Anil Singh : बाप की अदालत में तड़ीपार भाई शाह…भेष बदल रहा है… जगत शर्मा के ‘बाप की अदालत’ में ‘बहुते जुमला पार्टी’ के अध्यक्ष तड़ीपार भाई शाह ने जब से बताया है कि विमुद्रीकरण से देश की हालत बदल जाएगी, युवाओं को रोजगार मिलेगा, देश तरक्की की राह पर निकल पड़ेगा, आसामान में हर तीसरा उपग्रह अपना होगा, हर गांव में बिजली-पानी पहुंच जाएगा, तब से हमारी कल्पनाओं की उड़ान को ऐसे पर लग गए हैं कि अब वह जमीन पर उतरने को तैयार ही नहीं है. ढेला मार रहा हूं तब भी नहीं उतर रहा है.
बुझा रहा है कि विमुद्रीकरण ने तो गजबे का कमाल कर दिया, कितना सुंदर नजारा होगा जब दो-चार साल के भीतर हमको जगह-जगह उपग्रह दिखेंगे? हर तीसरा हमारा होगा. रमेश अपने तीन तल्ला छत पर चढ़कर लग्घी से अपने उपग्रह को नीचे हींचने का प्रयास करेगा, अमेरिका वाला उपग्रह डर कर खिसक जाएगा चीन और पाकिस्तान की ओर. चीन-पाकिस्तान टेंशन में आ जाएंगे. माल्या सब पैसा वापस कर जाएंगे. सोच कर ही कितना आनंद आ रहा है. जब यह सब पूरा हो जाएगा तो सोचिए केतना मजा आएगा. 2019 में तो भारत इतना विकास कर लेगा कि गरीब खा-खाकर मरेगा. भिखमंगे बाइक पर पेटीएम से भीख मांगते नजर आएंगे. कनेक्टिविटी इतनी बढ़ जाएगी कि अबूझमाड़ और बस्तर के जंगल में बैठकर आदिवासी अपना पैसा ऑनलाइन बैंक में जमा करा देंगे.
तुम भी सोचो भाई, अकेले हमीं थोड़े ना ठेका लिए हैं ई सब सोचने का. सोचो. सरकारी प्राइमरी स्कूल में केवल खाना खाने आने वाला बच्चा कलुआ यहां से पढ़कर धड़ाधड़ इंग्लिश बुकेगा. प्राइमरी स्कूल में केवल संख्या बढ़ाने खातिर कलुआ, रमुआ, कलीमवा को घरे से पकड़कर लाने वाले प्राइमरी अध्यापक इस विमुद्रीकरण से इतने घबराहट में आ जाएंगे कि वोट बनाने, जनसंख्या गिनने का काम छोड़कर बचपने में रमेशवा, सुरेशवा, दिनेशवा, महेशवा को मेनहत से पढ़ाकर उपग्रह बनाना सीखा देंगे. मजबूत नींव बन जाएगी तो आगे पढ़कर ये बच्चे सब उपग्रह से आगे ग्रह, आग्रह, विग्रह, संग्रह भी बनाने लगेंगे. उपग्रह छूटेगा तो सब लोग कैसलेस काम करने लगेंगे. सोचो, तड़ीपार भाई शाह पर कितना केस था. भाई अब खुदे केसलेस हो गया है तो सबको कैशलेस बनाने का प्रयास में मोतीजी के साथ जुट गया है. अभी खाली मजदूर सब कैसलेस हुआ है. मजदूर को आराम देने के लिए कोई काम नहीं ले रहा है और दे भी नहीं रहा है. मजदूर वर्ग अब कैसलेस हो रहा है. एटीएम और बैंक तो कैशलेस होइए रहे हैं. विमुद्रीकरण से बैंक वाले ईमानदार हो चुके हैं. अधिकारी सब बेईमानी छोड़ चुके हैं. पुलिस वाला अब घूस नहीं मांग रहा है. पूरे देश में गुजरात जैसे हालात बन गए हैं. कच्छ समेत गुजरात के इंटीरियर में सबको पीने का शुद्ध पानी मिलने लगा है.
मैं भावी वर्ष 2019 को देखकर और भी अभिभूत हो रहा हूं. विमुद्रीकरण के दूरगामी परिणाम के चलते उपग्रह के छूटते ही किसान अपनी फसल ऑनलाइन बोने और काटने लगा है. उसकी बिक्री का पैसा पेटीएम पर आने लगा है. खाद खेतों में उपग्रह के जरिए छिड़के जा रहे हैं. पानी इंटनेट पहुंचा रहा है. सरकार ने इंटरनेट डाटा की फसल बो दी है, हर कोई फ्री में काटकर अपने मोबाइल में भर रहा है. कहीं गरीबी बची ही नहीं है. फुटपाथ पर अब अमीर सोने लगे हैं. सरकारी अधिकारी-कर्मचारी जनता की योजनाओं का पूरा पैसा उनके पास पहुंचाने लगे हैं. उनके मन से बेइमानी निकल चुकी है. उन्होंने बेईमानी करने से इनकार कर दिया है. अब नक्सल एवं आतंकवाद की घटनाएं बंद हो चुकी हैं. विमुद्रीकरण के बाद से कोई आतंकी हमला नहीं हुआ. अर्थतंत्र को इतना फायदा हुआ है कि परसो तक मूंगफली खरीदने वाला आज खुद सड़क किनारे मूंगफली बेचकर रोजगार कर रहा है. गरीब जनता मॉल में जाकर आलू खरीद रही है. सियासी पार्टिंया अब चंदा पेटीएम से लेने लगी हैं.
तड़ीपार भाई शाह ने जब से जगत शर्मा के ‘बाप की अदालत’ में यह बताया है कि काला धन का मतलब बिना टैक्स वाला धन होता है तब से गुजरात वाले महेश भाई शाह का चेहरा ही याद आ रहा है. महेश भाई छुट्टा घूम रहे हैं. मतलब आप टैक्स देकर किसी को लूट सकते हैं, किसी की जेब से पैसा निकाल सकते हैं, बस टैक्स देना मत भूलिए. जब से कालाधन का ई वाला परिभाषा सुने हैं, तब से कीन्स, काल मार्क्स, मार्शल पर जी खुनसा रहा है. ससुरे पता नहीं कहां से अर्थशास्त्र पढ़कर आए थे. तड़ीपार भाई के परिभाषा के बाद से तो हम भी बैंक लूटने के बाद टैक्स जमा करके सफेद धन बनाने की तैयारी कर रहे हैं. याद तो होगा ही, तड़ीपार भाई की पार्टी वाली सरकार ने जब से रेल यात्रा का किराया बढ़ाया है, तब से रेलगाडि़यां पटरियां छोड़ना भूल गई हैं. विदेशों में भारत का डंका बज रहा है. अमेरिका वाले ड्रंक ने बिना पिये तय किया है कि वह मोतीजी के साथ मिलकर पाकिस्तान को बरबाद कर देगा. माल्या भी बैंकों का सारा पैसा लौटाने के लिए पगलाए घूम रहे हैं. बैंक वाले हैं कि पैसा लेने को तैयार ही नहीं हैं. सारा धन सफेद हो चुका है. ईमानदारी नालियों में बह रही है. दारु पीने वाले मशीन में कार्ड रगड़ दे रहे हैं और बोतल बाहर निकल कर नाचने लग रहा है. पूरा देश नशे में है. पता नहीं कब होश आएगा. जय श्रीराम, टेंट में रहो विराजमान. मेरा भेष बदल रहा है… मेरा वेश बदल रहा है.
इस व्यंग्य कथा के लेखक अनिल सिंह लखनऊ में दृष्टांत मैग्जीन में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क anilhamar@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.
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Comments on “जगत शर्मा के ‘बाप की अदालत’ में ‘बहुते जुमला पार्टी’ के अध्यक्ष तड़ीपार भाई शाह ने जब से बताया है…”
बहुत बढ़िया। कॉर्पोरेट की तरह सरकार चला रहे है। हर प्रोडक्ट फेल हो जाता है, नया ताम झाम के साथ ले आते है। सपनो के बाजीगर।
very good