Arvind K Singh : किसान चैनल के सलाहकार श्री नरेश सिरोही का उससे अलग होना वाकई एक दुखद घटना है। प्रधानमंत्री इसे जिस स्तर का बनाना चाहते थे और उसका जो नतीजा आना था वह नहीं आ पाया। लेकिन इसके पीछे जिस तरह की शक्तियां किसान चैनल को शक्तिहीन करने में लगी थीं, वह कोई छिपी बात नहीं रह गयी है। रही बात राजनीति करने की तो तमाम पैदल लोगों की जमात के बीच नरेश सिरोही को इससे बड़ा पद मिला हुआ था। किसान चैनल में आकर वे बंध से गए थे।
उनको मैं 1988 से जानता हूं और एक सजग किसान नेता के रूप में खेती बाड़ी से जुड़े तमाम सवालों पर लगातार मुखर रहे। लेकिन दूरदर्शन की नौकरशाही से जूझते हुए एक बेहतर चैनल खड़ा करने की उनकी कोशिश को जमीन पर उतारने के राह में तमाम रोड़े थे। चाहे वह स्टाफ का चयन हो या दूसरे मसले कई मोरचे लगातार खुले रहे। और प्रसार भारती के अध्यक्ष को भी एक दौर में ऐसा लगने लगा कि अगर सिरोहीजी के नेतृत्व में यह चैनल चल निकला तो फिर उनकी कद काठी मोदीजी की निगाह में और ऊंची हो जाएगी। इस बात का अंदाज चैनल के उद्घाटन के दौरान ही लग गया था।
जिला स्तर पर निगरानी और सलाह के लिए एक तंत्र खड़ा करना अच्छी बात थी। अगर जिलों में रेलवे स्टेशन से लेकर जिला दूरभाष समितियां हैं तो ऐसी समिति से किसी को आपत्ति का क्या औचित्य है। दूसरी सरकारी समितियों में तो सरकारी सदस्यों को कुछ लाभ भी मिलता है लेकिन इसमें सदस्यों को कुछ मिल भी नहीं रहा था। ऐसे आरोपों को लगाने का औचित्य समझ से परे है। सिरोहीजी के पास खेती बा़डी से जु़डे सवालों पर एक मजबूत दृष्टि रही है। उसे जमीन पर उतारने का तंत्र उनको मिल गया होता तो मुझे भरोसा था कि यह एक बेहतरीन और गांव गिरांव की आवाज बनता। लेकिन शायद इसकी नियति ही कुछ और है। फिर भी सिरोही जी ने अपने कार्यकाल में जितना बेहतरीन काम काज करने की कोशिश की और चैनल को जैसी दिशा दी है उसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।
राज्यसभा टीवी में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह की एफबी वॉल से.
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