प्रदूषण को रोकना सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए… वर्तमान समय मे प्लास्टिक हमारे जीवन का सबसे जहरीला प्रदूषण है और फिर भी वो हमारे जीवन का अहम हिस्सा बना हुआ है। यह एक नॉन बायोडिग्रेडेबल पदार्थ है, जो जहरीले रसायनों से बना होता है और हमारी धरती, जल, वायु सबको प्रदूषित करता है। अभी तक इसको नष्ट करने का कोई सटीक उपाय नही मिला है हमे। प्लास्टिक हमारे जीवन शैली में इस तरह घुल मिल गया है कि नित्य हम इसका उपयोग किसी न किसी रूप में करते जा रहे हैं। प्लास्टिक का स्वरूप और उपयोग जो आज हम देख रहे और कर रहे है शुरुआत में ऐसा नही था। इसको अपने वर्तमान में आने में कई साल लगे हैं।
सन 1862 में लंदन के ग्रेट इंटरनेशनल एक्जीविशन में जब अलेक्जेंडर पारकेज ने जब इसे प्रदर्शित किया उस समय इसको “पार्केसिन” कहा गया, जो एक आर्गेनिक मटेरियल था और सेलुलोज नामक पदार्थ से बना था। सन 1869 में जान वेस्ले हयात नाम के वैज्ञानिक ने दूसरा मटेरियल बनाया जिसे सेलुलाइड कहा गया। इसका प्रयोग बिलियर्ड बाल बनाने में हाथी दांत की जगह किया गया! इसे गर्म करके किसी भी आकार में बदला जा सकता था! इसके बाद सेलुलाइड का उपयोग बायोग्राफिक्स फ़िल्म में किया जाने लगा। सन 1877 में हयात और कयजल्लिनाइट कम्पनी ने मिलकर प्लास्टिक बनाना शुरू किया जो आज भी बी एक्स एल प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जानी जाती है। बेल्जियम के लियो बेकलेण्ड ने 1907 में बेकेलाइट कई खोज की , जो अगले 50 साल तक अपना प्रभुत्व बनाये रखा, इससे टेलीफोन, कैमरा केस, रेडियो, और कुर्सियां बनाई जाती थी।
बीसवीं सदी के शुरुआत में एक दूसरे तरह के प्लास्टिक का चलन शुरू हुआ, जर्मनी के एडोल्फ स्पिटेलर ने सार मिल्क और फरमेल्डाहाइड को मिलाकर एक ऐसा पदार्थ बनाया जो वास्तव में केजिन ( मिल्क प्रोटीन) प्लास्टिक था, आज हवाई जहाज से लेकर हर जगह प्लास्टिक का उपयोग होने लगा है।
पहला प्लास्टिक बैग सन 1957 में लोगो के सामने आया, लेकिन साधारण किराना के दुकानों में असल उपयोग 1970 से शुरू हुआ, इस बैग को फॉसिल फ्यूल्स से बनाया जाता है,इसके उत्पादन प्रक्रिया में बायो प्रोडक्ट्स जैसे हेवी मेटल, पालिसाइकिल , एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन, बोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड्स , सल्फर ऑक्साइड और डस्ट के साथ गहन आद्योगिक प्रकिया करके बनाई जाती है।
ज्यादातर प्लास्टिक विघटित नही होते और सैकड़ो सालों तक बने रहते है चाहे पानी, जमीन किसी के अंदर रहे, जला दिए जाएं! प्लास्टिक को नष्ट होने में 700 साल के करीब लगता है। प्लास्टिक वजन में कम होता है, और मॉइस्चर रेजिस्टेंट होता है इसीलिए पानी में तैर जाता है और हवा में उड़ भी सकता है। इसीलिए इसका उपयोग बहुतायत होता है।
प्लास्टिक को फोटोडीग्रेशन प्रक्रिया द्वारा सूर्य के प्रकाश के जरिये नष्ट होने में 500 साल लग जाएंगे। जबकि नॉन बोवेन फैब्रिक बैग्स जो जल्द ही विघटित हो जाते है, 1 से 4 महीने लगते हैं। आज विश्व मे प्रतिदिन मात्र 0.6% प्लास्टिक ही रिसाइकिल हो पाते हैं। ये अपने आप में एक चिंतनीय प्रश्न है। इसमें प्रयोग होने वाला रसायन इतना जहरीला होता है कि पृथ्वी पर रहने वाले हरेक जीव के लिए खतरनाक है।
प्लाटिक के कुछ अवयव जैसे बेंजीन और विनाइल क्लोराइड कैंसर रोग के प्रमुख कारक हैं जबकि अन्य हाइड्रोकार्बन्स गैस वायु प्रदूषण करती हैं! ये हमारे तंत्रिका तंत्र पर बहुत ही बुरा प्रभाव डालते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करते हैं, साथ में रक्त एवं गुरदे पर भयानक असर डालते हैं। अब तो जन चेतना ही इसके ऊपर रोक थाम लगा सकती है। इसके लिए जनसामान्य को चाहिए कि प्लास्टिक बैग की जगह नान वोवेंन कैरी बैग इस्तेमाल करे या घर से कपड़े का झोला लेकर जाए।
नॉन वोवेंन फैब्रिक विघटित होने वाले पदार्थो से बना है जो पानी और जमीन के सम्पर्क में 1 से 3 महीने के अंदर सड़ गल के खत्म हो जाते है! अब तो महाराष्ट्र से लेकर यूपी तक कि सरकारों ने प्लास्टिक पर बैन कर दिया है। अब ज्यादा से ज्यादा यूज एंड थ्रो वाले उन प्लास्टिक के सामानों की जगह वैसे चीज इस्तेमाल करे जो रिसाइकिल हो सके। नॉन वोवेंन फैब्रिक 70 % पाली प्रोपाऐलीन और 30% प्लास्टिक मिला कर बनाया जाता है। जो अल्प समय मे ही विघटित हो जाता है और पर्यावरण को कोई नुकसान नही पहुचता है।
इस फैब्रिक से आजकल बहुत सी चीजें बनाई जा रही है जिसमे डायपर, सेनेटरी पैड्स, बहुत प्रकार के खिलौने इत्यादि। सरकार ने इसपर 12% जीएसटी ठोक रखा है। यदि इसे टैक्स फ्री किया जाए तो ये और सस्ता होगा और आम जनमानस की पहुच में होगा! जिससे लोगो को सहूलियत होगी बाजार, दुकान जाने में और ईकोफ्रेंडली भी है।
Ashvin Mishra
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