अमीश राय-
आज जब खबर लिखना मुश्किल हो रहा है पत्रकारों के लिए तो मुझे कुछ कहानियां याद आ रही हैं. अब जैसे इसी को लीजिये. मामला आंगनबाड़ी का था. मेरे लिस्ट में मौजूद अमीर पत्रकारों के लिए ये बता देना जरूरी है कि इस देश में आंगनबाड़ी जैसी कुछेक संस्थाएं बची हुई हैं जिनपर आपकी तवज्जो की जरूरत है. बाकी तो राजकाज है ही. खैर…
मामला रांची के आंगनबाड़ी का था और कहीं भी पुष्टाहार नहीं दिया जा रहा था. मैं खबर करने गया. एसडीपीओ की धमकी आयी और ये भी कहा कि वर्शन नहीं दूंगी. मेरे संपादक ने कहा कि अमीश डरना मत, मैं हूं, इसकी ऐसी की तैसी, आज ये मामला छपेगा और इंपैक्ट होगा. बड़े अधिकारी के पास जाओ, अब राज्य भर के आंकड़े छापेंगे.
मैं सीधे सचिवालय पहुंचा. कागज निकलवाने. क्लर्क सुन ही नहीं रहे थे. मैंने हॉल के बीच खड़े होकर तेज आवाज में कहा तुम सब चोर हो. आवाज डिप्टी डायरेक्टर के कमरे तक पहुंच गई. वह बाहर निकल कर आये. मुझे अंदर ले गए. मेरी बात सुनी. आधे घंटे में मेरे पास मोटी फ़ाइल थी। अधिकारी ने कहा कि गड़बड़ी निकलती है तो जांच होगी। अगले कुछ दिनों में माफी मांगने वालों की लाइन लगी, कई सस्पेंड हुए, जांच बैठ गयी। केस करने की हिम्मत किसी अधिकारी में नहीं हुई।
दूसरी कहानी सड़क की है। एक सुबह मुझे फोन आया कि भैया बेहद घटिया निर्माण हो रहा है। मैं बाइक उठा कर पहुंचा। क्षेत्र नक्सल प्रभावित था। जब पहुंचा तो गांव के उत्साहित युवा इकट्ठा थे। एक बोला, भैया हाथ से उखड़ जा रही है ये सड़क। मैंने कहा अच्छा, दिखाओ तो जरा। आगे का काम उन युवाओं ने और फोटोग्राफर ने किया। खबर छपी कि हाथ लगाओ तो परतों में उखड़ जाती है ये घपले की सड़क।
8 कॉलम की तस्वीर और खबर देख पथ निर्माण विभाग सुबह रेस होता है। एग्जीक्यूटिव इंजीनियर झा थे, मेरे संपादक की जाति पता की वो भी झा निकले। सुबह सुबह मीठी मिथिला में मेरी शिकायत संपादक से फोन पर की। आपका रिपोर्टर अमीश पैसा मांग रहा है, खबर न छापने के एवज में। नहीं दिए तो आज छाप दिया। मैं तो केस कर देता पर सोचा आप अपने हैं तो बता दूं। मेरे संपादक ने शुक्रिया कह फोन रख दिया।
फिर वो सुबह की मीटिंग में आये। मीटिंग के बाद मुझे केबिन में बुलाया। पूछा कि एग्जीक्यूटिव इंजीनियर से क्या बात हुई? मैंने कहा कुछ नहीं, वर्शन नहीं दे रहे थे तो मैंने कहा कि यही लिख दूंगा कि आपको कुछ नहीं कहना है। संपादक ने पूछा, फिर? मैंने कहा, छाप दिया।
संपादक ने पूछा उससे कभी मिले नहीं न हो अबतक? मैंने कहा नहीं। आदेश हुआ कि धनबाद में हाल की बनी सारी सड़कों की ऑडिट होगी। पॉलिटेक्निक से एक्सपर्ट हमारे साथ रहेगा वो बताएगा कि किस सड़क में क्या गड़बड़ी है और हम छापेंगे। दूसरा आदेश हुआ कि पहले जाओ और उस इंजीनियर को बता कर आओ कि तुम पत्रकार हो, दलाल नहीं।
अगले एक घंटे में मैं एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के केबिन में था। कुर्सी के एक तरफ वो, दूसरी तरफ मैं। मेरी तेज आवाज़ सुनकर केबिन में पूरा ऑफिस जमा था और मैं उस अफसर की क्लास लगा रहा था। मैंने कहा कि यहीं बैठ कर खबर लिखूंगा और तब तक नहीं उठूंगा जब तक विजीलेंस की जांच नहीं बैठ जाएगी। आइंदा से हिमाकत मत करना मेरे संपादक को फोन करने की और जाओ जहां केस कर सकते हो करो।
जब मैं उसके केबिन से निकला तो हीरो की तरह फीलिंग आ रही थी। बिल्कुल सिनेमा वाले। मेरे पीछे पीछे EE के बुजुर्ग चपरासी भी बिल्डिंग से बाहर आये। मुझसे भोजपुरी में पूछा, बबुआ कहाँ घर पड़ी? हम कहे ग़ाज़ीपुर। बुजुर्ग मुस्कुराए, कहा हम समझ गईल रहनी ह, ठीक कईला ह, चोर ह साला। मैं भी मुस्कुरा कर नमस्ते कर चला आया।
कहानी लंबी खींची। हर सड़क का ऑडिट किया हमने। अंत में ठेकेदार असोसिएशन ऑफिस पहुंचा और हाथ जोड़ कर कहा कि सड़क बनाने देंगे भैया या नहीं?
इतनी लंबी कहानी अगर आपने पढ़ ली है तो इसके मायने समझिए। कई मामलों में भय के बिना प्रीत नहीं होती है। रोयेंगे तो ये सिस्टम रुलाएगा। अगर उस जिले के सारे संपादक मेरे संपादक की तरह टाइट होकर रिपोर्टर के पीछे खड़े हों तो केस करने की बात तो दूर पूरा चोर तंत्र लोट लोट कर माफी मांगेगा। क्या सिपाही और क्या माफिया, चोर है तो माफी मांगेगा जरूर।
एडिटर्स गिल्ड को नहीं उतरना पड़ेगा। लेकिन आप क्या कर रहे हैं? आप PR कर रहे हैं कि वाह एसएसपी ने क्या काम किया, वाह DM ने क्या काम किया। अरे भैया उसका काम है काम करना। डिपार्टमेंट उसे प्रमोशन देगा अच्छे काम के लिए। आप तो खबर लिखिए।
खैर अब संपादक का नाम भी जान लीजिये। उनका नाम Basant Jha है और अखबार दैनिक भास्कर था।
Gyandeep pandey
September 3, 2023 at 10:22 pm
Aise kaam Dainik Bhaskar hi kr sakta hai..
संतोष देव गिरी
September 4, 2023 at 10:12 pm
अब तो ऐसे संपादक दूर-दूर तक नजर नहीं आते सर,, अब तो सीधे तौर पर विज्ञापन के लिए दबाव बनाया जाता है कितना बिजनेस दे सकते हो। खबर खास करके ग्राउंड रिपोर्टिंग में आप कितने निपुण हो इसका कोई मायने नहीं
S.M.Aaqil
September 5, 2023 at 9:17 am
सारा खेल तो सम्पादकों का ही है, वही सुधर जाएं रिपोर्टर तो खुद चाहता है बखिया उधेड़ना, ख़बर भेजो ऊपर से ही रोक दी जाये तो क्या कर सकते हैं