दैनिक जागरण की ‘खबर’ और खबर लेने वाले अंदाज में चंचल का जवाब… गौतम शर्मा जी ने किसी जागरण के हवाले से एक खबर का हवाला दिया कि चंचल किसी लड़की के साथ गेस्ट हाउस में थे
अव्वल तो हम इसका जवाब यूं दे सकते हैं कि – कम्बख्त अखबार ! खबर ये नहीं होती कि कोई किसी लड़की के साथ गेस्ट हाउस में काफी पी रहा था , खबर बनती है कि चंचल राघव के साथ था , जो कि चंचल हो नहीं सकता। और फिर यह खबर 77 की है। अचानक जागरण को हम क्यों याद आ गए ? या जिस गधे ने पुरानी खबर को नया बनाने की कोशिश की, कम से कम उसे हमारा सही नाम तो लिखना चाहिए था। तकरीबन 12 साल बनारस की युवा राजनीति से जुड़ा रहा लेकिन चंचल के अलावा हमारा कोई नाम ही नहीं था, न कोई जाति थी। जागरण लिखता है ‘अनिल चंचल’. सुन गिरोह के कतरन, पूरा वाकया तो दे देते।
75 में हम गिरफ्तार हुए 77 में जेल से बाहर आये। 77 में काशी विश्व विद्यालय छात्र संघ का चुनाव घोषित हुआ। समाजवादी युवजन सभा ने हमे अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार बनाया हमारा मुकाबला विद्यार्थी परिषद के प्रदेश उपाध्यक्ष भाई महेंद्र नाथ सिंहजी से रहा। विश्विद्यालय की राजनीति में देबुदा का दबदबा था, हम उनके उम्मीदवार थे। भाई मोहन प्रकाश, राधे श्याम वगैरह हमारी तरफ थे। हमारे समर्थन में जो लोग आए, उनमें दिल्ली से प्रो राजकुमार जैन, बिहार से शिवानंद तिवारी जी, नीतीश कुमार वगैरह और महेंद्र नाथ की तरफ से भाई अरुण जेटली, रजत शर्मा वगैरह थे।
एक दिन की बात है हम अपने एक महिला मित्र के साथ गेस्ट हाउस के लाउंज में बैठ कर काफी पी रहे थे। संघियों ने इसे गेस्ट हाउस कांड नाम दिया और हमारे खिलाफ यही आरोप लगा। हम जहां भी वोट मांगने जायें, एक ही सवाल उठता, गेस्ट हाउस कांड क्या है? दरअसल यह प्रश्न नहीं था, जिज्ञासा थी। हम हर जगह एक ही बात बोलते- हम आखिरी मीटिंग में इसका जवाब देंगे। छात्र संघ चुनाव में विश्वविद्यलय गेट पर यानी लंका में आखरी मीटिंगें होती थी। जिस पक्ष के समर्थन में ज्यादा लोग जुट जाये, उसके जीत की संभावना मजबूत समझी जाती रही। विद्यार्थी परिषद समेत अन्य उम्मीदवारों ने आखिरी दिन से एक दिन पहले ही अपनी सभा कर ली, उनका अनुमान ठीक था कि- चंचल आखिरी दिन गेस्ट हाउस कांड पर बोलेगा तो हमें कौन सुनेगा। बहरहाल इसका लाभ हमें मिला। मीटिंग शुरू होने के पहले ही लंका भर गया। लोगों का कहना है इससे बड़ी सभा अभी तक नहीं हुई थी।
जागरण के चाटुकार! तुम्हे उस सभा का भी हवाला और चुनाव का नतीजा देना चाहिए था कि उस जमाने में ही विश्वविद्यालय कितना जागरूक और प्रगतिशील था कि तमाम चेन तोड़ कर युवाओं ने युवजन हवा का रुख महिलाओं के पक्ष में रख दिया था और बराबरी के नारे से विश्वविद्यालय ही नहीं, पूर्वांचल गूंज गया था। हमने जो भाषण दिया वो हमारी जिंदगी का सबसे छोटा भाषण था- ”दोस्तो! एक वायदा है, उसका जवाब देने खड़ा हुआ हूँ। हम पर आरोप है, हम एक लड़की के साथ गेस्ट हाउस में थे। यहां ग्रेजुएट के नीचे कोई नहीं है, जाहिर है आप सब युवा हैं, हम आपसे एक सवाल पूछना चाहते हैं, आपमें से वो लोग हाथ उठा दें जो किसी लड़की से मोहब्बत नहीं करना चाहते।”
दो मिनट तक पूरा सन्नाटा। अचानक एक ताली बजी और पूरी भीड़ उस ताली में शामिल हो गई। मंच के पीछे महिला महाविद्यालय की छत पर खड़ी लड़कियों की भीड़ ने न केवल तालियां बजाईं बल्कि उनमें उत्सव का उत्साह दिखा। फिर हमने कहा- ”लेकिन तीन लोग हैं जो किसी लड़की से प्यार नही कर सकते एक ‘डेड बॉडी’, दो – ‘इम्पोटेंट’, और तीसरा – संघी। आप हमें वोट दें या न दें लेकिन हम उस संस्कृति के हामी नहीं हो सकते जो पुरुषों का पुरुषों से संबंध में यकीन रखते हैं, शुक्रिया।”
जागरण के बच्चे! आज भी वह पीढ़ी जिंदा है जो सभा में मौजूद रही, उनसे पूछ लेते। सम्भव है इस जवाब के बाद उस सभा के प्रत्यक्षदर्शी जो फेसबुक पर हैं, वो बताएंगे कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में पहली बार लड़कियां खुल कर भागीदारी में उतरीं। आखिरी सवाल डीयर जागरण! न हम पंडित नेहरू हैं न ही उतना तक हमारी औकात है, तो अचानक हम क्यों? हम चुनाव में भी नहीं उतर रहे और गर उतरना ही होगा तो तुम्हारे आका के खिलाफ उसी बनारस में एक बार फिर उतरूंगा।
चंचल जी की फेसबुक वाल से साभार।