–Husain Akhtar Naqvi–
टीवी मीडिया में रिपोर्टरों के लिए एक कोढ़ होता है ‘डे प्लान’! डे प्लान यानि अगले दिन भेजे जाने वाली स्टोरी, इसे स्टोरी आइडिया भी कहते हैं।
डे प्लान के लिए आफिस से फोन करने वाला कोई मोस्ट फ्रस्ट्रेटेड मीडियाकर्मी होता है। रिपोर्टर भी झि झि करते हुए कई बार ऐसी स्टोरी लिखवा देता है जो कैसे बनेगी उसे खुद नहीं मालूम। अब अगर रिपोर्टर की किस्मत खराब है तो डे प्लान या स्टोरी आइडिया संपादक को पसंद आ जाता है। अगले दिन सुबह से ही वह स्टोरी मांगी जाने लगती है।
अब रिपोर्टर बेचारे ने तो अखबार में पढ़ कर इस मकसद से लिखवा दिया था कि ‘कौनो मांगी थोड़ी जाई’।उधर संपादक ने एजेंडा सेट कर दिया तो स्टोरी चाहिए। ऐसे में रिपोर्टर भागा दौड़ा स्पॉट पर पहुंचा तो स्टोरी एजेंडे के उलट नज़र आती है। अब रिपोर्टर करे तो क्या करे।
नौकरी बचाने के लिए रिपोर्टर किसी अरिचित परिचित की बाईट लेकर एजेंडा अनुसार कहलवाता है। कुछ ओरिजनल और कुछ फाइल शॉट्स लगाता है। एथिक्स के मुताबिक ऑफिशियल बाइट ज़रूरी। लेकिन उसे पता है कि फर्जी स्टोरी पर बाइट मिलनी नहीं लेहाज़ा अधिकारी को मिस कॉल मार के उसी के दफ्तर पर खड़े होकर पीटीसी कर देता है (पीटीसी यानि पीस टू कैमरा दूरदर्शन का फार्मेट है और ये वो है जिसमे रिपोर्टर अंत मे स्टोरी की समरी कैमरे के सामने बताता है)।
चूंकि पिछले बीस सालों से यह खेल जारी है लेहाज़ा अधिकारी भी इनकी नस नस से वाकिफ हैं। यही वजह है कि हाथरस जैसी घटना में एजेंडे बाज़ रिपोर्टरों को बॉर्डर पर ही रोक दिया जाता है। वैसे भी जो चैनल मीडिया को अंदर न जाने की दुहाई दे रहे थे उनकी जानकारी के लिए फ्री प्रेस का मतलब असंवैधानिक अधिकार का मिलना बिल्कुल नहीं। मीडिया का कहीं भी मुहं उठा कर घुस जाने का कोई भी संवैधानिक अधिकार आज की तारीख तक नहीं है।
लेखक सैय्यद हुसैन अख्तर etv/news18 में चीफ रिपोर्टर रह चुके हैं.
Rajesh N. Agarwal
October 10, 2020 at 8:57 am
डे प्लान के तीन मायने होकर रह गए हैं। पहला अखबार उठाओ, उसमे छपी कोई खबर डे प्लान/स्टोरी आईडिया के रूप में लिखा दो। लेकिन इस तरह tv चैनेल्स सिर्फ प्रिंट मीडिया के पिछलग्गू बनकर रह जाते हैं। दूसरा तरीका कि पहले स्टोरी बना लाओ। फिर शाम को उसे अगले दिन के डे प्लान में डाल दो और अगले दिन सवेरे सवेरे उसे फ़ाइल कर दो। चूँकि डे प्लान की इस संपादकीय बेवकूफी की परम्परा ने फील्ड में रहने वाले पत्रकारों पर इतना दबाव बनाया हुआ है कि न चाहते हुए मैंने अपने पत्रकारिता जीवन मे अनेक बार ये उपाय अमल में लाया है। इससे जो खबर एक दिन पहले चल सकती थी, उसे अपनी खाल बचाने औऱ संपादकीय बेवकूफी को संतुष्ट करने के लिए एक दिन बिलंब से चलवाना पड़ता है।
तीसरा तरीका तो वही है जो भाई सैय्यद हुसैन अख्तर ने अपने लेख में प्रस्तुत किया है। आखिर ये महान संपादक कब समझेंगे कि अगले दिन कौन सी खबर मिलने वाली है इसकी भविष्यवाणी कोई पत्रकार एक दिन पहले अपने day plan में कैसे कर सकता है। डे प्लान या स्टोरी आईडिया देने का विकल्प केवल स्पेशल स्टोरी तक सीमित रखा जाना उचित है।
राजेश एन अग्रवाल
लेखक – देश की एक नामचीन न्यूज़ एजेंसी और शीर्ष न्यूज़ चैनलों में से एक मे 36 वर्ष सेवारत का अनुभवी है।