बिना धूप, बिना छाया के भास्कर की माया, झूठी खबर से हरियाणा में खूब भद्द पिटी

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एक समय हरियाणा में दैनिक भास्कर की अपनी अलग पहचान थी। सच्ची व विश्वसनीय खबरों के लिए भास्कर का नाम लिया जाता था। परन्तु मीडिया संस्थानों से थोक के भाव निकले पत्रकारों के रूप में सस्ते मजदूर मिलने से भास्कर ने अपनी विश्वसनीयता भी खो दी है।

…और ये रही वो खबर

पिछले दिनों राजस्थान के एक अखबार में समाचार प्रकाशित हुआ था कि इस बार मात्र 188 दिन स्कूल लगेगा। वह समाचार स्कूलों से संबंधित होने के चलते हरियाणा के कुछ अध्यापकों के व्हाट्सएप ग्रुप व फेसबुक पर घूमने लगा। रोहतक भास्कर के एक पत्रकार ने शायद उस समाचार को व्हाट्सएप या फेसबुक पर देख लिया होगा। उसने बिना सोचे समझे उस समाचार को उठाकर रोहतक डेटलाइन से भास्कर के पाठकों के लिए परोस दिया। उसने बाकायदा रोहतक के जिला शिक्षा अधिकारी का वर्जन भी दिखा दिया। जिला शिक्षा अधिकारी रोहतक सत्यवती नंदल की तरफ से स्पष्टीकरण भी आ गया है कि उन्होंने ऐसी कोई खबर नहीं दी। ये खुद पत्रकार ने अपनी तरफ से लगाईं है।

यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि पत्रकार को यह भी नहीं पता, हरियाणा व राजस्थान के शिक्षा विभाग व स्कूलों के सिस्टम में कितना अंतर है। हरियाणा में जहां 1 अप्रैल से नया सत्र शुरू हो जाता है वहीं राजस्थान में मई में नया सत्र शुरू होता है। परन्तु पत्रकार ने इसकी कोई परवाह नहीं की और राजस्थान वाली खबर में बिना कोई बदलाव किए ज्यों का त्यों परोस दिया। डेस्क पर बैठे लोगों व अन्य वरिष्ठ लोगों ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। हर वर्ष हरियाणा के स्कूलों में ग्रीष्मकालीन अवकाश 1 जून से शुरू होते हैं, लेकिन राजस्थान के समाचार में 16 मई से अवकाश होना बताया गया था, इसलिए समाचार की कापी करते समय रोहतक वाले पत्रकार ने हरियाणा में भी 16 मई  से अवकाश बता दिया। 

इस समाचार के प्रकाशित होने के बाद हरियाणा में शिक्षा विभाग के अध्यापकों व छात्रों के बीच यह समाचार आग की तरह फैल गया। सभी अध्यापक जहां अपने आला अधिकारियों से जल्दी अवकाश होने की पुष्टि करने की कोशिश करने लगे, वहीं स्कूली छात्रों ने अध्यापकों के सामने सवालों की झड़ी लगा दी। इस बारे में जब रोहतक भास्कर के पत्रकारों से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने साफ कह दिया कि उनके संज्ञान में ऐसा कोई समाचार नहीं है तथा उन्हें अवकाश की पुष्टि अपने अफसरों व बोर्ड से करनी चाहिए। अगर अफसरों से ही पुष्टि करनी होती तो प्रकाशित समाचारों की क्या अहमियत रह जाएगी। 

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