अलीगढ़ में हुई महिलाओं से मारपीट और लूटपाट की दो घटनाओं ने बुलंदशहर कांड की याद फिर ताजा कर दी है। उत्त्तर प्रदेश में दंगों के सवाल पर सपा सरकार को विपक्षी दल पहले से ही घेरते आ रहे हैं। तो ऐसे में सवाल उठ रहा है कि चुनाव के समय अब अखिलेश यादव दंगों के दाग और अपराधों की आग से खुद और पार्टी को कैसे बचाएंगे ?
धीरज सिंह
घटनाएं होती हैं और कुछ समय बाद लोग उन्हें भूल जाते हैं मगर चुनाव आते ही राजनैतिक दल एक- दूसरे का लेखा-जोखा कुरेद कर फिर बाहर निकाल देते है। लोग जिन बातों को भूल चुके थे, चुनाव के ऐन पहले फिर से सुर्खियां बनने लगती हैं। प्रदेश में हुए दंगे और आपराधिक वारदात, कुछ ऐसे ही मुद्दे हैं जो समाजवादी पार्टी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का पीछा नहीं छोड़ेंगे। मार्च 2012 में उत्तर प्रदेश का चुनाव परिणाम आने के बाद जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अपने युवा पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया तो जनता प्रदेश के विकास का सपना देख रही थी। लैपटॉप मिलने की आशा में प्रदेश के युवाओं में भारी उत्साह था।
मुख्यमंत्री की गद्दी संभालने के बाद अखिलेश भी अपने चुनावी वादे करने में जुट गये। प्रदेश भर में हजारों छात्र-छात्राओं को लैपटॉप बांटे गए। अखिलेश की महत्वाकांक्षी योजना प्रदेश में मेट्रो दौड़ाने की थी, उस पर भी अमल शुरू हो गया। यह सब कुछ ऐसे होता रहा, मानों अगला चुनाव मेट्रो और लैपटॉप के दम पर ही जीतना हो। चुनाव की अधिसूचना आने से पहले मुख्यमंत्री ने जैसे-तैसे मेट्रो का रन ट्रायल भी करवा ही दिया। हालांकि अभी लखनऊ में मेट्रो का काफी काम अभी बाकी है और मेट्रो को चलने में काफी समय लगने वाला है।
यूपी मिशन-2017 का लक्ष्य सामने आया तो सपा के दिग्गज फिर माथापच्ची में जुट गए। लैपटॉप तो बांट चुके, अब इस बार क्या? काफी सोच-विचार के बाद घोषणा हुई कि इस बार स्मार्ट मोबाइल फोन बांटे जाएंगे। आखिर युवाओं में मोबाइल फोन का क्रेज जो है। तो क्या मोबाइल और मेट्रो अखिलेश भइया की चुनावी नैया पार लगा देंगे। विपक्षी दल इस बात को जोर-शोर से प्रचारित करते हैं कि सपा की सरकार बनते ही उत्तर प्रदेश में अपराध बढ़ने लगते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा मुखिया बहन मायावती जब भी प्रेस कान्फ्रेंस में पहले से ही लिखा-लिखाया भाषण पढ़ती हैं तो यह जिक्र करना कभी नहीं भूलती हैं कि प्रदेश में अपराधों की बाढ़ आ गई और जंगल राज कायम हो चुका है। भाजपा और कांग्रेस के नेता भी सपा सरकार पर ऐसे आरोप लगाते रहते हैं। भाजपा नेता कह चुके हैं कि अखिलेश की सरकार आने के बाद से प्रदेश में 500 से ज्यादा छोटे-बड़े दंगे हो चुके हैं। अखिलेश के राज में सबसे बड़ा दाग मुजफ्फरनगर में हुए दंगे हैं। प्रदेश के कुछ हिस्सों से हिन्दुओं के पलायन का मुद्दा भी राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप का विषय बन चुका है।
बुलंदशहर हाईवे पर जुलाई 1016 को हुई शर्मनाक घटना अखबारों और न्यूज चैनलों की सुर्खी बनी थी, मां-बेटी से दुष्कर्म की घटना की गूंज विदेशों तक हुई थी। इस कलंक को धोने के लिए राज्य सरकार ने यूपी-100 डायल योजना लांच की। इस योजना का जोर शोर से प्रचार किया गया और वाहवाही लूटने की कोशिश की गई। पुलिस के आला अधिकारी प्रदेश में कानून व्यवस्था चुस्त- दुरुस्त होने का दावा करने लगे। वूमेन्स हेल्पलाइन और यूपी- 100 डायल चालू होने के बाद तो क्या वाकई प्रदेश में अपराध थम गये हैं। चुनावी बेला में बुलंदशहर जैसा कांड होने से अखिलेश सरकार को फिर भारी धक्का लगा है। 22 जनवरी 2017 को अलीगढ़ के टप्पल क्षेत्र के गांव जिकरपुर में एक रिटायर डीआईजी के फार्म हाउस पर मां-बेटी के साथ मार-पीट और लूटपाट की वारदात और एक्सप्रेस वे पर बस यात्रियों से लूटपाट की वारदात ने प्रदेश में कानून व्यवस्था के दावों की सच्चाई उधेड़ कर रख दी है। बताया जा रहा है कि ये दोनों ताजा वारदात बुलंदशहर कांड की तर्ज पर ही अंजाम दी गई हैं और अपराधियों के बढ़े हौसले को उजागर कर रही हैं। क्या राज्य की जनता मेट्रो, मोबाइल और लैपटॉप को राज्य की खुशहाली मान लेगी। विधानसभा चुनाव के दौरान अखिलेश और उनकी पार्टी को दंगों और अपराधों पर भी जवाब देना होगा।
धीरज सिंह
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