दिग्विजय सिंह और अमृता राय की शादी ने समाज को नया रास्ता दिखाया है

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Sadhvi Meenu Jain : खबर है कि दिग्विजय सिंह ने अमृता राय से विवाह कर लिया है. खबर सुनकर चुस्की लेने या सिंह की नैतिकता / अनैतिकता से इतर मैं इस बहाने एक दूसरे विषय पर बात करना चाहती हूँ. हमारा समाज विधवा / विधुर / तलाकशुदा वरिष्ठ नागरिकों को दोबारा से एक नया जीवनसाथी चुनने की इजाजत क्यों नहीं देता और जो समाज की धारणा के विपरीत जाकर ऐसा कर भी लेते हैं उनका मखौल उड़ाया जाता है. उन पर ‘चढ़ी जवानी बुढ्ढे नूं’ ‘बुड्ढा जवान हो गया’ ‘तीर कमान हो गया’ ‘बुड्ढी घोड़ी, लाल लगाम’ जैसी फब्तियां कसी जाती हैं.

क्यों भई. ऐसा क्या गुनाह कर दिया उन्होंने? न्यूक्लियर परिवारों के इस युग में जब बेटे-बेटियां अपनी अपनी गृहस्थी, परिवार व समाज की जिम्मेदारियों में व्यस्त हो जाते हैं और जीवन की आपाधापी के चलते माता-पिता से बात करने तक की फुरसत उन्हें नहीं मिलती तब ऐसे में इन बुजुर्गों का एकाकीपन इन्हें काटने को दौड़ता है.

पति या पत्नी में से एक की मृत्यु हो जाए तो हालात और भी बदतर हो जाते हैं. कहां जाएं. किसके साथ बांटें ये अपने एकाकीपन की व्यथा? यूं ही घुट-घुट कर मर जाएं? पहले ज़माना था जब परिवार संयुक्त होते थे. बुजुर्गों का मन लगा रहता था. लेकिन आज के घोर आत्मकेंद्रित परिवारों में बुजुर्गों के लिए जगह ही कहां बची है? ऐसे में अगर वे अपना अकेलापन बांटने के लिए विवाह कर लेते हैं तो इसमें बुराई क्या है? जीवन के इस पड़ाव पर स्त्री हो या पुरुष, दैहिक सुख की अपेक्षा साहचर्य सुख खोजता है.

बुजुर्गों के कल्याण के लिए काम करने वाली मुम्बई की एक स्वयंसेवी संस्था के साथ वर्षों से जुड़े होने के कारण एकाकीपन भोगते बुजुर्गों की पीड़ा को बहुत नज़दीक से महसूस किया है. कई ऐसे बच्चों को मैं व्यक्तिगत रूप से जानती हूं जिन्होंने पीछे अकेले रह गए माता या पिता के लिए स्वयं जीवनसाथी की तलाश कर उनका विवाह करवाया है. कई ऐसी स्वयंसेवी संस्थाएं हैं जो अकेले बुजुर्गों के लिए सहचर तलाशने का काम कर रही हैं.

तो मित्रों, बचपना छोड़िए और कल्पना कीजिए उस स्थिति की जब आपकी संतानें अपने-अपने परिवारों के साथ या तो विदेश चली गईं है या आपको अपने साथ नहीं रखना चाहती हैं और आपकी पत्नी या पति का देहांत हो चुका है और अकेले जीवन बिताना आपके बस की बात नहीं है. तब ऐसी स्थिति में क्या करेंगे आप? Please try to put yourself in their shoes. If you are able to sympathize and empathize with them, you will not ridicule them.

साध्वी मीनू जैन के फेसबुक वॉल से.


मूल खबर :

अमृता-दिग्विजय ने कर ली शादी, फेसबुक पर शेयर की दिल की बात

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