जैसे हैं कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद, वैसे ही निकले नरेंद्र मोदी…. पत्रकार का दर्द कौन सुने…. उसे तो अंदर बाहर हर ओर से गाली और शोषण का शिकार होना है… पत्रकार बिकाऊ है या कपिल सिब्बल व सलमान ख़ुर्शीद… यह सोचने की बात है… भारत सरकार तो ऐसी है जो ना अपना भला बुरा जानती है, ना समाज का और ना ही देश का। मैं बात करना चाहूंगा पत्रकारिता की। पत्रकार वही है जो कम वेतन में काम करने को तैयार हो। बाकि ना उसकी शैक्षणिक योग्यता देखी जाती है ना अक्षर ज्ञान। नतीजन कोई भी पत्रकार बन सकता है।
ये मीडिया हाउसों की देन है कि वे कम वेतन देने के साथ ना परिचय पत्र देते, ना सैलरी स्लिप, ना अवकाश कार्ड, ना पीएफ। फिर भी सरकार, कोर्ट, पुलिस, श्रम विभाग प्रेस मालिकों के तलवे चाटने को मजबूर हैं। फिर यही पत्रकार समाज को उपदेश देते हैं तो समाज और देश कितना जागरूक होगा। पत्रकार के वेतन और नौकरी का कोई ठिकाना नहीं होता। संपादक और प्रेस मालिक के मुंह में रखा रहता है तो आप जाइए।
राजनैतिक दल क्यों कोसते हैं?… ऐसे में समाज और सरकार एक पत्रकार से कैसे उम्मीद कर सकता है कि वह हमारी लड़ाई लड़ेगा। एक सच्ची बात समाज में रखेगा। वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल, सलमान ख़ुर्शीद जब मजीठिया वेज बना तो केंद्र में मंत्री थे। जब पत्रकारों ने वेज बोर्ड की मांग की तो पत्रकारों को मजीठिया वेज न दिया जाय इसके लिए उन्होंने प्रेस मालिकों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की। अब वही नेता और उसी पार्टी के लोग प्रेस पर ये आरोप लगाते हैं कि मीडिया बिकाऊ है, सिर्फ़ मोदी का गुणगान कर रहा है, हम कुछ कहते हैं तो उसे नहीं छापा जाता।
सरकार और कोर्ट… न्याय व्यवस्था के नाम पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल तक प्रेस मालिकों को ख़ूब लाभ पहुंचाया। अब भी फैसला सुरक्षित है लेकिन मुझे नहीं लगता की प्रेस मालिक सुप्रीम कोर्ट का कोई फैसला मानेंगे। इधर मोदी सरकार इतनी डरपोक है कि पत्रकारों के न्याय के लिए आगे नहीं आई। पत्रकार गिड़गिड़ाते रहे न्याय की भीख मांगते रहे लेकिन सरकार ने गाल बजाने के अलावा कुछ नहीं किया। अब सरकार चाहती है कि भारत और मोदी की महानता पत्रकार पूरे विश्व में गाएं। ध्यान से देखिए… सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्बल और नरेंद्र मोदी में क्या फर्क है… कुछ नहीं.. ये तीनों मीडिया मालिकों के पक्ष में मजबूती से खड़े हैं…
मतलब संविधान के मानक चौथे स्तंभ की माँ बहन करने में किसी ने कोई कमी नहीं छोड़ी। फिर भी उन्हीं के कंधों का सहारा चाहिए। पता नहीं हम (सरकार और कोर्ट) पत्रकारों से गद्दारी कर रहा है या ख़ुद और समाज से।
महेश्वरी प्रसाद मिश्र
पत्रकार
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