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सुख-दुख

‘माधुरी’ के पूर्व संपादक अरविंद कुमार का निधन

उर्मिलेश-

बहुत बड़ी क्षति-सचमुच अपूरणीय. हिंदी का पहला समांतर कोश (थिसॉरस) तैयार करने वाले भाषाविद्, माधुरी के पूर्व संपादक और कई महत्वपूर्ण पुस्तकों के लेखक अरविंद कुमार Arvind Kumar नहीं रहे.

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अंतिम समय तक वह अपने भावी प्रकल्पो को पूरा करने में लगे रहे. अरविंद जी 91 वर्ष के थे. बेहद अध्ययनशील, अनुशासन-प्रिय और मेहनती होने के चलते ही उन्होने अपने जीवन में इतने महत्वपूर्ण काम किये. इसमें उनकी विदुषी जीवन-संगिनी कुसुम जी की भी उल्लेखनीय भूमिका रही.
उनसे मेरा संपर्क बहुत बाद का है, वह भी सोशल मीडिया के माध्यम से. लेकिन कम समय के औपचारिक परिचय के बाद भी मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनका बौद्धिक-संरक्षण और स्नेह मिला.

अरविंद जी ने जो काम किये हैं, वह उन्हें हिंदी भाषा, साहित्य और पत्रकारिता के इतिहास में हमेशा जिंदा रखेंगे. सादर श्रद्धांजलि, अरविंद जी! परिवार के प्रति शोक-संवेदना.


पंकज चतुर्वेदी-

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हिंदी के पहले थिसारस– समांतर कोष के रचयिता, माधुरी, रीडर्स डायजेस्ट आदि के संपादक रहे, प्रख्यात हिंदीसेवी अरविंद कुमार जी का देहावसान।


प्रकाश चंद्र गिरी-

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‘माधुरी’ के पूर्व सम्पादक, शब्दकोश निर्माण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले आदरणीय अरविंद कुमार जी को अंतिम प्रणाम।


देव प्रिय अवस्थी-

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हिंदी के श्रेष्ठ संपादकों में शुमार शब्द साधक और समांतर कोश के कोशकार अरविंद कुमार का महाप्रयाण। वे एक पूर्ण और सार्थक जीवन जीकर ९१ वर्ष की उम्र में विदा हुए। अंतिम प्रणाम।


राजेश प्रियदर्शी-

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Arvind Kumar का जाना मेरा निजी नुकसान है. वे एक विलक्षण व्यक्ति थे, उनसे मिलकर मुझे हमेशा ऐसा लगता था कि संत या ऋषि-मुनि ऐसे ही होते होंगे. रात-दिन पढ़ने-लिखने में लगे रहते थे. अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी वे बहुत सक्रिय थे. फ़ोन पर महीने-दो महीने में बात होती रहती थी, इन बातों के केंद्र में भाषा संबंधी मेरी जिज्ञासाएँ होती थीं, लेकिन बाद में और भी बहुत सारी बातें होने लगी थीं. 94 साल की उम्र में भी उनके पास खाली वक्त कभी नहीं होता था, वे समय तय करके बात करना पसंद करते थे, काम के बीच में नहीं. एक बार मैं उनके घर गया तो वे अपने कंप्यूटर पर अंतरिक्ष से जुड़े शब्दों की सूची बना रहे थे, साथ ही उनकी तुलना ग्रीक, अरबी और फ़ारसी शब्दों से कर रहे थे.

टेक्नोलॉजी में उनकी गहरी दिलचस्पी थी, वे माधुरी के पुराने अंको डिजिटाइज़ करने में मेरी मदद चाहते थे, वे तरह-तरह के ऑनलाइन टूल्स इस्तेमाल कर रहे थे, वे चाहते थे कि माधुरी के पुराने अंकों को स्कैन करके टेक्स्ट में बदला जा सके और फिर उन्हें एडिट किया जा सके, इस सिलसिले में मैंने गूगल में काम करने वाले एक मित्र से मदद भी ली थी.

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मैंने उनका वृहद कोश उनसे माँगा तो उन्होंने मज़ाक में कहा कि मुझसे लोगे तो 500 रुपए का डिस्काउंट और चाय भी मिलेगी. मेरे पास पैसे नहीं थे तो उन्होंने अपनी पुरानी मारुति 800 कार निकाली खुद गाड़ी चलाकर एटीएम तक ले गए. कोश इतना भारी था कि टैक्सी तक ले जाने में मेरे हाथ दुख रहे थे.

उनके पास फ़िल्मी दुनिया के किस्सों का अपार खज़ाना था, गायक मुकेश और गीतकार शैलेंद्र उनके पारिवारिक दोस्त थे. ‘माधुरी’ के संपादन के समय वे फ़िल्म इंडस्ट्री के बडे आदमी माने जाते थे लेकिन उन्होंने अचानक इस्तीफ़ा देकर सामांतर कोश बनाने का फ़ैसला किया और मुंबई के मरीन ड्राइव से गाज़ियाबाद आ गए, वे मूलत मेरठ के रहने वाले थे. दिल्ली प्रेस से प्रिंटिंग का टेक्निकल काम सीखने से शुरूआत करके, बरास्ता प्रूफ़ रीडर वे संपादक बने थे. उन्होेंने माधुरी के अलावा रीडर्स डाइजेस्ट के हिंदी संस्करण सर्वोत्तम का भी संपादन किया था.

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मैं उनसे पहली बार 1990 के दशक के मध्य में मिला था, जब उनका थिसॉरस नेशनल बुक ट्रस्ट से छपकर आया था तब मैंने उनसे बातचीत की थी इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के लिए. उसके बाद मैं 1997 में लंदन चला गया, फेसबुक पर हुई मुलाकात से मुझे बहुत खुशी हुई, उन्हें इंडिया टुडे वाली रिपोर्ट याद थी, उनकी याद्दाश्त वैसे भी गज़ब थी. उसके बाद लगातार उनसे संपर्क बना रहा, कई बार उनके घर जाकर मिला भी. सर्दियों में वे पांडिचेरी के अरविंद आश्रम अरुविल चले जाते थे, उनसे अंतिम मुलाकात मार्च 2019 में हुई जब वे पांडिचेरी से लौटे ही थे. यह तस्वीर तभी की है.

कई बार मिलने के बारे में बात हुई लेकिन न जाने कितने अनसुने किस्से अपने साथ ही लेकर चले गए अरविंद जी. पिछली बार तक 94 साल की उम्र में उन्हें कार चलाते देखकर लगा था कि उनको सेंचुरी मारने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया. लेकिन वे एक भरी-पूरी थाती हमारे लिए छोड़ गए हैं. सादर नमन.

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