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सुख-दुख

कल पंचनामा की जगह एक दर्द एडिट किया!

न्यूज नेशन के आशीष जैन ने बाल संहार कांड पर यूं किया अपने दर्द का बयान… मैं भी एक पिता हूँ. एक दिल के अंदर कितने लोग रहते हैं, यह मैं जानता हूं. मुमकिन यह बातें आपके अंदर भी घूम रही हों. मैं एक न्यूज़रूम में काम करता हूँ. आप उसे अपनी सहूलियतों से उसकी संज्ञा बदल सकते हैं. खैर. आमतौर पर मैं पंचनामा एडिट करता हूँ जो शाम 6 बजे on air होता है. कल पंचनामा की जगह एक दर्द एडिट किया. एक नहीं करोड़ों आंखों को नम होते देखा. भीगे हुए लोग क्या लिखते हैं, मैं नहीं जानता. लेकिन एक हारा हुआ इंसान क्या लिखता है, यह मैं जानता हूँ. जब कलम से स्याही बाहर न निकले तो सोच लेना कि कुछ गलत है. कल ऐसा ही तो हुआ था.

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न्यूज नेशन के आशीष जैन ने बाल संहार कांड पर यूं किया अपने दर्द का बयान… मैं भी एक पिता हूँ. एक दिल के अंदर कितने लोग रहते हैं, यह मैं जानता हूं. मुमकिन यह बातें आपके अंदर भी घूम रही हों. मैं एक न्यूज़रूम में काम करता हूँ. आप उसे अपनी सहूलियतों से उसकी संज्ञा बदल सकते हैं. खैर. आमतौर पर मैं पंचनामा एडिट करता हूँ जो शाम 6 बजे on air होता है. कल पंचनामा की जगह एक दर्द एडिट किया. एक नहीं करोड़ों आंखों को नम होते देखा. भीगे हुए लोग क्या लिखते हैं, मैं नहीं जानता. लेकिन एक हारा हुआ इंसान क्या लिखता है, यह मैं जानता हूँ. जब कलम से स्याही बाहर न निकले तो सोच लेना कि कुछ गलत है. कल ऐसा ही तो हुआ था.

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रिपोर्टर सवाल पूछता भी तो आखिर कैसे. एक बाप दूसरे बाप से पूछता भी तो क्या? दो साल का मेरा बाबू. मेरा शेर. मेरी लाडली. कहां चली गई. कुछ वक्त पहले तो वो सही था. जो मास्क डाक्टर ने लगाया था वो सही से फिट भी था. फिर यह क्या हो गया. बस याद है इतना- एक तड़पन, एक ऐंठती हुई देह, जो मेरे सामने रोती रही. तुम्हें जिस साँस की जरूरत थी, वो शायद यह दुनिया तुम्हें देने के लिए तैयार न थी. काश मैं अपनी सांस तेरे अंदर उड़ेल देता, जिसे सहारा बनाया था, उसे पहली बार मेरे सहारे की जरूरत थी. यह अजीब सी उलझन थी. आंखों के सामने एक पहाड़ सी ज़िन्दगी दिख रही थी. तभी एक साँस ने सब कुछ छीन लिया. तुम तो अभी बोल भी नहीं सकते थे. शायद इसलिए तुम्हें पहचान नहीं पाया. तुम सो रहे हो. मैं जानता हूँ. बाहर यह लोग क्या कह रहे हैं. देखो न, इस अस्पताल में बेचैन लाशें हैं.

आख़िर एक बूढ़ा बाप क्या उम्मीद करता जिसको गरीबी लील रही थी. इस बार रूप बदल कर. धीरे धीरे, और ज्यादा विनाशकारी, और ज्यादा बदसूरत, एक गहरा काला अंधेरा. तभी प्रोडूसर बोला- भाई 6 बजने को है. संवेदना, दर्द और भावुकता नदी के उस पार. प्रोफेशनल ज़िन्दगी में यह दर्द बदल बदल कर आता है. हर बार कुछ नया, हर बार और वीभत्स और काली. किसी के अपनों ने दम तोड़ दिया. किसी के अकेले चिराग ने दम तोड़ दिया. यह रुलाइयाँ बहुत दूर तक नहीं जाएगी. न्यूज़रूम हर मिनट, एक नई ख़बर का इंतज़ार करता है. इस बार मेरा न्यूज़ रूम ग़मगीन है. टूटा हुआ है. बिखरा हुआ है. उसने इन बच्चों की लाशों को देखा है. उसने मरे हुए बच्चों को ज़िंदा होते हुए देखा है. एक बाप को असफल तसल्ली देते हुए देखा है. मैंने रूंधे हुए गले से, सुबकते हुए चेहरे को देखा है. लॉबी में, चुपके से अपने बच्चों से बात करते हुए देखा है. तुम ठीक तो हो बेटा. मेरा बेटा 9 महीने का है. उंगलियां इस बात की इजाजत नहीं दे रही है. सोच लीजियेगा लिखना नहीं चाहता.

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आशीष जैन
न्यूज़ नेशन
8860786891
[email protected]

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