छापकर 500 कापियां मेरे पास कल भिजवा दीजिएगा। मैने कहा ठीक है, हो जाएगा। मैने खबर कंपोज कराई, प्रूफ अपने सामने पढ़ाया और पहले पेज पर एंकर लगवा दिया। उसका कुछ हिस्सा शेष के रूप में दूसरे पेज पर गया। यह उन दिनों की बात है जब मैटर लाइनों और मोनो मशीनों पर कंपोज होता था। मैं निश्चिंत हो घर आ गया। दूसरे दिन अखबार देखा तो शेष की हेडिंग तो ठीक थी लेकिन उसके नीचे मैटर दूसरी खबर का लग गया था।
दरअसल हैंड कंपोजिंग और लेड कंपोजिंग में बहुत तरह की दिक्कत आती थी। आज तो कंप्यूटर पर पेज बनता है और हेडिंग मैटर सब सामने दिखता है,तब भी गलतियां हो ही जाती हैं। लेड कंपोज मैटर तो समझ में ही नहीं आता था क्यों कि वह उल्टा होता था। मैटर गैली में अलग और हेडिंग अलग रखी जाती थी। प्रूफ हाथ में लेकर पेज बनवाना पड़ता था। हेडिंग और मैटर सिर्फ कंपोजीटर ही पढ़ सकते थे। कुछ पहचानने का अभ्यास हम लोगों को भी हेा गया था। पहले पेज का मैटर लगाने के बाद मैंने वही हेडिंग कंपेाज करा कर शेष के लिए दे दी और शेष का मैटर लगाने के लिए कह दिया।
मेकअप मैन ने उस खबर का मैटर शेष में न लगा कर दूसरे का लगा दिया। हेडिंग ठीक, मैटर दूसरा जो किसी लेख का शेष था। पेज का प्रूफ भी ठीक से नहीं उठा था। बस हेडिंग ही साफ थी। वह ठीक लगी ही थी। तमाल बाबू ने जब दूसरे दिन अखबार देखा तो नाराज हुए । शाम को प्रयागराज एक्सप्रेस से अखबार दिल्ली भेजना था। मुझे फोन किया। मैं क्या जवाब देता। बोला गलती तो हो गई। क्या दोबारा छाप दें। बोले नहीं लोग खबर पढ़ चुके हैं, दोबारा छापने से भद होगी। बोले, समझ में नहीं आ रहा है, पिता जी को क्या जवाब दूं। मैं क्या कहता।
दूसरे दिन शाम को आफिस पहुंचने पर अचानक मेरे दिमाग में एक बात आई। मैने मशीन इंचार्ज बनर्जी दादा को बुला कर पूछा कि मशीन से सिटी एडीशन की प्लेट उतरी तो नहीं है। वह बोले नहीं बस उतारने जा रहे हैं। मैंने कहा रोक दीजिए। मैंने उन्हें पूरी बात बताई। वह तैयार हो गए। शेष पेज का मैटर तैयार कर नई प्लेट बनी और पांच सौ अखबार छापकर बंडल बनवा कर उसे तमाल बाबू के कमरे में रखवा दिया। इतने में कुल एक घंटा लगा होता। वह शाम को आफिस आए तो बंडल देखा। उसके ऊपर एक अखबार अलग से रखवा दिया था। वह खुश हो गए। मेरे पास आए और बोले। अरे कैसे किया, आपने। मैने कहा- यह मत पूछिए। कंपनी का बस एक प्लेट का नुकसान हुआ। और बंडल प्रयागराज से दिल्ली पहुंच गया।
काम के दौरान इस तरह की गलतियां खूब होती हैं। मेरा मानना है कि गलतियां नहीं होनी चाहिए। लेकिन गलतियां भी उन्हीं से होती है जो काम करते हैं, जो काम ही नहीं करते, उनसे गलती कैसे होगी। हां गलती के पीछे लापरवाही नहीं होनी चाहिए। ये ऐसी गलतियां हैं जिनसे दूसरे अखबारों में नौकरी चली जाए। मैंने आज में शर्मा जी की नौकरी जाने की कहानी पहले बताई है। लेकिन घोष परिवार ने कभी इस तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं की।