अभिषेक श्रीवास्तव-
(प्रेस क्लब का सालाना चुनाव, 21 मई 2022)

दिल्ली के पत्रकारों का महाकुंभ यानी प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का सालाना चुनाव 21 मई को है। आज Mahtab Alam का संदेश आया कि इस बार वे भी जूना अखाड़े की ओर से पवित्र डुबकी लगाने जा रहे हैं। मैंने निजी समर्थन देने का वादा किया और कहा कि अपन इस बार अखाड़ों से दूर ही रहेंगे। आगे बढ़ने से पहले बता दें कि प्रेस क्लब का मौजूदा प्रबंधन एक ऐसा जूना है सबको एक आंख से मांजने में यकीन रखता है। हर बार सत्ताधारी पैनल यानी अखाड़े में कोई आए, कोई जाए, लेकिन इसका महामंडलेश्वर नहीं बदलता। अंग्रेजी और बंगाली मिश्रित इस गिरोह की सत्ता में एक अदद बर्थ भरने के लिए घुसाए गए हिंदी वाले मनई की स्थिति कपिल शर्मा के शो में चंदू टाइप रहती है।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक समय था, दसेक साल पहले, जब भ्रष्टाचार और कब्जे के खिलाफ पत्रकारों के इसी जूना अखाड़े ने लड़ाई लड़ी थी। उसके बाद प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इसी अखाड़े का एकाधिकार होता चला गया। पांच साल पहले अपन भी उकसावे पर डुबकी मार आए थे। साल भर प्रबंधन में रह के अपने चंदू होने का अहसास हुआ। जब हमने गड़बड़ियों पर सवाल उठाए, पत्र लिखे, तो मजाक में उड़ा दिया गया। जिस भद्र सुधि सज्जन ने अपना मजाक बनाया, आज वो भी उसी गति को प्राप्त होकर महीने भर से फोन कर के अपने अखाड़े में आने को कह रहा है। मैंने फोन उठाना ही बंद कर दिया है।
बहुत से लोगों को अब भी लगता है कि क्लब को इस तरह छोड़ा नहीं जा सकता। बिलकुल इसी तर्क से जूना अखाड़े वाले हर बार जीतते आए हैं कि साथ रहो वरना संघी आ जाएगा। पता चला बैठे बैठे ये सब खुद ही संघी बन गए। वरिष्ठ पत्रकारों को निलंबित करना, लाखों का घोटाला सामने आना, बड़े पैमाने पर चोटीधारी भगवा नारदों को सदस्य बनाना और क्लब में बाउंसरों का खुले आम घूमना- ये सब कुछ अब आम है। फिर भी उनका दावा है कि क्लब की सत्ता में वाम है। अजब झाम है। इसीलिए अब उधर जाने का ही मन नहीं करता है। बीते दो साल में गिन के दर्जन भर बार भी मैं क्लब नहीं गया हूं।
अबकी 21 को जाऊंगा। महताब भाई के अलावा कोई और मित्र खड़ा हुआ तो उसे निजी वोट दे दूंगा, उसकी व्यर्थता को समझते हुए, पर किसी पैनल को वोट नहीं दूंगा। वैसे भी महिला क्लब और विदेशी क्लब को परिसर खाली करने का फरमान आ चुका है, अब बारी 1, रायसीना रोड की है। भीतर से इतना खोखला हो चुका है प्रेस क्लब कि कल को बोरिया बिस्तर बांध के सरकार फेंकवा भी दे तो कोई बोलने वाला नहीं मिलेगा वहां। दिलचस्प ये है कि जूना अखाड़े को चुनौती देने के लिए दो ढाई हजार मतदाताओं के बीच ऐसे मात्र 21 लोग इस बार भी नहीं मिल पा रहे हैं जो अपना खुद का शुद्ध पैनल बना के लड़ लें! और बात करते हैं श्रीलंका की, कि हमारे यहां भी काश वैसा ही हो जाए!
इस बार पैनलों का बहिष्कार! अगली बार बेशक अपनी सरकार!!