प्रधानमंत्री ने इलेक्टोरल बांड को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक कहे जाने के बावजूद उसका बचाव किया है; तेजस्वी यादव के वीडियो का जवाब दे रहे हैं, प्रचारक उनके जवाब की प्रशंसा कर रहे हैं, सधी हुई चाल बता रहे हैं लेकिन राहुल गांधी के आरोप पर सब चुप हैं, खबर को वो महत्व नहीं मिल रहा है जो अमित मालवीय के ट्वीट को मिल जाता है। यही हाल केजरीवाल के खिलाफ मामले का है। तमाम दूसरे मामलों में कार्रवाई नहीं है पर इस्तीफा केजरीवाल का ही होना चाहिये।
संजय कुमार सिंह
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बांड को अवैध करार दिये जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उसका बचाव करते रहे हैं। कल (मंगलवार, 16 अप्रैल 2024) के अखबारों में उसकी खबर की चर्चा मैं यहां कर चुका हूं। कल मैंने यह भी बताया था कि रिटायर जजों के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखी है और कल उसकी भी खबर अखबारों में थी। मेरा मानना है कि निचली अदालतों, हाईकोर्ट समेत देश के दूसरे संवैधानिक संस्थान जब अपना काम नहीं कर रहे हैं, ठीक से नहीं कर रहे हैं या बच रहे हैं तब सारे महत्वपूर्ण मामले सुप्रीम कोर्ट में निपटाये जा रहे हैं और ईवीएम से लेकर सीएए के मामले पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना है।
कहने की जरूरत नहीं है कि समान स्थितियों में निष्पक्ष चुनाव कराना सरकार और चुनाव आयोग का काम है। सरकार का काम जरूरी व्यवस्था और आयोग का काम उसे लागू करना है। लेकिन जो व्यवस्था है उसमें कई खामियां हैं, कई सवाल हैं जिनका जवाब सरकार और चुनाव आयोग को देना चाहिये। पर दोनों ने समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की तो मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है और चूंकि इलेक्टोरल बांड जैसे गंभीर मामले में उसके सख्त फैसले से सरकार के वायदे या दावे की पोल खुल गई है इसलिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना हुई है और एक तरफ तो इलेक्टोरल बांड का मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में है। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सार्वजनिक आलोचना स्वयं प्रधानमंत्री ने भी की है।
ऐसे समय में बार और पूर्व जजों की सार्वजनिक चिट्ठियां सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाने जैसा है। और उसके निष्पक्ष काम को प्रभावित कर सकता है। मकसद प्रभावित करना ही हो तो कहा नहीं जा सकता है। लेकिन यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनाव शुरू हो चुके हैं, ईवीएम पर सुप्रीम कोर्ट में चर्चा चल रही है। जो दूसरे जरूरी मामले नहीं सुने जा सक रहे हैं वो अपनी जगह हैं। इनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के मामले को प्राथमिकता के आधार पर नहीं सुना जाना शामिल है। मुख्यमंत्री का जेल में होना संवैधानिक संकट है और मामला सुप्रीम कोर्ट के जिम्मे ही पड़ा है। मुझे लगता है कि निचली अदालतों को जमानत दे देना चाहिये था। इसके कई फायदे हैं नुकसान कोई नहीं है।
अभी इसका नुकसान सिर्फ आम आदमी पार्टी को है और फायदा केंद्र में सत्तारूढ़ दल को हो सकता है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने वाली सरकार होने का ढोंग कर रही है। ढोंग इसलिए कि भाजपा नेताओं के खिलाफ जो मामले हैं उनमें कार्रवाई नहीं हो रही है और चुनाव के समय विपक्षी नेता (ओं) को जेल में रखकर फायदा उठाने की कोशिश की जा रही है। संभव है केंद्र में सत्तारूढ़ दल को इसका नुकसान भी हो पर वह बाद की बात है। अभी अगर नीचे की अदालतों ने जमानत दे दी होती तो न संकट खड़ा होता ना सुप्रीम कोर्ट में काम का दबाव बढ़ता। ना रिटायर जजों को फैसले या उसके लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की परवाह होती।
कार्रवाई, अगर जरूरी और जायज हो तो चुनाव के बाद कभी भी हो ही सकती है। अभी संवैधानिक संस्थाएं काम करती हुई नजर आतीं और राहुल गांधी को नहीं कहना पड़ता कि संवैधानिक संस्थाएं नरेन्द्र मोदी की नहीं देश की जनता की है। वैसे भी, निर्वाचित मुख्यमंत्री के भाग जाने का कोई खतरा नहीं है और मुख्यमंत्री को अगर पद से नहीं हटाया जाना है तो गवाहों को वे जेल में रहकर या बाहर से भी प्रभावित करना चाहें तो कर ही सकते हैं या गवाह जमानत नहीं मिलने से भी प्रभावित हो रहे होंगे। इलेक्टोरल बांड पर फैसला और फिर एसबीआई की आना-कानी के बाद जो जानकारी मिली उससे सरकार के बहुप्रचारित इलेक्टोरल बांड की सत्यता सामने आई है लेकिन उससे शर्माने की बजाय प्रधानमंत्री उसका बचाव कर रहे हैं।
कांग्रेस समेत सारे विपक्षी दलों से आयकर के पुराने मामले में वसूली की कार्रवाई और उसके लिये खाता फ्रीज किया जाना अगर राजनीति मामला नहीं है और मकसद सिर्फ विरोधियों को परेशान करना नहीं है तो इसे भी टाला जा सकता है। क्योंकि कार्रवाई का समय बदलने से इस समय हो सकने वाले नुकसान और सत्तारूढ़ दल को हो सकने वाले फायदे को को टाला जा सकेगा और यह जरूरी है। लेवल प्लेइंग फील्ड की मांग हो रही है तो इसे देखना चुनाव आयोग का ही काम है। आज के अखबारों में छपी खबर के अनुसार चुनाव आयोग ने कहा है कि ‘कानूनी प्रक्रियाओं में दखल देने वाला फैसला सही नहीं’। आयोग समान अवसर की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन ऐसा कोई भी कदम उठाना सही नहीं है, जो कानूनी और न्यायिक प्रक्रियाओं में दखल दे।
चुनाव आयोग की प्रतिबद्धता
आप जानते हैं कि, इंडिया गठबंधन में शामिल कई राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से मांग की थी वे भ्रष्टाचार के मामले में उनके नेताओं को निशाना बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग मामले में हस्तक्षेप करे। कहने की जरूरत नहीं है कि मामला कानूनी प्रक्रिया का है ही नहीं है और जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप को नहीं भी माना जाये तो कार्रवाई के समय पर गौर किया जाना चाहिये था और चुनाव के बाद जारी रखने के लिए कहना कानूनी प्रक्रिया में दखल नहीं होता और अगर होता भी तो प्रक्रिया में दखल कई कारणों से कई बातों का होता ही रहता है। इसके अलावा, यह कार्रवाई का सामान्य मामला नहीं है और बीजे पार्टी तथा उसके समर्थकों को छोड़कर सिर्फ इंडिया गठबंधन के लोगों को परेशान किये जाने का मामला है और आयोग समान अवसर की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होने के बावजूद या तो शिकायत को समझ नहीं रहा है या कार्रवाई की जरूरत नहीं मान रहा है।
इलेक्टोरल बांड सड़क छाप वसूली
ऐसे समय में राहुल गांधी अपने और अपनी पार्टी के प्रचार में या सत्तारूढ़ दल के खिलाफ जो कह रहे हैं वह प्रमुखता से नहीं छप रहा है जबकि प्रधान प्रचारक जो भी कह या कर रहे हैं उसका पूरा प्रचार है। कल की खबर थी, संवैधानिक संस्थाएं प्रधानमंत्री की नहीं जनता की है और आज उनका कहा जो छपा है उसके अनुसार इलेक्टोरल बांड का तरीका कॉरपोरेट से वसूली का था। अगर इसपर प्रधानमंत्री का कहा छप सकता है तो राहुल गांधी का कहा भी उतना ही महत्वपूर्ण है लेकिन आज दूसरे दिन भी यह मेरे ज्यादातर अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। द टेलीग्राफ में छपी खबर के अनुसार वायनाड लोकसभा क्षेत्र में अपने चुनाव अभियान के दूसरे दिन एक रोड शो में उन्होंने कहा कि इलेक्टोरल बांड सड़क छाप वसूली से जरा भी बेहतर नहीं है बल्कि बहुत बड़े पैमाने पर है।
अमित मालवीय का कूद पड़ना
आज के अखबारों में एक और खबर है। फिल्म अभिनेता सलमान खान के घर पर फायरिंग करने वाले दो गुजरात के भुज स्थित एक मंदिर में पकड़े गये हैं। इसकी रिपोर्टिंग (या संपादन के बाद की प्रस्तुति) बंगाल में किसी मुस्लिम अपराधी के पकड़े जाने की खबर से और उसपर अमित मालवीय के ट्वीट के बिना बिल्कुल अलग है। आप जानते हैं कि गैर भाजपा शासित राज्य कर्नाटक की राजधानी बैंगलोर के रामेश्वरीम कैफे में एक मार्च को एक विस्फोट हुआ था। इसमें नौ लोग घायल हो गये थे। मामले की गंभीरता को देखते हुए अपराध की जांच एनआईए को सौंप दी गई थी। कई दिनों बाद, हाल में उसने दो जनों को पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार किया। तब भाजपा के अमित मालवीय ने एक ट्वीट किया था। ममता बनर्जी ने उसका जवाब दिया था और ट्वीटर पर भिड़ंत चली थी जिसकी खबर भी थी। आज पकड़े गये लोग मुसलमान नहीं हैं (यहां तो पीड़ित ही मुसलमान है) और जहां से पकड़े गये वह भी पश्चिम बंगाल नहीं है तो खबर ही नहीं है। आज का अखबार हेडलाइन मैंनजमेंट के लिहाज से इतना बोर लगा कि मुझे क्या लिखना है यह तय करने में पहली बार इतना समय लगा।