Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

कुंवारी किशोरी को खाली प्लॉट कहने वाले धीरेंद्र शास्त्री से पर्ची निकलवाकर ‘भारत रत्न’ देना था!

अरुण श्रीवास्तव- 

“अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह-चीन्ह के देय” यह पुरानी कहावत है अक्सर दादी कहा करती थीं। कबीर के दोहे की तरह इस कहावत का आज भी मान कम नहीं हुआ। अब इसकी समीक्षा बहुत पीछे न जाकर हाल-फिलहाल दिए गए भारत रत्न से ही कर लें। इसका नाम लेते ही एक तरह के गौरव का एहसास होता है। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

चूंकि यह कोई हास्य पुरस्कार/सम्मान नहीं है इसलिए इसकी गंभीरता नाम से ही पता चलती है। भारत रत्न यानी देश का रत्न। देश का आभूषण। यही एक सर्वोच्च नागरिक सम्मान है जो हर क्षेत्र के लोगों को दिया जाता है। इसकी एक तय प्रक्रिया है और नियम (शायद) भी। अघोषित परंपरा के अनुसार यह गणतंत्र दिवस के दिन या उसकी पूर्व संध्या पर देश के सर्वोच्च व्यक्ति यानी राष्ट्रपति के हाथों दिया जाता है और इसकी संस्तुति प्रधानमंत्री करते हैं जबकि अन्य में खुद को ही आवेदन करना पड़ता है और कारण भी बताना पड़ता है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार एक साल में अधिकतम तीन लोगों को ही भारत रत्न से सम्मानित किया जा सकता है। हालांकि इस साल 2024 में भारत रत्न के लिए पांच लोगों के नाम की घोषणा की गई वो भी एक साथ नहीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 (1) के अनुसार, पुरस्कार प्राप्त करने वाले अपने नाम के साथ ‘भारत रत्न’ का इस्तेमाल नहीं कर सकते। यह पुरस्कार अपने साथ लक्ष्मी जी को भी नहीं ले आता। कुछ नहीं पर काफी कुछ सुविधाएं लाता है। हां कुछ लोगों के लिए ये सुविधाएं भी मायने नहीं रखती क्योंकि उतनी नहीं तो उससे कम ही सही उन्हें मिल रही होती हैं। मसलन पूर्व डिप्टी पीएम रहे आडवाणी जी को सरकारी आवास, मुफ्त यात्राओं सहित तमाम सुविधाएं मिल ही रही हैं तो पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह और नरसिंह राव के लिए कोई मायने नहीं रखती क्योंकि अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। 

तो कुछ के लिए इस पुरस्कार का ही कोई मतलब नहीं है तो बहुतेरे इस पुरस्कार/सम्मान से बहुत ऊपर हैं। तो कुछ को सरकारें पहचानने में देर कर गईं तो कुछ इंतजार करते रहे कि, उनके विचारधारा वाले सरकार में आएं। कुछ का इंतजार खत्म ही नहीं होगा जैसे देश को आजादी दिलाने वाले शहीदों का। यहां यह बात साफ कर दूं कि देश की आजादी के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाला एक भी शहीद किसी पुरस्कार/सम्मान का मोहताज नहीं है। उसका कद किसी भी पुरस्कार से किसी भी सम्मान से हजारों गुना ज्यादा है। या यूं कहें कि, पुरस्कार/सम्मान उसके सामने बौने हैं। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

महात्मा गांधी को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला तो क्या हुआ उनका कद इन पुरस्कारों से कहीं ज्यादा है उनका आदर पुरस्कृत व्यक्ति से कहीं ज्यादा है। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद सहित तमाम शहीद इन सबसे ऊपर हैं और रहेंगे।

हां एक बात और भारत रत्न आदि की संस्तुति प्रधानमंत्री करते हैं। अब कोई भी पूंजीवादी व्यवस्था का प्रधानमंत्री शहीदों के नाम की सिफारिश करेगा? क्यों करेगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

भगत सिंह शोषण के खिलाफ थे चाहे शोषक देशी हो या विदेशी। भगत सिंह वामपंथी थे, भगत सिंह के विचार कांग्रेस से अलग क्या विपरीत थे। रही बात भाजपा की तो वो आजादी के आंदोलन में शामिल ही नहीं थी पर तटस्थ भी तो नहीं थी। वह अंग्रेजों के साथ थी। तो वह और उसके प्रधानमंत्री शहीदों के नाम की सिफारिश करने से रहे।

रही कम्युनिस्ट पार्टियों की बात तो कम्युनिस्ट पार्टियां निकट भविष्य में केंद्रीय सत्ता में आएगी नहीं यानी कि,” न नौ मन धान होगा न राधा नाचेगी”। अब राधा को कभी नाचने को नहीं मिलेगा तो क्या हम सवाल नहीं कर सकते? कोई बताए कि देश की आजादी के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले एक भी शहीद का किसी आडवाणी, नाना जी, नरसिंह राव, चरण सिंह,  सचिन तेंदुलकर, प्रणब मुखर्जी, मोरारजी, गुलजारी लाल, जीबी पंत, राधाकृष्णन, राजीव गांधी, इंदिरा गांधी से कम रहा क्या? 

Advertisement. Scroll to continue reading.

भारत रत्न प्राप्त क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर कमर्शियल प्रोडक्ट का प्रचार कर रहे हैं तो आडवाणी जी विवादित ढांचा ढहाने में दोषी पाए गए। नरसिंह राव का अयोध्या में विवादित ढांचे को ढहवाने में अप्रत्यक्ष रूप से योगदान रहा है। हो सकता है कि भारत रत्न उसी के लिए दिया गया हो। वैसे उनके दामन पर भी बहुत छींटे है।

आडवाणी जी के विषय में टिप्पणी इसी देश की सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में की है। यही नहीं चौधरी चरण सिंह जी को आर एस एस और जनसंघ वाले चेयर सिंह कहते थे। देसाई सरकार को जनता पार्टी में शामिल जनसंघ के लोगों ने ही गिराया था इस सरकार में चरण सिंह उप प्रधानमंत्री थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बहरहाल सरकारों को तकिए के नीचे से निकाल कर पुरस्कार देने के आरोप से मुक्त होने के लिए कुंवारी किशोरी को खाली प्लॉट कहने वाले धीरेन्द्र शास्त्री (बागेश्वर धाम वाले) से पर्ची निकलवानी चाहिए। लोकसभा चुनाव में दो महीने का समय बचा है हो सकता है मुलायम, कांशीराम, एनटीआर, करुणानिधि, बीजू, बादल का नंबर आ सकता है और सरकार,”मैं चाहे ये करुं मैं चाहे वो करुं मेरी मर्जी” के आरोप से भी बच जाएगी। 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement