Deepankar Patel : देश के ज्यादातर मीडिया संस्थान ANI से इनपुट लेते हैं.
लेकिन जब ANI की एडिटर इन चीफ ही गरीबों की शिक्षा के लिए इतनी चीप मानसिकता रखती हैं. तो ANI से भरोसे चलने वाले देश के मीडिया संस्थानों की मानसिकता क्या होगी इसका आप स्वयं ही अंदाजा लगा सकते हैं.
ये ट्वीट सेव कर लीजिए, बार-बार देखिए और सोचिए इस देश का एलीट इस देश के गरीबों की शिक्षा के बारे में कितना घटिया किस्म का विचार रखता है.
देखें एएनआई की महिला ए़डिटर इन चीफ की मानसिकता, उनके इन ट्वीट्स में…
Sanjaya Kumar Singh : कल स्मिता प्रकाश ने पूछा था कि सासाराम में 6000 रुपए कमाने वाले का बेटा रूसी क्यों पढ़ रहा है जबकि रूसी में नौकरी की संभावना नहीं है। आज देखिए संस्कृत पढ़े एक विद्वान को नौकरी मिल गई (नौकरी संस्कृत में भी नहीं है) तो दूसरी समस्या खड़ी हो गई।
भाई लोगों को दिक्कत है कि मुस्लिम विद्वान संस्कृत कैसे पढ़ाए। अव्वल तो इसमें कोई समस्या होनी ही नहीं चाहिए और अगर यही चलता रहा तो पुरानी वर्ण व्यवस्था कैसे खत्म होगी। धोबी का बेटा धोबी ही होगा और पुजारी का बेटा पुजारी।
हालांकि, इस स्थिति से लग रहा है कि आरक्षण का लाभ उन्हें तो नहीं ही मिला है जिनके लिए यह है। सामान्य पढ़ने वालों (ऊंची जाति के लोगों को कहना ठीक रहेगा) को भी अभी आरक्षण की आवश्यकता और समझ को समझाने की जरूरत है। आरक्षण का लाभ तो छोड़िए, आरक्षण अभी अपनी जरूरत नहीं बता पाया है। लोग कहते हैं आरक्षण खत्म कर देना चाहिए। असल में शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है।