Connect with us

Hi, what are you looking for?

साहित्य

CAA, मुस्लिम मन और वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह की किताब ‘शाहीन बाग: लोकतंत्र की नई करवट’

अमरीक-

सन्न लोकसभा चुनाव की घोषणा से ऐन पहले सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) लागू कर दिया गया। तार्किक विरोध की तमाम आवाज़ों को दबाते हुए। केंद्र की दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी सरकार ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर एक कदम और बढ़ाया है। देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय मुसलमान एकबारगी की फिर नए सिरे से खौफजदा है कि सीएए के बाकायदा अधिसूचित होने के बाद; उसकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी भारतीय नागरिकता खो सकता है। सरकार की इस बात पर कोई भी यक़ीन नहीं कर रहा कि कोई भी भारतीय अपनी नागरिकता नहीं खोएगा। सीएए अपने मूल में ही मुस्लिम विरोधी है। इसके लागू होते ही भाजपा हिमायती विभिन्न सोशल मीडिया मंचों के जरिए मुसलमानों को चिढ़ाने लगे हैं; गोया कोई जंग जीत ली हो! तयशुदा रणनीति के तहत नैरटिव बनाया जा रहा है। नागरिकता का यह कागज़ी खेल बेवतनी की आशंकाओं को हवा दे रहा है। ऐसे में पत्रकार भाषा सिंह की किताब ‘शाहीन बाग: लोकतंत्र की नई करवट’ फिर मौंजू है।           

‘शाहीन बाग: लोकतंत्र की नई करवट’ का पहला संस्करण राजकमल प्रकाशन से 2022 में आया था। यह किताब सीएए की मुखालफत में तीन महीने तक चले शाहीनबाग़ आंदोलन का आंखों देखा वृतांत है। इस आंदोलन की अगुवाई महिलाओं, खासकर मुस्लिम महिलाओं ने की थी। जामिया मिल्लिया इस्लामिया इलाके के शाहीन बाग का यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया था और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सुर्ख़ियों का हासिल रहा। भाषा सिंह की किताब (लंबा रिपोर्ताज) नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध का मुकम्मल दस्तावेज़ है। सीएए के विरोध में चले शांतिपूर्ण शाहीन बाग आंदोलन पर यह किसी भी भाषा में इकलौती किताब है। इस किताब से गुज़र कर सीएए से डरे और आशंकित मुस्लिम मन को बख़ूबी पढ़ा जा सकता है। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

11 दिसंबर, 2019 को संसद द्वारा अधिनियमित सीएए पूरे देश में गहन बहस और व्यापक विरोध का बड़ा विषय रहा है। 2019 के आख़िर में और 2020 के आगाज़ में भारत में प्रमुख मुद्दा था। दिल्ली के शाहीनबाग़ में चंद मुस्लिम महिलाओं ने मोर्चा लगाया; जो देखते-देखते विस्तृत फलक के आंदोलन में तब्दील हो गया। पहले इसका विस्तार राष्ट्रीय राजधानी के कई हिस्सों में हुआ और फ़िर देश के कोने-कोने में। भाषा सिंह ने इसे कवर किया और किताब की शक्ल में सामने रखा।      

‘शाहीनबाग़: लोकतंत्र की नई करवट’ का पहला अध्याय ‘नई करवट’ सविस्तार बताता है कि दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया और कालिंदी कुंज-सरिता विहार से सटे शाहीन बाग में कैसे सीएए विरोधी आंदोलन के बीज बोए गए। घरों और पर्दों से बाहर आईं कुछ मुस्लिम महिलाओं ने 15-16 दिसंबर, 2019 को यह सब किया। छोटा-सा जमावड़ा पूरे देश के लिए नजीर बन गया। शाहीन बाग आंदोलन शुरू होने से पांच दिन पहले संसद सीएए पर मोहर लगी, और तभी से देश-भर में सीएए के ख़िलाफ़ चिनगारी सुलगने  लगी थी। भाषा सिंह लिखती हैं कि यह सब महज़ तारीखें के नहीं हैं, इन्हें व्यापक संदर्भ में समझा जाना ज़रूरी है। इसने आबादी के एक बड़े हिस्से को असुरक्षित महसूस कराना शुरू किया। मई 2019 में दोबारा सत्ता में आने के बाद, अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार ने अपने घोषणा-पत्र को लागू करने के एजेंडे की ओर जब तेज़ी से कदम बढ़ाए तो बहुत-सी आशंकाएं बलवती होती गईं। एनआरसी को लेकर असम में जो हो रहा था, उसने मुस्लिम समाज को बेचैन कर दिया था। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

यकीनन इसी बेचैनी ने सीएए विरोध का इथोस (मानसिक मौसम) बनाया। भाषा सिंह ने इसकी सिलसिलेवार गहरी पड़ताल की है। विषयगत संदर्भों के साथ उन्होंने राष्ट्रव्यापी किसान आंदोलन को रेखांकित किया है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ/ भाजपा के दशकों पुराने नारों को भी। नागरिकता संशोधन अधिनियम इन्हीं नारों का एक अमली जामा है, जो ग्यारह मार्च 2024 को लागू हुआ। लेखिका का साफ मानना है कि ऐसे एजेंडे एक कौम को बेवतन और जलालत के खौफ में फंसा रहे हैं। धर्म के नाम पर नागरिकता देने वाला यह कानून स्वाभाविक तौर पर देश के धर्मनिरपेक्ष (सेकुलर) ढांचे व संविधान के खिलाफ है। सीएए, एनआरसी और एनपीआर-तीनों को साथ मिलकर देखने पर यह संदेह उपजने की ठोस वजहें बनती हैं कि यह सब एक खास धर्म को या तो नागरिकता से वंचित कर देने या फिर उसे दोयम दर्जे का नागरिक बना देने की साजिश का अंग है। 

भाषा सिंह का मानना है कि यह पूरे देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे में रद्दोबदल करने का खाका है, लेकिन निश्चित तौर पर इसकी पहली व सीधी मार देश के मुसलमानों पर है। शाहीन बाग आंदोलन के संदर्भ में उन्होंने लिखा है कि सीएए, एनआरसी, एनपीआर के खिलाफ लामबंद होना, गुस्से में आना, रास्ता तलाशना–बेहद स्वाभाविक था। ऐसा न होता तो निश्चित तौर पर वतन से उनके (मुसलमान के) लगाव, मोहब्बत पर सवाल उठता, क्योंकि उनकी बेवतानी का खतरा काल्पनिक नहीं था, उसे दिशा में देश की राजनीतिक सत्ता कदम बढ़ा चुकी थी। भाषा सिंह मानती हैं कि मुसलमानों पर लगातार हमले अब भारतीय लोकतंत्र का न्यू नॉर्मल बन चुके हैं। भगवा ब्रिगेड जो कुछ कर रही है, सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सीएए इसी पृष्ठभूमि में लाया गया, लेकिन इतने घोर वैमनस्य भरे माहौल में भी भाजपा का अपने एजेंडे पर बढ़ना कोई हैरत की बात नहीं। दरअसल, हैरत की बात थी वह जवाब (शाहीन बाग के रूप में) जो सत्ता को मुसलमान औरतों की ओर से मिला। हमारी सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि में यह अकल्पनीय-सी बात थी। शाहीन बाग विरोध का एक पर्याय बन गया था। महज़ 101 दिनों के भीतर देश के कई राज्यों में शाहीन बाग पहुंच गया। संज्ञा ने सर्वनाम का और कई जगह विशेषण का रूप धर लिया। 

किताब ‘शाहीन बाग: लोकतंत्र की नई करवट’ बखूबी बताती है कि इस आंदोलन ने अनगिनत आंदोलन-समूहों, विचारधाराओं, व्यक्तियों और संस्थाओं को अपनी ओर खींचा। कुछ आंदोलनों के तात्कालिक प्रभाव होते हैं तो कुछ के दूरगामी। किताब पढ़ते हुए लगता है कि शाहीन बाग आंदोलन अंततः सरकार को झुका लेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह सच भी अपनी जगह क़ायम है कि सब कुछ होना बचा रहेगा! (लेकिन पाश यह भी लिख गए हैं कि सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना!!) सीएए विरोध की लड़ाई आगे भी लड़नी पड़ सकती है। भाषा सिंह की किताब इसके लिए प्रेरणा देती है और कुछ सबक भी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

‘शाहीन बाग  : लोकतंत्र की नई करवट’ का आठवां अध्याय ‘भाजपा का एजेंडा और गोदी में बैठा मीडिया’ जिक्रे खास है। भारतीय मीडिया के बड़े हिस्से ने 2019-20 में सीएए विरोधी आंदोलन की एकतरफा और सत्ता के पक्ष में रिपोर्टिंग की थी। ग्यारह मार्च, 2024 में इसके लागू होते ही गोदी मीडिया फिर काम अथवा ‘सेवा’ पर लग गया है। जबकि इन पंक्तियों को लिखने तक सीएए लागू हुए चौबीस घंटे भी नहीं हुए। यह बारह मार्च की सुबह है। बहुतेरी ख़बरों और विश्लेषणों में पूर्वाग्रही ज़ुबान और स्याही है। सिर्फ़ घटनाओं के राजनीतिक रंग में अदला-बदली हुई है।                 

इस किताब के अध्याय ‘मिसाल-बेमिसाल’, ‘आवाजें और सूरज से सामना’, ‘अंबेडकर का कंधा और संविधान के पैर’, ‘सृजन की तीखी धार, नक्शे पर नए नाम’, ‘आंदोलन के औजार और आगे का रास्ता’ हमारे आगे सीएए प्रतिरोध और मुस्लिम मन की संपूर्ण तस्वीर रखते हैं। ‘शाहीन बाग: लोकतंत्र की नई करवट’ अपने आप में सीएए और उसकी पूरी अवधारणा, इसके शुरुआती प्रबल और मुखर विरोध के विमर्श का समानांतर पाठ है। यह किताब उन खतरों के प्रति भी आगाह करती है जो स्वस्थ लोकतंत्र की दहलीज पर आन खड़े हुए हैं। सामाजिक और मानवीय सरोकारों को तहस-नहस करने के लिए! 

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement