भाजपा को चुनाव लड़ने से नहीं रोका गया, फिर जीत गई तो इस मामले की पोल कभी नहीं खुलेगी।
संजय कुमार सिंह-
आज के अखबारों में दो बड़ी खबरें हैं। पहली तो इलेक्टोरल बांड से संबंधित खुलासे और दूसरी राहुल गांधी की न्याय यात्रा का कल मुंबई में समापन और इस मौके पर हुई बड़ी रैली। इसमें देश भर के भिन्न दलों के नेता शामिल हुए, सबने अपनी बात रखी और रैली देर शाम तक चली। आज अखबारों में रैली की खबर कम और इलेक्टोरल बांड से संबंधित खुलासे की ज्यादा है। जो हालात हैं उसमें मीडिया का बड़ा वर्ग भाजपा और सरकार का समर्थन कर रहा है और वसूली के मामले को चंदा बनाने की कोशिश चल रही है। चूंकि वसूली ईडी और सीबीआई के सहयोग से हुई है इसलिए सब चाहेंगे कि भाजपा की ही सरकार बने और वे बचे रहें। दूसरी ओर राहुल गांधी ने आरोप लगाया है, “ईवीएम, ईडी, सीबीआई के बिना नहीं जीत सकते हैं मोदी : राहुल”। चूंकि सबका साथ मिल रहा है और सबके हित में है इसलिए संभव है कि कानून बनाकर फिरौती वसूलने के इस विशाल धंधे की ईमानदार जांच भी न हो जबकि
अपेक्षाकृत छोटे और साधारण अपराध में जनप्रतिनिधि भी जेल में है और आरोप है कि इन्हीं सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग से राज्य सरकारें गिराई गई हैं।
आज नवोदय टाइम्स की लीड का शीर्षक है, दलों ने बढ़ाया सियासी पारा। इसके साथ दो खबरें हैं – एक कांग्रेस या राहुल गांधी या इंडिया गठबंधन की और दूसरी नरेन्द्र मोदी की। राहुल गांधी की पहली खबर का शीर्षक आपने पढ़ लिया। इसका इंट्रो है, “विपक्ष के नेताओं ने एक मंच से साधा भाजपा पर निशाना”। दूसरी खबर का शीर्षक है, “कांग्रेस का एजेंडा अपने सहयोगियों का इस्तेमाल करने और फेंक देने का: मोदी”। इस खबर का इंट्रो है, “भारत को विश्वगुरू बनाने वाली शक्ति हैं मोदी: चंद्रबाबू।“ कहने की जरूरत नहीं है कि वसूली लगने वाले मामले को चंदे के रूप में दिखाना और भाजपा की वसूली को दूसरे दलों के चंदों से अलग नहीं रखकर दोनों का घालमेल शरारतपूर्ण है।
चुनाव से पहले आम वोटर के लिये इस जानकारी का अपना महत्व है कि हिन्दुओं के हित चिन्तक के रूप में सत्ता पाने और वोट के लिए आग लगाने वालों को कपड़ों से पहचानने का दावा करने वाले नरेन्द्र मोदी की सरकार ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का प्रचार किया और सरकारी एजेंसियों के जरिये उसपर वसूली करने का आरोप है। जिनसे वसूली हुई उनमें ज्यादातर हिन्दू ही हैं और जाहिर है उन्हें पुलिस व दूसरी सरकारी एजेंसियों से आवश्यक मदद नहीं मिली। वसूली का आलम यह है कि जेल में बंद अपराधी ने भी वसूली कर ली पर वह अलग मामला है। सरकार के काम-काज का एक उदाहरण यह भी है कि प्रतिकूल फिल्म के लिए बीबीसी तक पर सरकारी एजेंसी छोड़ दी गई थी। वैसे भी, देश के बड़े उद्यमियों, कारोबारियों और व्यावसायियों से वसूली गंभीर मामला है और सामान्य विकास को बाधित कर सकता है। दूसरी ओर, ऐसा करने वालों का इरादा संविधान बदलने का है। इसलिए मामला देश बचाने का भी है।
अगर देश का मीडिया ऐसी सरकार के पक्ष में दिख रहा है तो यह गंभीर है और सबको पता होना चाहिये क्योंकि प्रचार यह किया गया है कि कोई विकल्प नहीं है और वे किसी भी भ्रष्ट को नहीं छोड़ते हैं। इस दावे पर हमला हुआ तो पूरे देश को परिवार बना लिया और मामला दूसरी ओर मोड़ दिया। ऐसे में आज की खबरों के शीर्षक से समझ में आता है कि ज्यादातर अखबारों के लिए इंडिया गठबंधन की कल की रैली कम महत्वपूर्ण और यह बताना जरूरी है इलेक्टोरल बांड से दूसरे दलों को भी पैसे मिले हैं। आइये देखते हैं कि कहां क्या कैसे छपा है। नवोदय टाइम्स में इलेक्टोरल बांड की खबर सेकेंड लीड है। शीर्षक है, 11 दलों ने बताये चंदा लेने वालों के नाम। आप जानते हैं कि इलेक्टोरल बांड की जानकारी गोपनीय रखी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ इसे असंवैधानिक घोषित किया है बल्कि इससे संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया है और तब पता चला कि यह भाजपा के लिए वसूली का जरिया हो सकता है।
केंद्रीय गृहमंत्री ने राजनीतिक चंदे में काले और सफेद धन का ही नहीं, वसूली को चंदे का मामला बना दिया और प्राप्त धन को जो वसूली हो सकती है चंदे के रूप में प्रति सांसद से जोड़कर कह दिया कि भाजपा को कुछ ज्यादा नहीं मिला है। ऐसे में मूल मामला वसूली है और बाकी दलों ने चंदा देने वालों के नाम बताये तो इसका संबंध वसूली के मुद्दे से नहीं है। उसपर खबर ही नहीं है। अमर उजाला में पहले पन्ने पर राहुल गांधी या इंडिया गठबंधन की खबर नहीं है। पहले पन्ने पर आधे से कम विज्ञापन है और दूसरा पहला पन्ना भी है। यहां भी कांग्रेस या राहुल गांधी या इंडिया गठबंधन की रैली की खबर नहीं है। दोनों पहले पन्ने पर कांग्रेस की खबर तो नहीं ही है जो खबरें हैं उनमें ज्यादातर कांग्रेस गठबंधन या उसके नेताओं के खिलाफ हैं। राहुल गांधी की रैली की खबर तो नहीं ही है अंदर के पन्ने पर होने की सूचना भी नहीं दिखी।
दूसरी ओर, भाजपा उसका समर्थन या पक्ष बताने वाली खबरें जरूर है। कुछ शीर्षक देख लीजिये। लीड का शीर्षक है, “भाजपा ने 6986 करोड़ के चुनावी बांड भुनाये, फ्यूचर गेमिंग से द्रमुक को सबसे अधिक चंदा”। उपशीर्षक है, नंबर दो पर तृणमूल कांग्रेस को 1397 करोड़ …. कांग्रेस को मिले 1334 करोड़ रुपये। एक और खबर है, फ्यूचर के 859 करोड़ किसी मिले … पता नहीं। यही नहीं, दावे ऐसे-ऐसे में बताया गया है, सपा ने कहा, डाक से मिले 10 करोड़ के बांड और जदयू को गुमनाम शख्स दे गया 10 करोड़ के बांड। यही नहीं, एआईएमआईएम, बसपा को शून्य चंदा। कहने की जरूरत नहीं है कि इसे पढ़ने वाला कोई भी यही समझेगा कि मामला चंदा और बंदबाट का है। जबकि मामला वसूली का होने की पूरी संभावना है और अगर बाकी दलों ने भी वसूली की है तो उतनी ही चिन्ता की बात है और चूंकि भाजपा सत्ता में है इसलिए वसूली की बंदरबांट भी हो तो वह अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती है। लेकिन इन खबरों से मूल मुद्दा गायब है और इसे चंदे का समान्य मामला बनाने की कोशिश की जा रही है।
अमर उजाला के दूसरे पहले पन्ने पर सरकारी प्रचार की एक खबर का शीर्षक है, “विदेशी छात्रों पर हमला करने वालों पर गुजरात सरकार सख्त : केंद्र”। इसका उपशीर्षक है, “दो आरोपी गिरप्तार, 20-25 हमलावरों पर रिपोर्ट दर्ज”। वैसे तो यह सामान्य खबर नहीं है और मुंबई से इंडिया गठबंधन की कल की रैली की खबर पहले पन्ने पर होती तो मैं इसे खबर मान लेता पर मुंबई की जो खबर नहीं है उसकी जगह यह सरकारी बयान है तो बताना पड़ेगा कि मूल हमले की खबर पहले छपनी चाहिये उसपर सरकारी पक्ष बाद में छपता है। शीर्षक यही होना चाहिये था। वैसे भी यह अटपटा है कि केंद्र सरकार कह रही है कि गुजरात सरकार सख्त है। हो भी तो दिल्ली और उत्तर प्रदेश में पाठक जानकर क्या करे? मान लें कि भाजपा की डबल इंजन की सरकार है इसलिए सख्त है। हमला हुआ यह खबर ही नहीं है?
हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले हमले की खबर है और फिर बताया गया है कि विदेश मंत्रालय ने दखल दिया। हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड का शीर्षक है, चुनाव आयोग ने बांड्स से संबंधित 2023 नवंबर तक का और डाटा अपलोड किया। इसके साथ ही खबर का शीर्षक है, 2019 चुनावों से पहले भाजपा को बड़ा हिस्सा मला। यहां प्रधानमंत्री और राहुल गांधी की रैली खबर ऊपर नीचे लगभग बराबर में फोटो के साथ लगया है।
अरुणाचल, सिक्किम में मतगणना
अगर खबर की बात की जाये तो आज एक खबर यह भी है कि अरुणाचल, सिक्किम में मतगणना अब चार जून को नहीं दो ही जून को होगी। चुनाव आयोग की यह चूक साधारण नहीं है और यह चुनाव की घोषणा में देरी को छिपाने के लिए की गई या हो गई होगी। जो चुनाव आयोग ईवीएम का विरोध करने वालों का मजाक बनाता है वह अपने काम में कितना सतर्क है यह खबर बताती है और कई अखबारों में पहले पन्ने पर है। खबर के अनुसार, दोनों विधानसभाओं का कार्यकाल दो जून को खत्म हो जायेगा और उससे पहले चुनाव कराना जरूरी है। इसलिए मतगणना पहले होगी। जो कश्मीर के मामले में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भी शायद जरूरी नहीं है।
इलेक्टोरल बांड पर द टेलीग्राफ की खबर भी चंदे जैसी ही है। फ्लैग शीर्षक है, “ज्यादा पैसे पाने वाली पार्टियां – भाजपा, कांग्रेस और तृणमूल दान देने वालों पर मौन हैं”। मुख्य शीर्षक है, “बांड का बड़ा भोज पर कोई डकार नही”। साझे फ्लैग शीर्षक के तहत दूसरी खबर का शीर्षक है, “डाटा से अंधेरा छंटा, पर केवल आंशिक’। इंडिया गठबंधन की रैली की खबर यहां प्रमुखता है। शीर्षक है, “राहुल ने मोदी के ‘मुखौटे’ के पीछे की ‘शक्ति’ पर निशाना साधा”। दे टेलीग्राफ में आज पहले पन्ने पर चार कॉलम में छपी खबर का शीर्षक है, “मुस्लिम व्यापारियों को बाहर करने का नोटिस मिला”। खबर के अनुसार उत्तराखंड के धारचुला में स्थानीय ट्रेड्स एसोसिएशन ने 91 दुकानों का पंजीकरण रद्द कर दिया है। एक सैलून (नाई की दुकान) में काम करने वाला अल्पसंख्यक समुदाय का एक युवक दो लड़कियों के साथ अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश भाग गया है। धारचुला व्यापर मंडल के महासचिव महेश गबरयाल ने कहा, 91 दुकानों का पंजीकरण स्थानीय प्रशासन की सलाह से रद्द किया गया है और इनके मालिकों से कहा गया है कि वे इलाका छोड़कर चले जायें। उनमें से कई हमारी बेटियों को प्रभावित कर रहे थे।
टाइम्स ऑफ इंडिया में आज राहुल गांधी की खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर सिंगल कॉलम में है। शीर्षक है, राहुल गांधी ने कहा भाजपा को संविधान बदलने की हिम्मत नहीं। दूसरी ओर, इसी जगह बताया है कि प्रधानमंत्री ने मंत्रियों से कहा है कि वे अपना काम सामान्य की तरह करते रहें, अगली सरकार के 100 दिनों के लिए योजना बनायें। इलेक्टोरल बांड की खबर यहां लीड है। शीर्षक है, इलेक्टोरल बांड फंडिंग के 94% दानदाताओं का खुलासा अभी तक नहीं हुआ है। इंट्रो है, शिखर की पांच पार्टियों को 87% मिला। किसी ने विवरण नहीं दिया है। इसके अलावा जो खबरें हैं वो बताती हैं कि किसे कितना मिला जैसे, कांग्रेस इलेक्ट्रॉनिक बांड की दूसरी सबसे बड़ी लाभार्थी। और दूसरी खबरें जो अमर उजाला में हैं। आज हीरो मोटोकॉप के मामले की चर्चा नहीं है जो कल टेलीग्राफ में थी। इसमें कहा गया था कि आयकर के छापों के बाद कंपनी ने 20 करोड़ के बांड खरीदे। ईडी ने कंपनी की 50 करोड़ की संपत्ति जब्त की थी। मामले का क्या हुआ पता नहीं, बांड किसने भुनाया पता नहीं। लेकिन पता तो किया ही जाना चाहिये। इंतजार भी किया जा सकता है। यही नहीं, कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ऐसे 27 मामलों का उदाहरण दे चुकी हैं। और एक भी सही हो तो कार्रवाई वही होगी जो सबके सही होने पर होगी। लेकिन मुझे तो मामले को नया रंग देने की कोशिश दिख रही है।
द हिन्दू में चुनावी बांड की खबर लीड है। शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, बड़े लाभार्थी चुनावी बांड के दानदाताओं का विवरण देने में अक्षम होने का दावा कर रहे हैं। जाहिर है, यहां वसूली दान दिख रही है और दान ही माना जाये तो पीएम केयर्स के दान का भी उल्लेख होना चाहिये। लेकिन उसपर अभी शांति है। जो खुलासे हैं वो यही कि दूसरों को भी लाभार्थी बताया जाये। यहां राहुल गांधी
की रैली की खबर प्रमुखता से है, “मोदी ईवीएम, सीबीआई, ईडी, आईटी-विभाग के बिना चुनाव नहीं जीत सकते हैं : राहुल”।
इंडियन एक्सप्रेस में आज भी कांग्रेस (इंडिया गठबंधन) और भाजपा की खबर एक साथ लगभग बराबर में है। कई अखबारों ने कांग्रेस की खबर नहीं दी है, अमर उजाला ने गुजरात विश्वविद्यालय में विदेशी छात्रों पर हमले की खबर में केंद्र के पक्ष को महत्वपूर्ण बना दिया है लेकिन सभी अखबारों ने इलेक्टोरल बांड का जो मामला वसूली का लग रहा था उसे चंदे के रूप में पेश किया है। इंडियन एक्सप्रेस में भी ऐसा ही है। हालांकि, खबर लीड है और फ्लैग शीर्षक से बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट में बांड के नंबर बताने से संबंधित मामले पर आज सुनवाई है। लीड का शीर्षक है, “नया डेटा सामने आया : 2019 चुनाव से पहले भुगतान किये गये थे; दान देने वालों के नाम बताने वालों में डीएमके, एडीएमके, जेडी (एस), एनसीपी। भाजपा ने ईसी से कहा है कि वह कानूनन दान देने वालों का नाम रखने के लिए बाध्य नहीं है; कांग्रेस ने कहा है कि उसने एसबीआई से कहा कि वह ईसी से यह जानकारी साझा कर दे। इससे साफ है कि भाजपा ही जानकारी नहीं दे रही है। और भाजपा ही दावा कर रही है कि इलेक्टोरल बांड से चुनावी चंदे में काले धन की समस्या खत्म हो जायेगी। सवाल उठता है कि जब दान देने वाले का नाम ही नहीं है, देने की उसकी क्षमता का पता नहीं है तो धन सफेद है यह कैसे तय होगा? और वसूली में सफेद धन लेना ठीक है? कुल मिलाकर वसूली को दान बनाने की कोशिश सामूहिक शर्म का विषय है।