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वेब-सिनेमा

उम्मीद न थी कि लोग 1100 रुपये देकर मुझे सुनने मुझसे सीखने आएंगे! (देखें भड़ास वर्कशाप की तस्वीरें और कुछ वीडियो)

जब प्लान किया तो सोचा था दस से पंद्रह लोग आ ही जाएंगे. इतने लोग भी आते तो मैं आयोजन सफल मानता क्योंकि मेरा मकसद भीड़ जुटाकर और सबसे पैसे लेकर ऐसे इवेंट के जरिए धन कमाना नहीं था. मकसद सिर्फ एक था और रहेगा कि भड़ास ब्लाग से शुरू करके भड़ास4मीडिया डाट काम तक की यात्रा के आठ-नौ वर्षों में जो कुछ समझा जाना उसे अब अपने दूसरे साथियों को समझा-सिखा देना है. जो चीजें महीनों-वर्षों की तपस्या, शोध, कार्य के बाद जान पाया, उसे अपने हिंदी पट्टी के भाइयों को कुछ घंटों के वर्कशाप के जरिए बता देना है.

जब प्लान किया तो सोचा था दस से पंद्रह लोग आ ही जाएंगे. इतने लोग भी आते तो मैं आयोजन सफल मानता क्योंकि मेरा मकसद भीड़ जुटाकर और सबसे पैसे लेकर ऐसे इवेंट के जरिए धन कमाना नहीं था. मकसद सिर्फ एक था और रहेगा कि भड़ास ब्लाग से शुरू करके भड़ास4मीडिया डाट काम तक की यात्रा के आठ-नौ वर्षों में जो कुछ समझा जाना उसे अब अपने दूसरे साथियों को समझा-सिखा देना है. जो चीजें महीनों-वर्षों की तपस्या, शोध, कार्य के बाद जान पाया, उसे अपने हिंदी पट्टी के भाइयों को कुछ घंटों के वर्कशाप के जरिए बता देना है.

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भड़ास ब्लाग चलाते हुए जब पहली बार गूगल ने अपने एडसेंस प्रोग्राम के जरिए सौ डालर यानि तबके पांच हजार रुपये से ज्यादा का चेक भेजा था तो खुशी से उछल पड़ा था. उसी वक्त तय किया था कि मेरा भविष्य इधर ही है इधर ही है इधर ही है. और, भड़ास4मीडिया डॉट कॉम के जरिए खुद का आनलाइन कामकाज शुरू कर दिया. गूगल ने हिंदी वालों को विज्ञापन देना बंद कर दिया था लेकिन बीते साल के दिसंबर से गूगल ने फिर से हिंदी साइटों ब्लागों को विज्ञापन देने की पालिसी शुरू कर दी. इससे जमे-जमाए भड़ास4मीडिया समेत कई साथियों के ब्लागों-वेबसाइटों को तुरंत फायदा हुआ. इसी फायदे के ज्ञान को दूसरे साथियों को सिखाने बताने के मकसद से 17 अप्रैल को दिल्ली के दीनदयाल मार्ग पर स्थित उर्दू घर में कंटेंट मानेटाइजेशन वर्कशाप का आयोजन कराया. करीब 34 से 38 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. इनने 1100 रुपये देकर रजिस्ट्रेशन कराया और वर्कशाप में साधिकार हिस्सा लिया. इतनी ही संख्या मेरे बुलाए मेहमानों की रही होगी. 130 की क्षमता वाले उर्दू घर सभागार में मेहमानों और प्रतिभागियों को मिलाकर अस्सी से ज्यादा लोग मौजूद थे.

वर्कशाप शुरू होने से पहले थोड़ा नर्वस था. वर्कशाप का केंद्रबिंदु मैं बना हुआ था. मेरी तस्वीर बैकड्राप से लेकर स्टैंडी पर लगी थी. अचानक ही खुद को इतना महत्वपूर्ण मान सोचकर नरभसाने लगा. वजह ये कि खुद के बारे में हमेशा से ये मानता कहता गाता रहा हूं कि— ”गुन तो न था कोई भी, अवगुन मेरे भुला देना.. ”। लेकिन जब कार्यक्रम शुरू हुआ तो मैंने मुड़कर पीछे नहीं देखा. वर्कशाप खत्म हुआ तो सबने एक सुर से कहा- ”हमें उम्मीद न थी कि यहां आकर इतना कुछ सीख समझ पाएंगे. यहां आना तो अदभुत अनुभव रहा. इसके लिए 1100 रुपये कुछ भी नहीं.”

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सबने दिल से धन्यवाद और साधुवाद दिया. मुझे तसल्ली हुई कि चलो, मैं लोगों के अरमान पर खरा तो उतरा. बाद में अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग एंगल से समझाया.

किसी ने कहा कि यही वर्कशाप अगर गूगल वाले रखे होते और रजिस्ट्रेशन फीस 11 हजार रुपये होती तो ज्यादा लोग इतना पैसा देकर आते, आपने यशवंत जी बहुत कम पैसे में इतना कीमती वर्कशाप आयोजित किया. किसी दूसरे ने कहा कि सर अब आप आगे से एक बार यूट्यूब के जरिए पैसे कमाने का वर्कशाप रखो ताकि उसमें सिर्फ टीवी वाले आ सकें और उन्हें शुरू से यानि कखगघ से ज्ञ तक का ज्ञान दो. एक अन्य साथी ने कहा कि इस आयोजन की कड़ी को राजधानियों और जिलों तक ले जाएं. बहुत सारे फीडबैक आए लेकिन सबमें जो कामन बात थी वो ये कि आयोजन सफलतम रहा.

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अब आइए बता देते हैं कि आयोजन में हुआ क्या क्या. इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मास कम्युनिकेशन यानि आईआईएमसी के प्रोफेसर व एचओडी डा. आनंद प्रधान ने उद्यमिता और आनलाइन दुनिया को लेकर सुगठित वक्तव्य रखा. मोटीवेटर चंद्रशेखर सिंह ने जीतने और सफल होने के गुर बताए. एएस रघुनाथ ने भारत में पारंपरिक और न्यू मीडिया को लेकर आंकड़ों के साथ अतीत वर्तमान व भविष्य के बारे में समझाया और कनवींस किया कि आनलाइन क्षेत्र में आज की छोटी सक्रियता कल को बहुत बड़ा बनाने में सक्षम है. रघुनाथ जी के प्रजेंटेशन और आइडियाज की प्रतिभागियों ने दिल खोलकर तारीफ की. कइयों ने उनका प्रजेंटेंशन मेल से भेजने का आग्रह किया. वरिष्ठ पत्रकार संजीव चौहान ने अपने यूट्यूब चैनल क्राइम वारियर के जरिए समझाया कि किस तरह वह मीडिया की नौकरी छोड़ने के बाद इस यूट्यूब चैनल के दम पर लाखों रुपये कमाने में सफल हो रहे हैं.

संजीव चौहान के वीडियोज यूट्यूब पर लाखों की संख्या में देखे जाते हैं और उनके वीडियो गूगल द्वारा मानेटाइज होने के कारण भारी दर्शक संख्या की वजह से अच्छी खासी रकम दे पाने में सफल होते हैं. न्यूज एक्सप्रेस चैनल के सीईओ और एडिटर इन चीफ प्रसून शुक्ला ने उद्यमिता व नौकरी के बीच के बारीक फर्क को समझाया और सभी को अपना खुद का काम, भले ही छोटा-सा हो, शुरू करने का आह्वान किया. उन्होंने इस मौके पर एक प्रेरणादायी कहानी भी सुनाई जिसका लेसन ये था कि आप चाहें जिस उम्र के हों, जितने बड़े हों, नया शुरू करने के लिए खुद को तैयार करने में हिचकें नहीं. सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उमेश शर्मा ने आनलाइन दुनिया और भारतीय साइबर कानूनों के बारे में जानकारी देकर सावधानियां बरतने के प्वाइंट्स बताएं. अपनी वेबसाइट पर गूगल एडसेंस के विज्ञापन लगाकर अच्छी खासी रकम कमाने वाले जगदीश भाटिया ने अपने प्रजेंटेशन के जरिए एडसेंस, मानेटाइजेशन, गूगल पालिसीज, गूगल एड कोड आदि तकनीकी बिंदुओं की ओर प्रकाश डाला.

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मैंने अपने अपने अलग-अलग प्रजेंटेशन के जरिए एडसेंस क्या है, कैसे यूट्यूब से कमाया जा सकता है, कैसे ब्लाग वेब पर गूगल के एड लगाकर पैसे बनाए जा सकते हैं.. समेत कई बिंदुओं पर प्राइमरी लेवल का ज्ञान प्रतिभागियों को दिया. इसके बाद सवाल जवाब सत्र के माध्यम से प्रतिभागियों को बहुत सारी समझदारी हासिल हुई. करीब तीन दर्जन प्रतिभागी वर्कशाप खत्म होने के बाद जब अपने-अपने घरों की ओर लौटे तो उनके मन में एक कमिटमेंट था, आनलाइन माध्यम के जरिए आत्मनिर्भर बनने का कमिटमेंट. वर्कशाप में शामिल होने वाले सभी लोगों को स्पेशल डिनर पैक, पानी बॉटल, भड़ास4मीडिया डाट काम की तरफ से स्पेशल मेटल पेन और लिखने के लिए नोटपैड दिया गया था. सभी प्रतिभागियों और मेहमानों ने इस किस्म के वर्कशाप को निरंतर करते रहने पर जोर दिया. इस वर्कशाप में बतौर मेहमान शिरकत करने वाले दैनिक जागरण, नोएडा के चीफ सब एडिटर श्रीकांत सिंह ने लौटकर अपने फेसबुक वॉल पर कुछ यूं लिखा:

Shrikant Singh : ”” आर्थिक आत्‍मनिर्भरता के लिए दिल्‍ली में जुटे पत्रकार और कंटेंट जनरेटर… अंग्रेजी के सेंटीमेंटल कवि लार्ड टेनिसन की एक कविता है- ”Wherefore bees of Ingland forge… Many a weepans chain and scorge…”  यह कविता उद्योगपतियों की ओर से की जा रही श्रमिकों की प्रताड़ना और मजदूरों की कर्मनिष्‍ठा पर आधारित है। कवि मजदूरों से कहता है-हे इंग्‍लैंड की मधुमक्खियों, उनके लिए शहद क्‍यों बनाती हो, जो तुम्‍हें कुचलने से गुरेज नहीं करते हैं। हे मजदूरों, आप उन कोड़ों और जंजीरों का निर्माण क्‍यों करते हो, जो कोड़े आप पर बरसाए जाते हैं और जिन जंजीरों में आपको जकड़ा जाता है। इन्‍हीं कोड़ों और जंजीरों से छुटकारा पाने के लिए देश भर से पत्रकार और कंटेंट जनरेटर लोकप्रिय सोशल साइट भड़ास 4 मीडिया डॉट कॉम के मालिक यशवंत सिंह के बुलावे पर दिल्‍ली में जमा हुए और उर्दू घर में लोगों को बहुत कुछ सीखने को मिला। इस आयोजन से लोग अभिभूत थे और कुछ लोग तो यह भी कह रहे थे कि हमने अभी तक केवल सुना भर था कि इंटरनेट के जरिये ईमानदारी और सुकून की कमाई की जा सकती है, लेकिन उसे व्‍यावहारिक तौर पर देख भी लिया, वह भी मात्र 1100 रुपये के खर्च पर। आयोजन की खास बात यह रही कि दीन दुनिया की फिक्र में लगे पत्रकार कभी अपने भविष्‍य के बारे में जहां सोच नहीं पाते थे और वर्षों से संपर्क से कटे हुए थे, वहीं एक दूसरे से मिल कर सकारात्‍मक ऊर्जा से भर गए। संपूर्ण कार्यक्रम से यह संदेश जरूर निकल कर आया-कुछ भी नहीं है मुश्किल अगर ठान लीजिए। ”’

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वर्कशाप अटेंड करने वाले प्रतिभागी Shiv Sagar Yadav फेसबुक पर लिखते हैं: ”बहुत अच्छा वर्कशॉप था. आप लोगो से मुलाकात काफी सार्थक और प्रेरणादायक रही, समय तो कम मालूम पड़ा लेकिन जो भी था बहुत सुन्दर था। आपकी पूरी टीम को धन्यवाद।”

बस्ती जिले से आए Shekhar Singh लिखते हैं: ”बहुत ही बढियाँ वर्कशॉप था खासकर हिंदी पट्टी के लिए…. एक व्यवहारिक तरीके से कार्यशाला में सब कुछ बताया गया जिससे भविष्य में इसी धारा से स्वरोजगार और उद्मिता की तरफ जाया जा सकता है। बहुत बहुत धन्यबाद यशवंत भैया।”

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हरियाणा से आए प्रतिभागी Vijay Balyan का कहना है: ”बहुत ही बढियाँ वर्कशॉप… बहुत ही बढियाँ वर्कशॉप.”

एक अन्य प्रतिभागी Umrendra Singh इस वर्कशाप के बारे में लिखते हैं: ”bahut shandar anubhav hindi bhashiyon k sath sath chhote shehar k logo k liye bhi naya marg bahut hi guni sudhi jano ka margdarshan adbhut raha… jin logo ne thaan liya hai unhe kuch karna hai un chuninda pratibhagiyo k liye alag se ek pure takniki workshp ayojit honi chahiye aur is workshop ko har chhote bade shehar le jana chahiye hamari avyashakta jaha bhi lage jarur bataye.”

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इस आयोजन की सफलता के लिए भड़ास वर्कशाप कनवीनर राजीव शर्मा, भड़ास वर्कशाप कोआर्डिनेटर सुजीत कुमार सिंह प्रिंस और भड़ास4मीडिया डाट काम के तकनीकी हेड राकेश डुमरा ने दिन रात एक कर प्रयास किया. इन सभी साथियों का दिल से धन्यवाद. वर्कशाप स्थल के बाहर हिंदयुग्म प्रकाशन के साथी अंजनी जी ‘जानेमन जेल’ समेत कई किताबों का स्टाल लगाए बैठे रहे. करीब 15 किताबें बिकीं जिसमें अकेले मेरे द्वारा जेल अनुभवों पर लिखित ‘जानेमन जेल’ की 11 प्रतियां बिक गईं. 

इस वर्कशाप से मिले उत्साहजनक फीडबैक के बाद अब यह तय कर लिया गया है कि ट्रेनिंग और वर्कशाप यानि सीखने व सिखाने की प्रक्रिया को जारी रखा जाएगा. अब आगे से बजाय जनरलाइज वर्कशाप करने के, स्पेशलाइज्ड वर्कशाप किया जाएगा. जैसे अगला वर्कशाप सिर्फ यूट्यूब के जरिए पैसे कमाने और इससे संबंधी टिप्स ट्रिक्स पर आधारित होगी. इस वर्कशाप में शामिल होने वालों के पास अगर यूट्यूब एकाउंट न हुआ तो उनका चैनल यूट्यूब पर बनवाया जाएगा और मौके पर ही उनका एक वीडियो शूट कर उसे अपलोड कर मानेटाइज कर दिया जाएगा, साथ ही साथ एडसेंस एकाउंट बना दिया जाएगा. 

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वर्कशाप में आने वाले आप सभी प्रतिभागियों और मेहमानों का दिल से धन्यवाद. फिर मिलेंगे. मिलते रहेंगे.

शानदार फोटोग्राफी के लिए युवा पत्रकार अंकित शर्मा धन्यवाद के पात्र हैं.

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भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की रिपोर्ट.

अगर आप इस वर्कशाप में शिरकत करने वाले प्रतिभागी हैं या मेहमान, वर्कशाप को लेकर कोई बात कहना रखना चाहते हैं तो लिखकर [email protected] पर भेज दें.

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वर्कशाप के कुछ वीडियोज देखें-

(यहां सिर्फ प्रतीकात्मक वीडियोज दिए जा रहे हैं. वो वीडियोज जिनमें मानेटाइजेशन संबंधी प्रशिक्षण है, उसे अपलोड नहीं किया जा रहा क्योंकि उसमें कई ऐसी बातें हैं जिसे पब्लिक डोमेन में नहीं डाला जा सकता)

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Video one

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Video two

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Video three

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0 Comments

  1. Kaushalendra

    April 19, 2015 at 4:13 pm

    यशवंत जी सादर प्रणाम
    मैं भड़ास कंटेंट मानेटाइजेशन वर्कशाप में शामिल नहीं हो सका। इसका पश्चाताप आजीवन रहेगा। लेकिन मुझे विश्वास है कि आप इस प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन पुन करेंगे। मैं उस घड़ी का वेसब्री से इंतजार कर रहा हूं। ताकि कुछ नया कर सकूं। शायद आप मुझ जैसे लोगों के लिए कोई न कोई कार्यक्रम बनाएंगे।

  2. विनोद सावंत

    April 21, 2015 at 5:43 pm

    आपके प्रयास की जितनी कम तारीफ करें कम है सर…ना आने का मलाल रहेगा ….

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