रवीश कुमार-
गोदी मीडिया ने चंद्रयान-3 का कवरेज़ कैसे किया है, मैंने नहीं देखा लेकिन आज न्यूयॉर्क टाइम्स में कैनेथ चांग और हरि कुमार की रिपोर्ट पढ़ने का मौक़ा मिला। काफी बड़ी रिपोर्ट है और इस घटना के महत्व के अनुसार इसे अख़बार ने जगह भी दी है। इस रिपोर्ट को पढ़ते समय आप आशंकाओं, संभावनाओं से जुड़े तमाम सवालों और सपनों से गुज़रते हैं। मैं अंदाज़ा लगा सकता हूं कि गोदी चैनलों ने इस घटना का कवरेज़ गर्व सप्लाई करने के रुप में ही किया होगा।
न्यूयॉर्क टाइम्स के इन दो संवाददाताओं ने बेहद बारीक अंदाज़ में सफलता-असफलता और ऐसे मिशन के राजनीतिकरण की तस्वीर उकेरी है। 2014 में जब मंगलयान ऑर्बिट में प्रवेश करने वाला था तब स्कूलों के बच्चों को सुबह सवा छह बजे आने के लिए कहा गया था, ताकि वे इसका प्रसारण देख सकें। प्रधानमंत्री मोदी भी अंतरिक्ष केंद्र में मौजूद थे।
चार साल पहले जब चंद्रयान-2 छोड़ा जा रहा था, तब फिर प्रधानमंत्री मोदी अंतरिक्ष केंद्र गए। यह अभियान असफल रहा। क्यों नहीं रहा, कैनेथ और हरि ने उन कारणों के बारे में भी लिखा है, जिससे आप फिर से परिचित होते हुए जागरुक नागरिक बनते हैं। अच्छा अहसास भी होता है कि उस नाकामी के बाद फिर से एक कोशिश की गई है।चंद्रयान-3 छोड़े जाने के समय एक बार फिर से अंतरिक्ष केंद्र में उत्साह देखा गया।इस बार प्रधानमंत्री नहीं थे।
यह रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में चांद को लेकर फिर से दिलचस्पी पैदा हुई है। रुस, जापान और अमरीका सहित आधा दर्जन देश चांद पर रोबोेट भेजने जा रहे हैं। अमरीका, चीन और भारत चांद पर अंतरिक्ष यात्री भेजने की योजना पर काम कर रहे हैं। अगर भारत का चंद्रयान-3 सफल होता है और इसका रोबोट चांद पर उतरता है तो यह बड़ी बात होगी। क्योंकि 21 वीं सदी में चीन के अलावा किसी देश ने यह कामयाबी हासिल नहीं की है।
यह रिपोर्ट बताती है कि आने वाले सप्ताह में अंतरिक्ष यान इंजिन फायरिंग करने लग जाएगा ताकि खुद को पृथ्वी की कक्षा (आर्बिट) में स्थापित कर चांद की ओर प्रस्थान की तैयार कर सके। अनुमान है कि 23-24 अगस्त को चांद पर लैंड कर सकता है। सूर्य की स्थिति के कारण इस पर असर भी पड़ सकता है। अगर सूरज की रौशनी नहीं मिली तो इसके लिए इंतज़ार करना पड़ेगा और तब हो सकता है कि सितंबर महीने में यह मिशन चांद पर उतरेगा। 2008 में चंद्रयान -1 छोड़ा गया था।2019 में चद्रयान-2 छोड़ा गया था मगर दूसरा मिशन लैंड करने से पहले ही असफल हो गया।
यह रिपोर्ट बताती है कि चंद्रयान-3 की डिज़ाइन चंद्रयान-2 की तरह ही है।इस बार इसके पांवों को मज़बूत किया गया है ताकि उतरने में मदद मिले। सौर ऊर्जा के सेल ज्यादा लगाए गए हैं ताकि ऊर्जा की कमी न हो। सेंसर में भी सुधार किया गया है जिससे ऊंचाई का सही-सही पता लगाया जा सके। अंतरिक्ष यान की गति को तेज़ करने के लिए सॉफ्टवेयर में भी बदलाव किया गया है।
यही नहीं इस रिपोर्ट में आप भारत और अमरीका के अंतरिक्ष केंद्र NASA के बीच कई प्रकार के समझौतों के बारे में भी जानते हैं। रिपोर्ट इस बात पर ख़त्म होती है कि इस साल चांद पर अंतरिक्ष यान भेजने का एक ही प्रयास हुआ है। जापान की एक कंपनी ने भेजने की कोशिश की थी, क्रैश कर गया। उसका मिशन नाकाम हो गया।
पत्रकारिता के छात्रों को इसका अध्ययन करना चाहिए। इस रिपोर्ट में न तो चंद्रयान मिशन का मज़ाक उड़ाया गया है और न ही संभावनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया है। फिर आप इसी विषय पर अंग्रेज़ी चैनलों के एंकरों ने जैसे कवर किया है, या अखबारों में लिखा है, उसे भी पढ़िए। चाहें तो हिंदी के अख़बार और चैनलों से भी तुलना कर सकते हैं।मैं नहीं कर रहा कि न्यू-यॉर्क टाइम्स ने सर्वश्रेष्ठ रिपोर्ट कर दी है, इस तरह का दावा नहीं है, बस ये चाहता हूं कि कभी-कभी कई रिपोर्ट को एक साथ रख कर देखना चाहिए कि एक बड़ी घटना को कैसे रिपोर्ट किया जा रहा है।